Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

प्रधानमंत्री जन धन योजना की चुनौतियां

Published

on

प्रधानमंत्री जन धन योजना, एक दिन में 1.50 करोड़ बैंक खाते, सरकारी अनुदानों का सीधे बैंक खातों में हस्तांतरण

Loading

हिमाद्रि घोष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना की शुरुआत करते हुए कहा था, “आर्थिक इतिहास में पहले कभी भी एक दिन में 1.50 करोड़ बैंक खाते नहीं खोले गए हैं। भारत सरकार ने भी इसके पहले इतने बड़े पैमाने पर इस तरह के कार्यक्रम नहीं आयोजित किए हैं।” 17 महीने बाद जनवरी, 2016 में यह योजना हर भारतीय के घरों तक पहुंच गई है। अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 20 करोड़ अतिरिक्त परिवार बैंकिंग प्रणाली से जोड़े गए हैं। लेकिन सरकारी अनुदानों को सीधे बैंक खातों में हस्तांतरण से संबंधित दो चुनौतियां अभी तक कम नहीं हो पाईं हैं। इनमें पहली है आधार संख्या को बैंक खाते से जोड़ना और दूसरी चुनौती है कि लाभार्थी बैंक खाते का इस्तेमाल करें। जैसा कि इंडिया स्पेंड ने पहले जानकारी दी थी कि खाते खुलने की गति लाभ मिलने से कहीं अधिक तेज थी। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी बैंकों को इस बात से आगाह किया था कि वे सिर्फ बैंक खातों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान न दें।

प्रधानमंत्री जन धन योजना का हाल यह है कि 21 करोड़ खातों में आधे से भी कम खाते 31 जनवरी, 2016 तक आधार संख्या से जुड़ पाए हैं और 30 फीसदी से अधिक खातों में एक पैसा भी नहीं है। अर्थात खाता धारक बैंक खातों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जहां तक आधार संख्या को बैंक खातों से जोड़ने की बात है तो आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र अब भी इस मामले से जूझ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, ये सभी राज्य मिलकर भी 40 फीसदी से कम खातों को आधार संख्या से जोड़ पाए हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार ने 2015 में 266,700 करोड़ रुपये (45 अरब डॉलर) सब्सिडी देने पर खर्च किए थे, जिनमें 122,700 करोड़ रुपये खाद्य पदार्थो, 71,000 करोड़ रुपये उर्वरक और 60,300 करोड़ रुपये तेल पर व्यय किए गए, लेकिन आकलन के मुताबिक इनमें आधे से अधिक रकम का दुरुपयोग हुआ।

कोटक सट्रेटजी रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने जो सबसे बड़ा सुधार शुरू किया है, वह यह कि रसोई ईंधन, ऑटो ईंधन, खाद्य पदार्थो और उर्वरकों को बाजार मूल्य तंत्र से जोड़ा जा रहा है। इस संबंध में पुणे के एफएलएमई विश्वविद्याालय में लोकनीति और प्रशासन विभाग के प्रोफेसर संतोष कुमार का कहना है, “कोई भी नीति स्वयं काम नहीं करती है। इसके लिए जरूरी है कि लोग इसका उपयोग करना जानें और इसे समुचित रूप से लागू करने की राजनीतिक इच्छा शक्ति मजबूत हो।” उनका मानना है पीएमजेडीवाई जैसी वित्तीय योजनाओं को समुचित रूप से लागू करने में समय लगेगा, क्योंकि देश में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो बैंक, लोन और सब्सिडी जैसे शब्दों से अभी तक परिचित नहीं हैं। ध्यान देने योग्य है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना से आधार संख्या और मोबाइल नम्बर से जोड़ना संरचनात्मक आर्थिक सुधार का महत्वपूर्ण कारक हो सकता था। इस बात का जिक्र 2015 के आर्थिक सव्रेक्षण और बजट में भी किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि लाभार्थियों की पहचान की जा सके और सब्सिडी सीधे उनके खाते में जाए।

