प्रादेशिक
गुमराह कर रहे निजी नाभिनाल रक्त बैंक
बेंगलुरू| निजी नाभिनाल रक्त (ब्लड) बैंक भोली-भाली जनता को गुमराह कर पैसा बना रहे हैं और यह अपने आप में एक बड़ा घोटाला है। इस पर सख्ती से रोक लगाने की जरूरत है। यह कहना है देश के वरिष्ठ चिकित्सा शोधार्थियों का।
बच्चे के जन्म के बाद नाभिनाल या गर्भनाल से संग्रहीत किया गया रक्त मेरुरज्जु के समान ही स्टेम कोशिका का समृद्ध भंडार होता है। ये कोशिकाएं एक दिन कुछ खास रोगों के मामले में बच्चे के इलाज के काम आ सकती हैं।
नाभिनाल रक्त को संग्रह करने का व्यवसाय पिछले करीब एक दशक में तेजी से फैला है और आज 15 निजी बैंक यह सेवा दे रहे हैं। वे गर्भवती महिलाओं को यह कहकर अपनी सेवा का उपभोक्ता बनाने की कोशिश करते हैं कि भविष्य में उनके बच्चे के रोग ग्रस्त होने पर यह रक्त उनके बच्चे के लिए एक बीमा साबित हो सकता है।
रक्त संग्रह हालांकि सस्ता नहीं होता। इसके लिए 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक शुल्क लिया जाता है और कुछ बैंक सालाना आधार पर शुल्क लेते हैं। देश में हर साल 2.5 करोड़ या इससे अधिक बच्चों का जन्म होता है। इस लिहाज से इस व्यवसाय को एक बेहद कमाऊ व्यवसाय के रूप में देखा जा रहा है।
चेन्नई में 2004 में स्थापित लाइफसेल का दावा है कि उसके पास एक लाख से अधिक ग्राहक हैं। बेंगलुरू के क्रायो स्टेमसेल का कहना है कि उसके पास 30 हजार ग्राहक हैं। दूसरे बैंक भी पीछे नहीं हैं।
ये बैंक आम तौर पर अनियमित हैं और उनके प्रचार के अनैतिक तरीकों और बढ़ाचढ़ाकर किए जाने वाले दावों ने प्रमुख स्टेम कोशिका शोधार्थियों और महिला रोग चिकित्सकों के संघ को चिंतित कर दिया है।
बेंगलुरू स्थित सोसाइटी ऑफ रीजनरेटिव मेडिसन एंड टिश्यू इंजीनियरिंग की सचिव ज्योत्स्ना राव ने आईएएनएस से कहा, “नाभिनाल रक्त बैंकिंग के खुल्लमखुल्ला व्यवसायीकरण को नियमित करने का समय आ गया है।”
एक प्रमुख स्टेम कोशिका शोधार्थी और मुंबई के कैसिएक रिसर्च के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सतीश टोटे ने कहा, “इस समस्या पर जल्द-से-जल्द रोक लगाने के लिए सरकार को एक उच्चस्तरीय समिति गठित करनी चाहिए।”
लाइफसेल अपनी सेवा का प्रचार करने के लिए एक प्रमुख फिल्मी सितारे का उपयोग करता है, जबकि बेंगलुरू का एक अन्य बैंक अपनी सेवा लेने वाली गर्भवती महिलाओं को आकर्षक उपहार की पेशकश करता है।
राव ने कहा, “ये बैंक उपभोक्ताओं को अपनी सेवा बेचने के लिए चिकित्सकों और नर्सो को रिश्वत भी देते हैं।” टोटे ने कहा कि इस घोटाले में अस्पताल भी शामिल रहते हैं।
गत वर्ष भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने एक अस्पताल पर जुर्माना लगाया था, जो नाभिनाल रक्त बैंक की सेवा के लिए किसी मरीज को सिफारिश देने के लिए बैंक से प्रति मरीज 20 हजार रुपये तक लेता था।
टोटे के मुताबिक, अमेरिका और ब्रिटेन में नाभिनाल रक्त बैंकिंग का प्रचार जीवन बीमा के रूप में नहीं किया जा सकता है, जबकि भारत में लोगों को यह कहकर मूर्ख बनाया जा रहा है कि यह हर रोग का इलाज है।
टोटे ने बताया कि रक्त संबंधी विकारों या उपापचय संबंधी गड़बड़ियों के अलावा अन्य मामलों में इस रक्त से कोई फायदा होने का कोई प्रमाण नहीं है।
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग ने सिर्फ रक्त से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए ही नाभिनाल रक्त के उपयोग को मान्यता दी है।
