आध्यात्म
ऐसे करें मंत्रों का जप, हर मनोकामना होगी पूरी
मंत्रों के जप के लिए मन का संकल्पवान और एकाग्र होना बेहद जरूरी है। इसके बिना कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति होना मुश्किल होता है। यहां हम मंत्र जप से संबंधित 10 जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं। यदि मंत्र का सद़गुरु के मार्गदर्शन में अनुशासन और विधि विधान से अनुष्ठान किया जाए तो कोई वजह नहीं कि कार्यसिद्ध न हो। मनचाहे कार्यों को सिद्ध करने के लिए नीचे दी गई बातें बेहद जरूरी मानी गई हैं-
-मंत्रों की शक्ति का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को भी प्रभावी माना जाता है। महिलाओं के लिए सिद्धयोनि आसन अथवा वीरासन को उचित माना गया है।
-मंत्र जप के लिए सही वक्त और स्थान का होना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है। अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
-मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें। यदि घर में कर रहे हैं तो जगह नियत रखें। किसी तीर्थस्थल अथवा गुरुस्थान पर मंत्र जप का विशेष् लाभ मिलता है।
-एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद स्थान न बदलें। अनुष्ठान पूरा करने तक एक ही सथान पर रहें। एक स्थान नियत कर लें।
-मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है। याद रखें मंत्र के अनुसार माला का चयन करें। जैसे आप यदि शिव मंत्र का जाप करना चाह रहे हैं तो रुद्राक्ष की माला लें। देवी मंत्र के जाप के लिए चंदन या स्फटिक की माला लें।
-किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।
-मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। नहा धोकर साफ धुले कपड़ पहनकर सात्विक भाव से जाप करें। मंत्रों का उच्चारण भी सही रखें।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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