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नजीब मामले में जेएनयू छात्रों का लाई डिटेक्टर टेस्ट करेगी दिल्ली पुलिस

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JNUनई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के लापता छात्र नजीब अहमद की तलाशी में परिसर में दो दिनों की छानबीन के बाद कोई सुराग पाने में विफल रही दिल्ली पुलिस अब 10-12 छात्रों का लाई डिटेक्टर टेस्ट करेगी। अपराध शाखा ने 60 सवालों की एक सूची तैयार की है। यह सवाल रोहिणी की फारेंसिक साइंस लैब (एफएसएल) में नजीब का पता लगाने के लिए पूछे जाएंगे। नजीब दो महीने से ज्यादा समय से लापता है।

जेएनयू छात्र संघ के पूर्व संयुक्त सचिव सौरभ शर्मा ने कहा कि पुलिस ने करीब 10 से 12 छात्रों को जांच में शामिल होने के लिए नोटिस दिया है।
उन्होंने कहा कि इसमें करीब 4 छात्र वामपंथी समूहों से हैं। बाकी के छात्र एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) से हैं।

शर्मा ने कहा, मैं कह नहीं सकता कि एबीवीपी के लोग जांच में शामिल हों सकेंगे क्योंकि उनमें से बहुत से शहर में नहीं हैं। उन्होंने कहा, एबीवीपी के दो सदस्यों और जेएनयू छात्र विक्रांत और अंकित से पुलिस ने फोन पर संपर्क किया है और जांच में शामिल होने के लिए कहा है। विक्रांत और अंकित को नजीब के 15 अक्टूबर को लापता होने से पहले उसकी पिटाई करने का दोषी पाया गया है। एबीवीपी ने नजीब के लापता होने के मामले में शामिल होने से इनकार किया है।

नजीब के साथ छात्रावास में रहने वाले एक दूसरे छात्र कासिम को पुलिस एफएसएल ले गई और जांच से संबंधित जानकारी दी। कासिम ने कहा, उन्होंने मुझे हालात के बारे में बताया। उन्होंने मुझे तैयार रहने के लिए और अपने दिमाग में घटनाक्रम को लेकर स्पष्ट रहने को कहा।

कासिम ने कहा, उन्होंने मुझे यह नहीं बताया कि लाई डिटेक्टर टेस्ट कब होगा। मुझे ही आज अकेले वहां ले जाया गया था। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, कुछ छात्र जो क्रिसमस की वजह से परिसर में नहीं हैं, उन्हें भी लाई डिटेक्टर टेस्ट में मौजूद रहने के लिए नोटिस दिया गया है।

नजीब के चचेरे भाई मुजीब अहमद ने कहा, हम किसी भी पूछताछ के लिए तैयार हैं। जेएनयू परिसर में नजीब का सुराग लगाने के लिए करीब एक हजार पुलिस कर्मियों को दो दिनों तक लगाया गया था। तलाशी सोमवार और मंगलवार को की गई। यह तलाशी दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन के क्रम में की गई।

आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी के कार्यकर्ताओं के साथ 14 अक्टूबर की रात हुए विवाद के बाद से नजीब अहमद (27) लापता है। अहमद को अंतिम बार परिसर के मुख्य द्वार पर जामिया मिलिया इस्लामिया जाने के लिए आटोरिक्शा पकड़ते देखा गया था।

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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।

एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।

हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।

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