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इस कायराना आतंकी हमले पर क्‍या लिखूं?

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पंजाब में एक और कायराना आतंकी हमला, राजनैतिक विरोध, भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद

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पंजाब में एक और कायराना आतंकी हमला हुआ। मन व्‍यथित और उदास है, समझ नहीं पा रहा हूं कि क्‍या लिखूं? अपने देश के जांबाजों की बहादुरी पर लिखूं या आतंकियों की कायराना हरकत पर लिखूं। आतंकी की फांसी के खिलाफ महा‍महिम को लिखी चिट्ठी पर लिखूं या आतंकी हमलों में मारे जाने वाले निर्दोष लोगों की मौत पर लिखूं।

टीवी पर बैठकर आतंकी के धर्म को लेकर होती बेनतीजा बहसों पर लिखूं या माइनस 38 डिग्री के तापमान पर भी अपनी जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करने वाले जवानों पर लिखूं। आतंक का कोई धर्म न होने के बावजूद किसी आतंकी को फांसी होने पर धर्म के नाम पर कुछ लोगों के विधवा विलाप पर लिखूं या निष्‍पक्ष अदालती प्रक्रिया के बाद सुनाई जाने वाली सजा पर लिखूं। आतंकी या नक्‍सली घटनाओं में शहीद होने वाले सुरक्षाबलों के जवानों की शहादत पर लिखूं या आतंकी और नक्‍सली के मानवाधिकार को लेकर प्रदर्शन करने वालों पर लिखूं।

सचमुच आज कुछ समझ में नही आ रहा है कि क्‍या लिखूं? आखिर हम अपने देश को किधर ले जाना चाह रहे हैं? क्‍या निर्दोष नागरिकों और देश की रक्षा के लगे जवानों को शहीद करने वालों का कोई मानवाधिकार हो सकता है? और यदि हो सकता है तो फिर सुरक्षा के नाम पर जवानों को शहीद करने का क्‍या मतलब? सीधे-सीधे आतंकियों और न‍क्‍सलियों को छूट दे दो कि भाई आओ और‍ निर्दोषों की हत्‍या करके चले जाओ हम तुम्‍हें कुछ नहीं कहेंगे क्‍योंकि यही तुम्‍हारा मानवाधिकार है।

किसी राजनैतिक विरोध में हम कितना गिर सकते हैं इसकी पराकाष्‍ठा आज भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में देखने को मिली, जब पंजाब में आतंकी मुठभेड़ चल रही थी तो कुछ राजनेता तब भी संसद में ललितगेट और व्‍यापम को लेकर हो-हल्‍ला कर रहे थे। क्‍या यह उचित समय था इन बातों के लिए? क्‍या आज सभी चर्चा या विरोध रोककर आतंकी हमलों की भर्त्‍सना व उससे निपटने के उपायों पर एकजुट होकर चर्चा नहीं की जानी चाहिए थी?

कुछ दिन तक इस आतंकी हमले की भी चर्चा संसद से लेकर सड़क और टीवी से लेकर अखबारों व वेबसाइटों तक चलेगी। मीडिया ट्रायल इस बात पर भी होगा कि हमारी खुफिया एजेंसियों फेल हो गई बाद में जब इन्‍ही में से किसी आतंकी को उसके गुनाहों की सजा कोर्ट देगा तब उस पर भी मीडिया ट्रायल होगा। सवाल यह है कि जो निर्दोष नागरिक व जवान ऐसी घटनाओं में शहीद होते हैं उनके परिवारों का क्‍या होगा इस बात की चर्चा कहीं नहीं होती।

सोचिए, संसद हमले में शहीद जवानों के परिवार वालों पर तब क्‍या बीती होगी जब इस हमले के दोषी अफजल गुरू की फांसी होने पर तमाम सेक्‍यु‍लरिस्‍टों ने छाती कूट-कूट कर विरोध किया था। हमें इस सोच को बदलना होगा। हमें देश से ऊपर कोई नहीं, यह सोच विकसित करनी होगी और जबतक ऐसा नहीं होगा तब तक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी। निर्दोष नागरिक मरते रहेंगे, जवान शहीद होते रहेंगे।

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नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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