इटली और फ्रांस में निजी बैंकों को नाभिनाल रक्त संग्रह करने की सेवा देने की अनुमति नहीं है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक्स और कनाडा का सोसायटी ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियंस एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स भी निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा यह सेवा देने का विरोध करता है और सरकारी बैंकों द्वारा नाभिनाल रक्त संग्रहण का समर्थन करता है, जहां सरकारी बैंक संग्रह करने के लिए कोई शुल्क नहीं लें और इलाज में इसका उपयोग करने पर ही शुल्क लिया जाता है।
ऑफ़बीट
ज्वैलर बाप-बेटे ने अमेरिकी महिला से की ठगी, 300 रु वाली ज्वैलरी 6 करोड़ में बेची
जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में धोखाधड़ी का एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां एक ज्वैलर बाप-बेटे की जोड़ी ने एक अमेरिकी महिला को चूना लगाते हुए 300 रु वाली ज्वेलरी 6 करोड़ में बेच दी। ज्वैलरी खरीदकर महिला वापस अमेरका लौट गई। दो साल बीत गए लेकिन महिला को ज्वेलरी के नकली होने का पता नहीं चला। इस बीच महिला ने अमेरिका में ही एक एग्जीबिशन में स्टॉल लगाई। इस दौरान उसे पता चला कि उसके जेवर नकली हैं। यह सुनते ही उसके होश उड़ गए। वो शिकायत करने के लिए एक महीने पहले वापस जयपुर पहुंची। महिला ने अपने साथ हुई धोखाधड़ी की शिकायत पुलिस से दर्ज कराई है।
पुलिस ने बताया कि जयपुर के एक ज्वैलर पिता-पुत्र ने अमेरिकी नागरिक महिला को 6 करोड़ रुपये के नकली आभूषण बेचे। ये दोनों आरोपी गौरव सोनी और उसके पिता राजेंद्र सोनी फरार हैं। गौरव की पत्नी और बच्चे भी फरार हैं। गौरव सोनी के लिए लुकआउट नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने बताया कि महिला ने फरवरी-मार्च में अमेरिका में प्रदर्शनी लगाई। वहां आभूषणों की जांच की जा रही थी, तो उसने कुछ आभूषणों की जांच कराई। उसे पता चला कि सोना 9 कैरेट का है, जबकि हॉलमार्क पेपर में 14 कैरेट का लिखा था। हीरा मोइसैनाइट निकला।
अधिकारी के अनुसार, इसके बाद महिला जयपुर आई और उसने गौरव सोनी से आभूषण बदलने का अनुरोध किया, लेकिन कोई फायदा नहींहुआ। उसने उन्हें पुलिस केस करने की चेतावनी दी, लेकिन उन्होंने उसे रोकने की कोशिश की। गौरव सोनी और उसके पिता ने उसे रोकने का वीडियो पुलिस को भेज दिया और आरोप लगाया कि विदेशी महिला ने उनकी दुकान में लूटपाट की है लेकिन जब जांच हुई तो उसके पास सारे बिल और सबूत थे। इसलिए मामला नहीं बना।
महिला ने अमेरिकी दूतावास में भी शिकायत की। महिला की शिकायत पर मामला दर्ज हुआ और जांच हुई। इसी दौरान महिला की दोनों बाप-बेटों के साथ एक मीटिंग हुई जिसमें वो चेरिस को करीब 3 करोड़ रुपये मुआवजा देने पर सहमत हुए। उन्होंने 2 दिन का समय मांगा लेकिन आखिरी दिन पिता-पुत्र ने अपने मोबाइल फोन बंद कर लिए और फरार हो गए।
पुलिस ने बताया कि इसके बाद हमने उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जिसने ज्वैलरी के झूठे प्रमाण पत्र जारी किए। हमने गौरव सोनी के लिए लुकआउट नोटिस जारी किया है। हम पिता के लिए भी लुकआउट नोटिस जारी करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भी पता चला कि गौरव सोनी की पत्नी के नाम पर एक फर्म है और उसे उसी खाते में ज़्यादातर पैसे मिले हैं।
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