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कोर्ट के आदेश से सामने आई मायावती की दादागिरी!

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मायावती की दादागिरी, सुप्रीमकोर्ट, पूर्व बसपा सरकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ की जिला जेल आदर्श कारागार

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न्यायालय की अवमानना करने वाले अफसरों पर होगी कार्रवाई
राकेश यादव
लखनऊ। सुप्रीमकोर्ट के एक आदेश ने प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार की सुप्रिमों मायावती की दादागिरी का खुलासा कर दिया है। दो दिन पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने लखनऊ की जेलों को ध्‍वस्त किये जाने के मामले मे इलाहाबाद के हाईकोर्ट के स्टे आर्डर को वैध करार देते हुए बन्दियों को पूर्व की जेल मे रखे जाने का आदेश दिया है। सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश के बाद शासन एवं प्रशासन के अधिकारियों में खलबली मच गई है। चर्चा है कि न्यायालय के आदेश का अवमानना कर लखनऊ की प्राचीन जेलों को ध्वस्त करने वाले तत्कालीन अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। यह अलग बात है कि शासन एवं कारागार विभाग के उच्च अधिकारी इस मसले पर टिप्पणी करने से बच रहे है।

प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार की मुखिया एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने राजधानी लखनऊ के शहरी सीमा मे आने वाली जिला जेल, आदर्श कारागार (माडल जेल) एवं नारी बन्दी निकेतन (महिला जेल) को शहर से बाहर करने का फैसला लिया। बसपा सुप्रीमों का फरमान होने की वजह से नौकर शाही ने आनन फानन में मोहनलालगंज-गोसाइगंज में मार्ग पर जमीन ले कर नई जेलों का निर्माण का कार्य प्रारम्भ करा दिया।

सैकड़ों वर्ष पुरानी लखनऊ की जिला जेल, आदर्श कारागार को अन्यत्र स्थानत्रण किये जाने को लेकर जबरदस्त विरोध हुआ। विरोधस्वरूप अधिवक्ता संगम लाल पाण्डेय ने लखनऊ जेल स्थानत्रण किये जाने के मामले को लेकर एक जनहित याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एक खण्डपीठ ने जेलों की ध्वस्तीकरण किये जाने पर रोक लगाते हुए निर्देष दिया कि जेल यथा स्थिति को बनाये रखा जायें।

इस आदेश के विरोध मे सरकार ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खट-खटाया। इस न्यायिक प्रक्रिया चलने के बाद बसपा सुप्रीमों ने जेलों की ध्वस्तीकरण के कार्य को यथावत जारी रखा। बताया गया कि तत्कालीन बसपा सरकार के निवेदन पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के पूर्व आदेश पर स्टे कर दिया। आदेश पर स्टे होने के बावजूद बसपा सुप्रीमों मायावती के निर्देष पर जेल रोड स्थित जेलों को ध्वस्त करा दिया। इन जेलों मे बन्द बन्दियों को अधूरी नव निर्मित जेलों मे आनन फानन मे स्थानत्रित करा दिया। दो दिन पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के स्टे आर्डर को ठीक बताते हुये बन्दियों को पुरानी जेल मे रखने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से शासन के अधिकारियों मे हड़कम्प मचा हुआ है।

चर्चा है कि सुप्रीमकोर्ट ने बन्दियों को जिस स्थान पर रखने का निर्देष दिया है उस स्थान पर बसपा सरकार की सुप्रीमों मायावती ने स्टे आर्डर होने के बावजूद जेलों को ध्वस्त करा कर काशीराम स्मारक एवं ईको पार्क का निर्माण करा दिया है कोर्ट के इस आदेश ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की दादागिरी को सामने ला दिया है। इस बाबत जब विभाग के मुखिया एवं प्रभारी महानिरीक्षक देवेन्द्र सिंह चौहान से पूछा गया तो उन्होने इसे न्यायालय का मामला बताते हुए कुछ भी टिप्पणी करने से मना कर दिया। उधर प्रमुख सचिव कारागार आर.के. तिवारी से काफी प्रयास के बाद भी सम्पर्क नही हो सका।

नेशनल

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की माता व ग्वालियर राज घराने की राजमाता माधवी राजे सिंधिया का निधन हो गया है। उनका इलाज पिछले दो महीनों से दिल्ली के एम्स में चल रहा था। आज सुबह 9.28 बजे उन्होंने दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली।

हाल ही में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि, राजमाता माधवी राजे को सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें 15 फरवरी को दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था। इसी साल 6 मार्च को भी उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। उस समय भी उनकी हालत नाजुक थी और उनको लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर रखा गया था।

पहली बार 15 फरवरी को माधवी राजे की तबीयत बिगड़ी थी, उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसके बाद से ही उनकी हालत नाजुक बनी हुई थे। वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थीं। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कुछ समय पहले यह जानकारी शेयर की थी।

नेपाल राजघराने से माधवीराजे सिंधिया का संबंध है। उनके दादा शमशेर जंग बहादुर राणा नेपाल के प्रधानमंत्री थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया के साथ माधवी राजे के विवाह से पहले प्रिंसेस किरण राज्यलक्ष्मी देवी उनका नाम था। साल 1966 में माधवराव सिंधिया के साथ उनका विवाह हुआ था। मराठी परंपरा के मुताबिक शादी के बाद उनका नाम बदलकर माधवीराजे सिंधिया रखा गया था। पहले वे महारानी थीं, लेकिन 30 सितंबर 2001 को उनके पति और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के निधन के बाद से उन्हें राजमाता के नाम से संबोधित किया जाने लगा।

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