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मुख्य समाचार

शिवराज के 9 वर्ष बनाम विरोधियों पर लगाम!

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भोपाल| मध्य प्रदेश की सियासत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन चार मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, जिन्हें पांच वर्ष से ज्यादा समय तक राज्य के मुखिया की कमान संभालने का मौका मिला है, मगर वे उन सबसे इस मामले में जुदा हैं कि उनके शासनकाल में न विरोध पनप पाया और न ही विरोधी। वहीं जनता के बीच अपनी छवि को बनाए रखने में भी उन्होंने कामयाबी हासिल की।

राज्य की राजनीति में चौहान का पदार्पण 29 नवंबर, 2005 को अचानक एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ हुआ, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में गुटीय राजनीति चरम पर थी। प्रशासनिक अनुभव नहीं होने के बावजूद पार्टी ने चौहान को मुख्यमंत्री जैसे अहम पद की जिम्मेदारी सौंपी।

चौहान के मुख्यमंत्री बनते ही तरह-तरह के किस्से राजनीति के गलियारे में आम हो चले थे। इसकी वजह यह थी कि पूर्व में इस राज्य की कमान द्वारका प्रसाद मिश्र, अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी और दिग्विजय सिंह जैसे राजनीति के तजुर्बेकार नेताओं के हाथों में रह चुकी थी। वहीं राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के दो वर्ष के भीतर दो मुख्यमंत्रियों- उमा भारती व बाबूलाल गौर के बाद चौहान को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

घोटाले भी हुए, पर आंच नहीं आई :

नौ वर्ष के इस शासनकाल में डम्पर कांड, व्यापमं फर्जीवाड़ा, दवा खरीद घोटाला, जमीन आवंटन में गड़बड़ी, परिजनों पर आरोप, मंत्रियों के खिलाफ लोकायुक्त में प्रकरण, मंत्रियों के यहां आयकर के छापे सहित कई ऐसे मामले रहे हैं जो चौहान के लिए मुसीबत का कारण बन सकते थे, लेकिन कांग्रेस इन मामलों को भुना नहीं पाई। परिणामस्वरूप चौहान पर आंच तक नहीं आई। इतना ही नहीं, जब भी कांग्रेस के हमले तेज हुए तो उन्होंने कांग्रेस के नेताओं का पाला बदलवाकर कांग्रेस को ही मुसीबत में डाल दिया।

विरोध पर लगाम लगाने में माहिर :

एक तरफ जहां विरोधी दल कांग्रेस उन्हें घेरने में नाकाम रही, वहीं दूसरी ओर उन्होंने पार्टी के भीतर पनपने वाले असंतोष को भी जोर नहीं पकड़ने दिया। उमा भारती को राज्य की राजनीति में दखल से रोका तो बाबूलाल गौर जैसे नेता ज्यादा मुसीबत नहीं बन पाए।

पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा को दोबारा प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने दिया। रघुनंदन शर्मा ने कभी कभार चौहान के खिलाफ कुछ बोला तो वे दोबारा राज्यसभा में नहीं जा पाए। अब हाल यह है कि प्रदेश में पार्टी के भीतर उनके खिलाफ कोई बोलने का साहस ही नहीं कर पाता है। चौहान की खूबी यह है कि वे किसी के खिलाफ बोलने में भरोसा नहीं करते।

एक तरफ चौहान ने जहां पार्टी के बाहर और भीतर के विरोध पर लगाम कसे रखी वहीं आम जनता के बीच अपनी पैठ बनाने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। उन्होंने लाडली लक्ष्मी योजना, कन्याधन योजना, अन्नपूर्णा योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना जैसी योजनाओं को अमली जामा पहनाया, जिसके बल पर वे हर वर्ग में लोकप्रिय बने रहे।

इतना ही नहीं, उन्होंने खुद की साम्प्रदायिक सद्भाव वाले नेता की छवि बनाने में कसर नहीं छोड़ी। इसी का नतीजा रहा कि भाजपा ने राज्य में उनकी अगुवाई में दो विधानसभा व लोकसभा चुनाव के साथ नगरीय निकाय व पंचायतों के चुनाव में सफलता हासिल की।

राज्य की पांच दशक की राजनीतिक गतिविधियों पर ‘राजनीति नामा’ पुस्तक लिखने वाले पत्रकार दीपक तिवारी कहते हैं, “चौहान अपनी खूबियों के कारण विपक्षी दल व पार्टी के भीतर के विरोधियों को किनारे लगाने में सफल रहे हैं। वे उन राजनेताओं में से हैं जो हवा का रुख पहले ही पहचान लेते हैं।”

तिवारी ने कहा, “वे किसी विषय को अपनी प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ते और टकराव में भरोसा नहीं रखते। इतना ही नहीं राज्य का मुख्यमंत्री होते हुए भी उन्होंने कभी अपने को मजबूत दिखाने की कोशिश नहीं की और किसी गुट के अगुआ नहीं बने, लिहाजा राष्ट्रीय स्तर पर किसी ने उनका विरोध तक नहीं किया।”