इस विषय पर प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ में लिखा, “वित्तीय समावेशन के दो पहलू हैं- पहला बैंक खाता और ऋण तक लोगों की पहुंच। प्रधानमंत्री ने जिस योजना की घोषणा की है, वह पहली समस्या को तो रेखांकित करती है, लेकिन छोटे कर्जदारों को ऋण उपलब्ध कराने की समस्या अब भी बनी हुई है।” छोटे कर्जदारों के लिए ऋण की समस्या की पुष्टि 2013 में प्रकाशित रिजर्व बैंक के लेख से भी होती है, जिसमें कहा गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों मे 42 फीसदी से अधिक ऋण गैर संस्थागत श्रोतों से अपलब्ध होते हैं। यह ग्रामीण भारत के ऋण बाजार की विशेषता है कि यहां औपचारिक और अनौपचारिक वित्तीय श्रोत उपलब्ध हैं। नतीजा यह है कि बाजार विखंडित है। खास बात है कि चार बार सर्वे करने के बाद रिजर्व बैंक इस नतीजे पर पहुंचा था।

पीएमजेडीवाई के बारे में दिली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर अनन्दिता राय साहा का कहना है कि योजना तो अच्छी है, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “ग्रामीण और शहरी भारत को अलग से देखने की जरूरत है और साथ ही लक्ष्य प्राप्ति के लिए लोगों को वित्तीय व्यवस्था से परिचित कराने की भी आवश्यकता है।” इसी तरह पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने भी छह करोड़ बैंक खाते खुलावाए थे, लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक आधे से अधिक निष्क्रिय रहे। इसलिए प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि अधिक से अधिक कमजोर लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ना ही वित्तीय समावेशन का उद्देश्य होना चाहिए। साथ ही लोगों को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि योजनाओं की संभावनाएं क्या हैं और उनके पास इसके लिए दस्तावेज हैं या नहीं, तभी वे योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे।

(आकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। हिमाद्रि घोष जमीनी पत्रकारों के एक अखिल भारतीय नेटवर्क, 101रिपोर्टर्स डॉट कॉम के साथ जुड़ी हुई हैं।)

नेशनल

‘जल्द करनी पड़ेगी शादी’, राहुल गांधी ने मंच से किया एलान

Published

on

Loading

रायबरेली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार के लिए आज रायबरेली पहुंचे। जहां उन्होंने जनसभा को संबोधित किया। इस दौरान राहुल गांधी से जनता में से किसी ने शादी को लेकर सवाल पूछा जिस पर राहुल गांधी ने कहा कि मेरी बहन प्रियंका गांधी मेरी मदद के लिए यहां अपना खून पसीना आपको दे रही है। जिस पर प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी से शादी के सवाल की तरफ इशारा करते हुए कहा कि पहले इस सवाल का जवाब दो। जिसके जवाब में मुस्कुराते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अब जल्द ही करनी पड़ेगी।

इस दौरान राहुल गांधी ने जनसभा को संबोधित बताया कि किस वजह से वो रायबरेली से चुनाव लड़ने आएं हैं। उन्होंने कहा, ‘कुछ दिन पहले मैं मां (सोनिया गांधी) के साथ बैठा था। मैंने मां से कहा कि एक-दो साल पहले मैंने एक वीडियो में कह दिया कि मेरी दो माता थी एक सोनिया गांधी और दूसरी इंदिरा गांधी। मेरी दोनों माताओं की ये कर्म भूमि है इसलिए मैं यहां रायबरेली से चुनाव लड़ने आया हूं।

राहुल गांधी ने आगे कहा कि कांग्रेस की सरकार आते ही कर्जा माफ करना पहला काम होगा। दूसरा काम किसानो के लिए कानूनी सपोर्ट प्राइस लेके आयंगे। राहुल गांधी ने तीसरा काम गिनाते हुए कहा कि किसानो को 30 दिन के अंदर बीमा का पैसा देना तीसरा काम होगा।

राहुल गांधी ने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि बीजेपी के नेताओं ने साफ कहा की अगर चुनाव जीते तो संविधान को बदल देंगे। संविधान के बिना अडानी और अंबानी की सरकार होगी। आरक्षण और आपको जो भी चीजे मिलती है वो सब खत्म हो जाएंगी। राहुल गांधी ने आगे कहा कि संविधान खत्म होने से आपका रास्ता खत्म हो जाएगा. ये लड़ाई संविधान को बचाने की है।

Continue Reading

Trending