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ओंकारेश्वर बांध प्रभावित कई किसान ‘गजेंद्र’ बनने को आतुर!

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खंडवा| दिल्ली में सरेआम पेड़ पर लटककर जान देने वाले राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह को देश अभी भूला नहीं है, वहीं मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से डूब में आई जमीन के किसान उसी राह पर चलने को आतुर हैं, वे लगातार 17 दिनों से पानी में हैं और स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि उनके पैर की चमड़ी गलकर मछलियों का निवाला बन रही है। अपने हक के लिए ये किसान जान देने पर आमादा हैं।

इंदौर-खंडवा मार्ग से लगभग 30 किलोमीटर अंदर बसा घोगलगांव इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है, क्योंकि यहां ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर 189 मीटर से 191 मीटर किए जाने से कई किसानों की जमीन पानी में डूब चली है और किसान इसके खिलाफ अपने ही तरह से अहिंसक जल सत्याग्रह किए जा रहे हैं।

घोगलगांव से गुजरते हुए बांध की ओर बढ़ने पर एक खुले खेत में सैकड़ों लोगों का जमावड़ा और खेतों में भर चुके पानी में बैठे लोग आंदोलन की नई इबारत लिखते नजर आ जाते हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक इस आंदोलन में साथ खड़े हैं। इतना ही नहीं वे जान दे देंगे मगर जमीन नहीं जाने देंगे की जिद पर अड़े हैं।

आंदोलनकारियों का जल सत्याग्रह रमेश तिरोले की उस साढ़े चार एकड़ जमीन पर चल रहा है, जो बांध का जलस्तर बढ़ने से डूब गई है। रमेश अकेला नहीं है और भी कई किसान हैं, जिनकी जमीन डूब में आ गई है। रमेश ने इस साल यहां गेहूं बोया था, उसे काट चुका था और फिर उसने मूंग बोई तभी बांध का पानी उसके खेत में आ गया। उसकी मेहनत और बीज दोनों बर्बाद हो गए हैं।

रमेश ने आईएएनएस से अपने बचपन के दिनों की याद को ताजा किया। उसने बताया कि वह बचपन में उत्साह और प्रसन्नता से लगभग 10 किलोमीटर का रास्ता तय कर नर्मदा नदी में स्नान करने जाता था, मगर आज सरकार की नीति ने उसे नर्मदा में ही डूबकर मरने को मजबूर कर दिया है।

रमेश को भी सरकार ने मुआवजा दिया था, मगर वह बहुत थोड़ा था, वहीं जमीन नहीं दी गई। 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि पुनर्वास नीति का पालन नहीं किया गया है। यह प्रकरण शिकायत निवारण प्राधिकरण में गया, 2,400 परिवारों ने दावा किया। प्राधिकरण ने भी 2012-13 में माना कि पुनर्वास नीति का पालन नहीं हुआ है। इस पर प्रभवितों से पुनर्वास नीति का लाभ पाने के लिए मुआवजे की 50 प्रतिशत राशि वापस करने को कहा गया।

रमेश बताता है कि प्राधिकरण के आदेश पर लगभग 700 परिवारों ने सूदखोरों से दो से तीन प्रतिशत मासिक ब्याज पर कर्ज लेकर मुआवजे की राशि सरकार को वापस कर दी। जितना उन्होंने कर्ज लिया था उससे ज्यादा राशि सूदखोर को ब्याज में दे चुके हैं, उन्हें अभी न मुआवजा मिला है और न ही जमीन के बदले जमीन दी गई है। वहीं उनकी खेती की जमीन पानी में डुबो दी गई है।

नन्ही बाई अपने पति कोमल के साथ जल सत्याग्रह कर रही है। वह कहती है कि या तो अपनी जमीन पाने के बाद ही पानी से बाहर आएंगी या नर्मदा मैया की गोद में जान दे देंगी। उन्होंने कर्ज लेकर मुआवजे की राशि वापस की थी, सूदखोर का कर्ज अभी उन पर है। शांति से जीवन नहीं जी पा रही हैं, एक तरफ सूदखोर परेशान करता है दूसरी ओर उनकी ढाई एकड़ जमीन डूब में चली गई है। अब तो उनके लिए मरना ही एक रास्ता बचा है, लिहाजा जिसके साथ उसने सात फेरे लिए थे उसी के साथ दुनिया छोड़ना चाहती है।

आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ सदस्य और आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक अलोक अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि इंदिरा सागर बांध के प्रभावितों को वर्ष 2013 में लगभग छह लाख प्रति एकड़ का मुआवजा दिया गया है, मगर ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों के साथ ऐसा नहीं हो रहा हैं। पुनर्वास नीति कहती है कि ऐसे डूब प्रभावित किसान जिनके पास पांच एकड़ से कम या पांच एकड़ तक जमीन है, उन्हें कम से कम पांच एकड़ खेती योग्य जमीन दी जाए, मगर राज्य सरकार पथरीली जमीन देने की बात करती है, जिस पर खेती की ही नहीं जा सकती।

पिछले 17 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे 20 किसान इस बात पर अड़े हैं कि वे अपना हक लेकर रहेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें भले ही अपनी जान की कीमत क्यों न चुकाना पड़े। वहीं सरकार यही कह रही है कि उसने प्रभावितों के लिए बीते वर्ष 225 करोड़ का विशेष पैकेज मंजूर किया था, बांध में जलस्तर बढ़ने का सिर्फ 213 लोग ही विरोध कर रहे हैं, लिहाजा वह इन की मांग पर हजारों किसानों को सिंचाई के लिए मिलने वाले पानी के लाभ से वंचित नहीं कर सकते।

सरकार ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घटाने को तैयार नहीं है, किसान अपना हक पाए बगैर पानी से हटने को तैयार नहीं है, लिहाजा स्थिति टकराव की बनी हुई है। जल्द कोई समाधानकारक रास्ता नहीं निकला तो किसी अनहोनी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और अगर ऐसा हुआ तो सरकार कटघरे में होगी।

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राजस्थान के दौसा में सड़क किनारे सो रहे 11 लोगों को बेकाबू कार ने कुचला, तीन की मौत, 8 घायल

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दौसा। राजस्थान के दौसा में बड़ा सड़क हादसा हुआ है। यहाँ एक बेकाबू कार ने सड़क किनारे सो रहे 11 लोगों को कुचल दिया। इस हादसे में तीन लोगों की मौत हो गई है जबकि 8 लोग गंभीर रूप से घायल हैं। मृतकों में एक बच्ची भी शामिल है। पुलिस ने बताया कि हादसे में दो घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई, जबकि छह को आगे के इलाज के लिए जयपुर के एसएमएस अस्पताल में रेफर किया गया। कार को जब्त कर लिया गया है, हालांकि चालक फरार है। उसे पकड़ने की कोशिश की जा रही है।

हादसा गुरुवार की रात करीब 11.15 बजे हुआ है। सभी मृतक व घायल खानाबदोश परिवार के लोग थे, जो टीकाराम पालीवाल गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल के पास सड़क किनारे झुग्गी में रहते थे। हेड कॉन्स्टेबल बृजकिशोर ने बताया कि रात करीब 11.20 बजे घटना की सूचना पुलिस को मिली थी। फौरन पुलिस मौके पर पहुंची। जांच में सामने आया कि तेज रफ्तार कार के ड्राइवर ने तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए सड़क किनारे सो रहे लोगों को कुचल दिया है। घटना की सूचना पर गुरुवार की देर रात महवा विधायक राजेंद्र मीणा हॉस्पिटल पहुंचे। उन्होंने डॉक्टरों से घायलों का हालचाल जाना और थाना इंचार्ज जितेंद्र सोलंकी को कार ड्राइवर के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए कहा।

जयपुर स्थित एसएमएस हॉस्पिटल में ट्रॉमा सेंटर के इंचार्ज डॉ. अनुराग धाकड़ ने बताया कि दौसा के महवा से रेफर होकर 6 घायलों को यहां भर्ती किया गया था। इसमें से 1 दिलीप नाम के युवक को छुट्‌टी दे दी गई है। 5 अन्य को सर्जरी यूनिट में भर्ती रखा गया है। इसमें एक मरीज के सिर में थोड़ी ज्यादा चोट है, बाकी चार की स्थिति सामान्य है। इनका इलाज चल रहा है।

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