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दीमापुर हड़ताल से नागालैंड व मणिपुर में सड़क संपर्क प्रभावित
कोहिमा, 30 मई (आईएएनएस)| नागालैंड के दीमापुर शहर में बम विस्फोट से एक व्यक्ति की मौत के विरोध में व्यापारियों द्वारा मंगलवार को बुलाई गई 12 घंटे की आम हड़ताल ने दीमापुर का नागालैंड से और इसके साथ ही पड़ोसी मणिपुर की राजधानी इंफाल से भी सड़क संपर्क बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। पुलिस ने कहा, अभी तक फिलहाल कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है।
नागालैंड के सबसे बड़े शहर और वाणिज्यिक केंद्र दीमापुर की एक दवा की दुकान में सोमवार की शाम में फेंके गए बम से एक व्यक्ति की मौत और चार अन्य घायल हो गए। इस घटना से नाराज व्यापारियों ने हड़ताल की।
दीमापुर में सुबह छह बजे से शुरू हुई इस हड़ताल के बाद सामान्य जीवन चरमरा गया है।
कोहिमा, इंफाल और म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-2 इस वाणिज्यिक शहर से गुजरता है, जिसके कारण मणिपुर और राज्य के दूसरे हिस्सों के वाहनों को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है।
हड़ताल के कारण इंफाल से आने और जाने वाले सैकड़ों वाहन मार्ग में फंसे हुए हैं। यात्रियों के साथ कई दर्जन अंतर्राज्यीय बसें भी हड़ताल वाले क्षेत्रों से बाहर फंसी हुई हैं।
नागालैंड के गृह मंत्री वाई पैट्टन ने अपराधियों को पकड़ने और न्याय दिलाने का वादा किया है।
उन्होंने कहा, शांति की उम्मीद कर रहे नागालैंड के सभी वर्गों की ओर से यह घटना निंदा योग्य है।
पुलिस और प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एक कार में सवार दो लोग सोमवार शाम 7.15 बजे के आसपास न्यामो लोथा रोड पर स्थित दवाई की दुकान के अंदर बम फेंकने के बाद भाग गए।
एक उच्च स्तरीय पुलिस अधिकारी ने बताया, इस विस्फोट में दो ग्राहकों सहित पांच लोग घायल हुए। एक ग्राहक अब्दुल बासित ने अस्पताल में रात 10 बजे दम तोड़ दिया जबकि दूसरा घायल व्यक्ति भी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है। इसके अलावा तीन लोगों को मामूली चोटें आईँ हैं।
दवा की दुकान की मालिक निधु बिस्वास ने किसी संगठन से जबरन वसूली की धमकी मिलने की बात से इनकार किया है।
पुलिस अधिकारी ने हालांकि कहा, हम अभी किसी भी बात से इनकार नहीं कर सकते हैं।
एफआईआर दर्ज हो चुकी है और जांच जारी है। अब तक किसी ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
नेशनल
लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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