अन्तर्राष्ट्रीय
अमेरिकी अदालत ने मांगे मोदी के वीजा रिकॉर्ड
अरुण कुमार
अमेरिका की एक संघीय अदालत के न्यायाधीश ने विदेश विभाग को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटाने के ओबामा प्रशासन के निर्णय से संबंधित सभी दस्तावेज फरवरी 2016 तक पेश करने के आदेश दिए हैं।
न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले के न्यायाधीश जॉन जी. कोएल्टल ने नौ दिसंबर के अपने आदेश में कहा है, “विदेश विभाग मध्य जनवरी 2016 में प्रारंभिक दस्तावेज पेश करेगा और उसके बाद मध्य फरवरी में दस्तावेज की दूसरी खेप पेश करेगा।”
न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि मामले की अगली सुनवाई 29 फरवरी को होगी।
मोदी को पूर्व में जारी किया गया पर्यटक वीजा, 2002 के गुजरात दंगे में उनकी कथित भूमिका को लेकर 2005 में रद्द कर दिया गया था। उस समय वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
लेकिन मई 2014 के आम चुनाव के बाद वह देश के प्रधानमंत्री बने और उसके बाद राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें बधाई दी थी और उन्हें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया था।
मोदी उसके बाद से दो बार अमेरिका जा चुके हैं।
मोदी ही एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी कानून के तहत अमेरिकी वीजा से इंकार कर दिया गया था।
लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद उन पर लगा यह प्रतिबंध हटा दिया गया था, क्योंकि शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष इस कानून के दायरे में नहीं आते।
अमेरिका स्थित संगठन, ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) ने ‘फ्रीडम ऑफ इंफॉर्मेशन एक्ट’ (एफओआईए) के तहत विदेश विभाग से जून 2013 से लेकर नरेंद्र मोदी के वीजा और प्रवेश से संबंधित सभी रिकॉर्डस मांगे थे, लेकिन विदेश विभाग ऐसा करने में विफल रहा। इसके खिलाफ इस संस्था ने सितम्बर में शिकायत दर्ज कराई थी।
एसएफजी की शिकायत में अमेरिकी अदालत से हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है और आरोप लगाया है कि, “वर्ष 2005 में या इसके आसपास प्रतिवादी अमेरिकी विदेश विभाग ने नरेंद्र मोदी को दिया गया बी-2 पर्यटक वीजा आईएनए की धारा 212(ए)(2)(जी) के तहत रद्द कर दिया था, क्योंकि एक विदेशी सरकारी अधिकारी के पद पर काम करते हुए मोदी धार्मिक स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार थे, जिसके कारण उनका अमेरिका में प्रवेश अस्वीकार्य था।”
एसएफजे ने पिछले वर्ष अगस्त में एफओआईए के तहत एक याचिक दायर की थी, जिसमें मोदी पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें अमेरिका प्रवेश की फिर से अनुमति देने के बुश और ओबामा प्रशासन के निर्णयों से संबंधित सात प्रमुख श्रेणी के दस्तावेजों को जारी करने की मांग की गई थी।
अन्तर्राष्ट्रीय
कुवैत में संसद भंग, सभी कानून और संविधान के कुछ अनुच्छेद निलंबित
नई दिल्ली। कुवैत के अमीर शेख मिशाल ने संसद को भंग कर दिया है। अमीर ने शुक्रवार को सरकारी टीवी पर एक संबोधन में इसकी घोषणा की। इसके अलावा अमीर ने देश के सभी कानूनों के साथ संविधान के कुछ अनुच्छेदों को चार साल तक के लिए निलंबित कर दिया है। इस दौरान देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाएगा। सरकारी टीवी के मुताबिक, इस दौरान नेशनल असेंबली की सभी शक्तियां अमीर और देश की कैबिनेट के पास होंगी।
एमीर ने सरकारी टीवी पर दिए अपने संबोधन में संसद भंग करने की घोषणा करते हुए कहा, “कुवैत हाल ही में बुरे वक्त से गुजर रहा है, जिसकी वजह से किंगडम को बचाने और देश के हितों को सुरक्षित करने के लिए कड़े फैसले लेने में झिझक या देरी करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ सालों में देश के कई डिपार्टमेंट्स में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। भ्रष्टाचार की वजह से देश का महौल खराब हो रहा है। अफसोस की बात ये है कि भ्रष्टाचार सुरक्षा और आर्थिक संस्थानों तक फैल गया है। साथ ही अमीर ने न्याय प्रणाली में भ्रष्टाचार होने की बात कही है।
कुवैत पिछले कुछ सालों से घरेलू राजनीतिक विवादों से घिरा रहा है। देश का वेल्फेयर सिस्टम इस संकट का एक प्रमुख मुद्दा रहा है और इसने सरकार को कर्ज लेने से रोका है। इसकी वजह से अपने तेल भंडार से भारी मुनाफे के बावजूद सरकारी खजाने में पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बहुत कम पैसे बचे हैं। कुवैत में भी दूसरे अरब देशों की तरह शेख वाली राजशाही सिस्टम है लेकिन यहां की विधायिका पड़ोसी देशों से ज्यादा पावरफुल मानी जाती है।
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