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चिकित्सा में स्मार्टफोन आधारित एप को बढ़ावा देने की जरूरत : विशेषज्ञ
नई दिल्ली| ऐसे समय में जब दुनिया भर के स्वास्थ्य सेवा प्रदाता स्मार्टफोन से जुड़ी तकनीकों को तेजी से अपना रहे हैं, तो इसमें भारत कैसे पीछे रह सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के मिशन को स्मार्टफोन तकनीक से काफी मदद मिलेगी।
दुनियाभर में चिकित्सक स्मार्टफोन से जुड़े मेडिकल उपकरणों की मदद से स्वास्थ्य संबंधी जरूरी आंकड़ों को इकट्ठा कर रहे हैं। ये स्मार्टफोन से जुड़े उपकरण मरीजों के आंकड़ों को स्वचालित ढंग से इकट्ठा करते हैं और सुरक्षित ढंग से भेजते हैं। अब स्मार्टफोन क्रांति से सभी बीमारियों के इलाज में मदद मिल रही है। इससे न सिर्फ कैंसर पर किए जा रहे शोध में मदद मिलती है, बल्कि यौन प्रदर्शन संबंधी आंकड़े भी जुटाए जा रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी स्थित मैक्स हेल्थकेयर के वरिष्ठ डॉक्टर रोमेल टिक्कू ने आईएएनएस कहा, “भारत स्मार्टफोन आधारित स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पूरी तरह तैयार है। यहां इस तरह के कई एप का इस्तेमाल पहले से ही किया जा रहा है। यह जरूरतमंदों को उनके स्वास्थ्य पर रोजाना नजर रखने में मदद करता है।”
मुंबई के विजन संकारा नेत्र अस्पताल के प्रमुख डॉ. आशीष बाछव के मुताबिक, बीमारियों की पहचान और इलाज के लिए पारंपरिक तरीका अभी भी बेहतर है। लेकिन स्मार्टफोन की मदद से न सिर्फ मरीज के रिकॉर्ड को बेहतर तरीके से रखा जा सकता है, बल्कि इससे नजदीकी चिकित्सक को भी ढूंढने में मदद मिलती है।
मुंबई के नानावटी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के निदेशक (न्यूरोसर्जरी विशेषज्ञ) डॉ. मोहीनीस भाटजीवाले ने आईएएनएस को बताया, “भारत न्यूरोसर्जरी और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के क्षेत्र में स्मार्टफोन की मदद से स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तैयार है। इसमें न्यूरो हेल्थकेयर को पूरी तरह से बदल देने की संभावना है, जिसका फायदा खासतौर से ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्र के लोगों को सबसे ज्यादा होगा।”
अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन के जर्नल ऑफ एथिक्स में छपे शोध पत्र में मिशेल ए.बटिस्टा और शिव एम. गगलानी ने इस बात पर जोर दिया है कि स्मार्टफोन व उससे जुड़े उपकरणों द्वारा मरीजों को आसान इंटरफेस की मदद से बीमारी को समझने में मदद मिलती है और वे अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होते हैं और ज्यादा ध्यान रख पाते हैं।
फोर्टिस हेल्थकेयर के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन और स्पाइन सर्जन डॉ. राहुल गुप्ता का कहना है, “आसानी और उपलब्धता के कारण ये उपकरण हेल्थकेयर प्रदाताओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।”
डॉ. गुप्ता आगे बताते हैं, “स्मार्टफोन तकनीक की मदद से बीमारियों को शुरुआती दौर में ही पहचानने में मदद मिलती है जिससे बेहतर तरीके से इलाज किया जा सकता है। हालांकि नए-नए एप पर तभी भरोसा होता है, जब उसे अच्छे डॉक्टर की निगरानी में सावधानी से जांचा-परखा गया हो।”
गुड़गांव की वेल वीमेन क्लिनिक की निदेशक और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नुपूर गुप्ता ने बताया, “डॉक्टरों को नई तकनीक के साथ अपडेट रहने की जरूरत है। इसलिए हमने जांच के नए-नए तरीकों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है।”
उनके मुताबिक, भारत में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में स्मार्टफोन आधारित तकनीक आ चुकी है और कई एप हैं, जो न सिर्फ शुरुआती परामर्श की ऑनलाइन सेवा मुहैया कराती है, बल्कि सेकेंड ओपिनियन भी देती है।
