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मनोरंजन

पाकिस्तान को संगीत लाएगा भारत के करीब : निजामी

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नई दिल्ली| संगीत किसी सरहद को नहीं मानता, यह तो रूठे को भी मना लेता है। इसमें वह जादू है जो दूरियां मिटाता है और बिछुड़ हुए लोगों को मिलाता है। यही वजह है कि तमाम विरोध के बावजूद फनकारों ने भारत और पाकिस्तान की सरहद को न कभी माना है और न मानेंगे। पाकिस्तानी कव्वाल अयाज निजामी को सौ फीसदी यकीन है कि संगीत ही दोनों पड़ोसी मुल्कों को करीब लाएगा।

ख्वाजा निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह से खास जुड़ाव महसूस करने वाले नौजवान फनकार निजामी आठवें दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय कला महोत्सव में शिरकत करने दिल्ली पहुंचे तो उन्हें लगा कि वाकई तरन्नुम की दुनिया बेमिसाल है, जहां कोई सरहद नहीं, कोई दीवार नहीं..सिर्फ मौसिकी है और उसके हजार कद्रदान हैं। यहां भी, वहां भी।

जिंदगी के महज 25 वसंत का तजुर्बा लिए पड़ोसी मुल्क से भारत की राजधानी में रंग जमाने आए निजामी ने एक साक्षात्कार में संगीत, खासकर कव्वाली के भविष्य और भारत-पाकिस्तान के बार-बार दरकते रिश्तों सहित कई मसलों पर विस्तार से बातचीत की। निजामी पांच साल की उम्र में ही संगीत से जुड़ गए थे। दिल्ली में हुए स्वागत से वह अभिभूत हैं, उन्होंने कहा, “दिल्ली आकर बहुत अच्छा लगा। साल 2008 में मैं दो महीने के लिए भारत आया था। उन दिनों मेरी पेशकश हैदराबाद में थी और वहां भी मेरा गर्मजोशी से इस्तकबाल किया गया था।”

निजामी का नाता चर्चित बाबा-ए-कव्वाली खानदान से है। उनके दादा रईस अहमद निजामी ख्वाजा निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खास कव्वाल थे और पिता अनीस निजामी भी इसी क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। शायद यही वजह है कि पांच साल की उम्र में उनका नाता संगीत से जुड़ गया। यूरोप सहित विभिन्न महादेशों में अपना हुनर पेश कर चुके निजामी मानते हैं कि कव्वाली का भविष्य न सिर्फ भारत-पाकिस्तान, बल्कि अन्य देशों में भी है।

यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तान और भारत में कव्वाली का भविष्य वह किस रूप में देखते हैं, उन्होंने कहा, “कव्वाली के मुरीद न सिर्फ भारत-पाकिस्तान, बल्कि दुनियाभर के लोग हैं। मैंने यूरोप के मुल्कों का भी सफर किया है और वहां भी लोगों ने हौसला अफजाई की है। मौसिकी का लोगों के रूह से जुड़ना ज्यादा जरूरी होता है। लोग जो सुनते हैं, वह सीधे रूह में उतर जाता है।” अयाज निजामी ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “भारत-पाकिस्तान की आने वाली पीढ़ियों के बीच मौसिकी का मुस्तकबिल (भविष्य) सुनहरा है।”

भारत में पाकिस्तानी गायक-गायिकाओं को काफी पसंद किया जाता है। मल्लिका पुखराज, मेहंदी हसन, गुलाम अली, राहत फतेह अली खान, जिला खान, अताउल्लाह खान, आबिदा परवीन, अदनान सामी, आतिफ असलम और अली जफर जैसे फनकार भारत में भी अपनी खास पहचान बना चुके हैं और इनमें से कई बॉलीवुड संगीत का जानामाना चेहरा बन चुके हैं। इतना ही नहीं, वहां के गायक भारत में काम करने को अपने करियर के बेहतरीन विकल्प के रूप में देखते हैं।

