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गोवा में मारे गए विदेशियों के परिजनों का मोदी के नाम खुला पत्र
पणजी, 30 मई (आईएएनएस)| गोवा में जिन विदेशी पर्यटकों की हत्या कर दी गई थी, उनके रिश्तेदारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि स्थानीय पुलिस मामले पर पर्दा डाल रही है। पीड़ितों के रिश्तेदारों ने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जांच कराए जाने की मांग भी की है।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि गोवा के पुलिसकर्मी पैसों के लिए स्थानीय अपराधियों को संरक्षण प्रदान करते हैं और यही स्थानीय असामाजिक तत्व विदेशी पर्यटकों के साथ दुष्कर्म और उनकी हत्या में शामिल रहे हैं।
पत्र में आगे कहा गया है, हमने अनुरोध किया है कि सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया जाए, जो काइतान्या होल्ट, फेलिक्स दहल, जेम्स दुर्किन, काइल आन्र्ट, स्कार्लेट कीलिंग, डेनिज स्वीनी, स्टीफेन बेनेट, मार्टिन नेबर, माइकल हार्वे और जोनाथन बारबैंक की हत्या की जांच की निगरानी करें, ताकि उनकी हत्या की सच्चाई सामने लाने के लिए उचित, निष्पक्ष एवं विस्तृत जांच सुनिश्चित हो।
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में आगे कहा गया है, गोवा में पुलिस के काम की गुणवत्ता की जांच होनी चाहिए। हत्याओं की जांच करने के बजाय पुलिस सच्चाई पर पर्दा डालना चाहती है।
मारे गए विदेशी पर्यटकों के रिश्तेदारों ने आगे कहा है कि हाल के समय में विदेशी पर्यटकों के खिलाफ अपराध के बढ़ते मामलों के चलते गोवा ‘दुनिया का दूसरा सबसे खतरनाक पर्यटक स्थल बन चुका है’।
उनका कहना है, हमारे प्रियजनों की हत्या के बाद से गोवा में हर सप्ताह कम से कम एक विदेशी पर्यटक की मौत हो रही है और अनेक स्थानीय नागरिकों की भी हत्या हुई है..इन हत्याओं में, चाहे विदेशी पर्यटक मारे गए हों या स्थानीय नागरिक, वही स्थानीय अपराधी शामिल रहे हैं। स्थानीय अपराधियों, गोवा पुलिस, ड्रग माफिया और राजनीतिज्ञों के बीच सांठगांठ और इन हत्याओं में उनकी संलिप्तता का खुलासा करने के लिए निष्पक्ष, स्वतंत्र जांच की जरूरत है।
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लोकसभा के शोले और रहीम चाचा की खामोशी
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
हिन्दी सिनेमा की कालजई फिल्म शोले के रहीम चाचा का किरदार आपको जरूर याद होगा। उनका एक डायलॉग था जिसमें वो कहते है “इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई” उस वक्त पूरे रामगढ़ में किसी के पास इसका जवाब नहीं था, कमोवेश ठीक वैसे ही हालात इस वक्त लोकसभा चुनाव में नजर आ रहे हैं। लोकसभा के चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं पर पूरे देश में कहीं भी ऐसा नजर नहीं आता कि हम अगले पाँच साल के लिए अपने नुमाइंदे चुनने जा रहे हैं। एक अजीब खामोशी नुमायाँ है। गांव, कस्बों और शहरों तक में होर्डिंग और पोस्टर नजर नहीं आ रहे हैं और न ही कानफोडू लाऊडस्पीकर पर वोट मांगने वालों का शोर सुनाई दे रहा है, चाय की टपरी और पान के खोखों पर जमा होने वाली भीड़ अपने होंठों को सिले हुए है।
एक वक्त था जब हम लोग चाय की टपरी, पान की दुकान और रास्तों के ढाबों से देश का मूड भांप लेते थे। मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसका अंदाज लगाना आसान था। लेकिन आज स्थिति उलट है इन जगहों पर खड़ा आम आदमी आपसे ही उल्टा पूछ लेता है ‘और क्या चल रहा है’ इंसान-इंसान के बीच अविश्वास की खाई इतनी गहरी हो गई है कि वो पब्लिक प्लेस पर अब राजनीतिक बात करने से गुरेज करने लगा है। वोटर अपने मन की बात जुबान पर नहीं लाना चाहता हैं क्यूंकी अब वो रेडियो पर ‘मोदी जी’ के मन की बात सुन रहा है और अपने मन की बात अपने मन में रखे हुए है। उसे डर है और ये डर मिश्रित चुप्पी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण की तरह दूसरे चरण में भी वोटिंग 2019 के मुकाबले कम हुई है। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन सीटों पर भी 70 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे ही इस बार दूसरे चरण में 13 राज्यों की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 63 फीसदी वोट पड़े। यह 2019 के लोकसभा चुनाव में 70.09% मतदान के मुकाबले काफी कम था। यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में वोटिंग उम्मीद से काफी कम रही। यूपी में 54.85%, बिहार में 55.08% , महाराष्ट्र में 57.83% , एमपी में 57.88 % वोटिंग हुई। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में सात मई को वोटिंग है। इसमें 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 95 सीट पर मतदान होगा, जिसके लिए 1351 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
जब 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और 1 जून को तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे और सातवें चरण का मतदान होगा तो इस दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में गर्मी के साथ लू का असर दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान लगभग 72% निर्वाचन क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 35°C या इससे अधिक हो सकता है। विशेष रूप से, 59 सीटों पर 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान का सामना करना पड़ सकता है। जबकि 194 सीटों पर 37.5-से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान देखा जा सकता है। लेकिन इस गर्मी के बीच क्षेत्रीय दलों के नेता काफी तेजी से अपने इलाके के मतदाताओं पर पकड़ बना रहे हैं और उन सवालों को उठा रहे हैं जिनसे देश का किसान, मजदूर और नौजवान चिंतित है। इसलिए उनके प्रति आम जनता की अपेक्षाएं बढ़ी हैं इसलिए विपक्षी गठबंधन के नेताओं की रैलियों में भारी भीड़ आ रही है। जबकि भाजपा की रैलियों का रंग उसके मुकाबले फीका नजर या रहा है।
हालांकि रैली में आने वाली भीड़ जीत का पैमाना नहीं होती इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर दल का अपना एक समर्पित काडर होता है। जबकि आज काडर के नाम पर ज्यादातर दलों के पास सत्ता के छत्ते से चिपकी रहने वाली मधुमक्खी ही ज्यादा नजर या रहीं है ये वो लोग हैं जिन्हें सत्ता की दलाली करने के अवसरों की तलाश होती है। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जिसके पास काडर है कार्यकर्ता हैं वो भी खामोश नजर आ रहा है। बहरहाल लगातार कम होते मतदान ने नेताओं की धुकधुकी बढ़ा रखी है। सत्ता पक्ष मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए परेशान है तो विपक्ष कम प्रतिशत को अपने पक्ष में मानकर मुंगेरीलाल के सपने बुनने में मगन है।
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