शोधकर्ता वटिस्टा और गगलानी महसूस करते हैं कि स्मार्टफोन से जुड़े मेडिकल उपकरण मरीजों के जीवन का जरूरी हिस्सा बनते जा रहे हैं। अब अगले कदम के तौर पर ये क्लीनिक का भी हिस्सा बनेंगे।
मोबाइल डॉक्टर खासतौर से जो आपातकालीन इलाज मुहैया कराते हैं, उनके लिए इन पोर्टेबल उपकरणों का खास महत्व है। उदाहरण के लिए किसी आपातकालीन अवस्था में वे मरीज को अस्पताल पहुंचाने से पहले ही उसकी सोनोग्राफी स्मार्टफोन की मदद से अस्पताल में भेज सकते हैं। इससे मरीज की शुरुआती जांच अस्पताल पहुंचने से पहले ही संभव है और समय पर उसका इलाज करने में काफी मदद मिलेगी।
मेलबॉर्न, आस्ट्रेलिया के आरएमआईटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कौरोस ने कहा, “कालानटार-जेदा ने हाल में ही स्मार्टफोन से जुड़े एक हाथ में पकड़े जा सकने वाले छोटे से डिवाइस का निर्माण किया है, जिससे लोगों को नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का पता चल सकता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड वायु प्रदुषण के महत्वपूर्ण कारकों में से एक है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि नए जमाने की तकनीक पारंपरिक तरीकों के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।
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केंद्र सरकार का बड़ा एक्शन, 70 लाख मोबाइल नंबर हुए सस्पेंड; जानें क्या है कारण
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने एक बड़ा एक्शन लेते हुए 70 लाख मोबाइल नंबर को सस्पेंड कर दिया है। यानी इन मोबाइल नंबर का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। अब आपके जेहन में ही यही सवाल आ रहा होगा कि आखिर सरकार की ओर से यह कदम क्यों उठाया गया है। दरअसल, यह कदम बढ़ते डिजिटल फ्रॉड को देखते हुए उठाया गया है।
इस वजह से हुए मोबाइल नंबर सस्पेंड
सस्पेंड किए गए ये वे मोबाइल नंबर थे जो किसी तरह के संदिग्ध लेन-देन से जुड़े थे। दरअसल, इस मामले को लेकर वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने मंगलवार को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इंटरनेट के समय में डिजिटल पेमेंट को लेकर हो रही धोखाधड़ी को देखते हुए ऐसा किया गया है। बता दें, वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने यह जानकारी डिजिटल पेमेंट को लेकर धोखाधड़ी और इससे जुड़े मुद्दों पर बैठक के बाद दी है।
जनवरी में होगी अगली बैठक
जोशी ने कहा है कि डिजिटल फ्रॉड के बढ़ते मामलों को देखते हुए बैंकों को भी निर्देश दिए गए हैं। बैंकों को उनकी प्रक्रियाओं और प्रणालियों को पहले से मजबूत बनाने को कहा गया है। उन्होंने बैठक को लेकर जानकारी देते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर आगे भी बैठकें होती रहेंगी। इसी के साथ मामले पर अगली बैठक अगले साल जनवरी में रखी गई है।
वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AEPS) धोखाधड़ी को लेकर कहा है कि राज्यों को इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है। इसी के साथ राज्य सरकारों को डेटा सुरक्षा को भी मजबूत बनाने पर गौर देना चाहिए।
फ्रॉड के मामले कैसे होंगे कम
विवेक जोशी ने कहा है कि डिजिटल धोखाधड़ी को लेकर जागरुकता बेहद जरूरी है। इस तरह की धोखाधड़ी पर लगाम लगाने के लिए जरूरी है कि समाज को इन मामलों से अवगत करवाया जाए और जागरुक किया जाए। मालूम हो कि हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी साइबर धोखाधड़ी को लेकर समाज को जागरुक करने की बात पर जोर दिया था।
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