पाकिस्तान में कलाकारों के लिए माहौल कैसा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, “यकीनन, वहां भी बेहतरीन माहौल है और फनकारों को आगे बढ़ने के लिए वाजिब प्लेटफॉर्म भी दरयाफ्त है। फनकार दूसरे मुल्कों का दौरा तो करते ही हैं। हिंदुस्तानी फनकार भी हमारे यहां आते हैं। पिछले दिनों शुभा मुद्गल ने पाकिस्तान में खूब रंग जमाया था, उनको अच्छा रिस्पांस मिला था।”

कव्वाली के अलावा खयाल, सरगम, तराना, ठुमरी और गजल जैसी विधाओं पर भी निजामी की अच्छी पकड़ है और वह अरबी, फारसी, हिंदी, उर्दू व पंजाबी भी बखूबी जानते हैं। निजामी कहते हैं कि वह कव्वाली को दुनियाभर में मशहूर करने के लिए मजबूत इरादे के साथ काम कर रहे हैं और इसमें उनकी कम उम्र बाधा नहीं बनेगी। क्या आप अन्य पाकिस्तानी गायकों की तरह बॉलीवुड फिल्मों में संगीत देना पसंद करेंगे? यह पूछने पर उन्होंने कहा, “बेशक, मैं बॉलीवुड फिल्मों में गाना पसंद करूंगा, लेकिन गीत कव्वालीनुमा होना चाहिए।”

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खेल-कूद

मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि रिंकू सिंह टी 20 वर्ल्ड कप की टीम में जगह बनाए: शाहरुख खान

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मुंबई। बॉलीवुड के किंग खान शाहरुख खान ने आगामी टी-20 विश्व कप के लिए अपनी टीम कोलकाता नाइट राइडर्स के बाएं हाथ के बल्लेबाज रिंकू सिंह को भारतीय टीम में शामिल करने का सपोर्ट किया है। शाहरुख की इच्छा है कि रिंकू सिंह टी 20 वर्ल्ड कप खेलें। रिंकू की विश्व कप संभावनाओं को लेकर शाहरुख ने कहा, “ऐसे अद्भुत खिलाड़ी देश के लिए खेल रहे हैं। मैं वास्तव में रिंकू, इंशाअल्लाह और अन्य टीमों के कुछ अन्य युवाओं के विश्व कप टीम में होने का इंतजार कर रहा हूं। उनमें से कुछ इसके हकदार हैं, लेकिन मेरी व्यक्तिगत इच्छा है कि रिंकू टीम में जगह बनाये, मुझे बहुत खुशी होगी। वह मेरे लिए सर्वोच्च बिंदु होगा।”

शाहरुख़ ने आगे कहा, ‘मैं बस यही चाहता हूं कि वे खुश महसूस करें और जब मैं इन लड़कों को खेलते हुए देखता हूं, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं खुद एक खिलाड़ी के रूप में जी रहा हूं। खासकर रिंकू और नितीश जैसे खिलाड़ियों में मैं खुद को उनमें देखता हूं। जब वे अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो मुझे वास्तव में खुशी होती है।” ऐसी दुनिया में जहां सफलता को अक्सर विशेषाधिकार और अवसर के साथ जोड़ा जाता है, शाहरुख खान और रिंकू सिंह की कहानियां एक अनुस्मारक के रूप में काम करती हैं कि महानता लचीलापन, दृढ़ संकल्प और सभी बाधाओं के बावजूद अपने सपनों को आगे बढ़ाने के साहस से पैदा होती है।’

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक श्रमिक वर्ग के परिवार में जन्मे रिंकू सिंह को क्रिकेट स्टारडम की राह में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। साधारण परिवेश में पले-बढ़े रिंकू के परिवार को गुजारा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता था, उनके पिता एलपीजी सिलेंडर डिलीवरी मैन के रूप में काम करते हैं और उनकी मां एक गृहिणी हैं। सफाईकर्मी की नौकरी की पेशकश के बावजूद, रिंकू ने क्रिकेट के प्रति अपने जुनून का पालन किया, उनका मानना ​​था कि यह उन्हें अधिक ऊंचाइयों तक ले जाएगा।

 

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