तिवारी कहते हैं कि चौहान ने विनम्रता के बल पर बड़े से बड़े हथियारों को भोथरा करने का काम किया है। उन्होंने अपने को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बड़ा समर्थक साबित करने का मौका कभी हाथ से नहीं जाने दिया, यही कारण है कि संघ का एक बड़ा वर्ग उनका पक्षधर रहा है।

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के. के. मिश्रा बीते नौ वर्षो को समस्याओं का काल करार देते हैं। उनका कहना है, “चौहान का काल लफ्फाजी और झूठे वादों के लिए याद किया जाएगा। इस अवधि में हर वर्ग को छला और ठगा गया है। महिला अपराध, घोटाले और बेरोजगारों से ठगी ने राज्य का बुरा हाल कर रखा है। जहां तक चुनाव जीतने की बात है तो झूठे वादे और प्रलोभन के बल पर जनता को छला गया है।”

वहीं भाजपा के संवाद प्रमुख डॉ. हितेश वाजपेयी का कहना है, “बीते नौ वर्षो में हर वर्ग के विकास के लिए काम किए गए हैं। यही कारण है कि हर क्षेत्र में विकास की दर बढ़ी है। विकासोन्मुखी योजनाओं का ही नतीजा है कि भाजपा के पक्ष में लगातार जनादेश आ रहा है।”

राज्य में बीते नौ वर्षो में चौहान ने अपने मुताबिक हर मोर्चे को मजबूत कर लिया है और पार्टी के भीतर और बाहर से उठने वाले विरोध का प्रतिकार करने की बजाय विरोधियों को किनारे करने में हिचक नहीं दिखाई। यही कारण है कि लोग उन्हें चुप्पा चौहान तक कहते हैं।

खेल-कूद

IPL 2024: खिताबी मुकाबले में आज भिड़ेंगे कोलकाता और हैदराबाद

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चेन्नई। IPL के फाइनल मुकाबले में आज कोलकाता नाइट राइडर्स और सनराइजर्स हैदराबाद की टीमें आमने सामने होंगी। कोलकाता नाइट राइडर्स की टीम शानदार फॉर्म में है। लीग स्टेज में 14 में से 9 मैच जीतकर 20 अंकों के साथ पहले नंबर पर रही। क्वालिफायर-1 में उसने सनराइजर्स को हराया। उसके पास तीसरी बार चैंपियन बनने का मौका है।

वहीं सनराइजर्स हैदराबाद की टीम अंक तालिका में 14 मैच में 8 जीत के साथ दूसरे नंबर पर रही थी। प्लेऑफ-1 में कोलकाता से हारने के बाद क्वालिफायर-2 में राजस्थान रॉयल्स को हराकर फाइनल में पहुंची। उसके पास चैंपियन बनने दूसरा मौका है। कोलकाता ने आखिरी बार 2014 में गौतम गंभीर के नेतृत्व में आईपीएल खिताब जीता था, जो अब फ्रेंचाइजी के मेंटर हैं।

वहीं, सनराइजर्स हैदराबाद ने 2016 में डेविड वार्नर की अगुवाई में खिताब हासिल किया। श्रेयस अय्यर की अगुवाई वाली टीम मैच में मजबूत आत्मविश्वास के साथ उतरेगी। यह तीसरा मौका होगा जब दोनों टीमें सीजन में आमने-सामने है। आमने-सामने की लड़ाई में कोलकाता का पलड़ा भारी है। अब तक दोनों टीमों के बीच कुल 27 मुकाबले हुए। इनमें से 18 मुकाबले कोलकाता ने और 9 मुकाबले हैदराबाद ने जीते।

इस फाइनल मुकाबले की खास बात यह है कि जहां एक तरफ हैदराबाद के पास उनकी तूफानी बैटिंग लाइन-अप है, वहीं दूसरी तरफ कोलकाता की खतरनाक स्पिन जोड़ी, सुनील नारायण और वरुण चक्रवर्ती, जो किसी भी मजबूत बैटिंग लाइन-अप को तोड़ने का माद्दा रखती है। अगर हैदराबाद की बात करे तो गेंदबाज़ी लाइन अप में भुवनेश्वर कुमार कोलकाता के विरुद्ध अहम भूमिका निभा सकते हैं। कुल मिलाकर यह मुकाबला कांटे की टक्कर का होने वाला है, लेकिन पसंदीदा कोलकाता मानी जा रही है।

संभावित प्लेइंग 11

सनराइजर्स हैदराबाद : पैट कमिंस (कप्तान), ट्रैविस हेड, राहुल त्रिपाठी, हेनरिक क्लासेन (विकेटकीपर), अब्दुल समद, एडन मार्करम, अभिषेक शर्मा, नीतीश रेड्डी, भुवनेश्वर कुमार, टी नटराजन और मयंक मारकंडे।

कोलकाता नाइट राइडर्स : श्रेयस अय्यर (कप्तान), रहमनुल्लाह गुरबाज (विकेटकीपर), रिंकू सिंह, रमनदीप सिंह, वेंकटेश अय्यर, सुनील नारायण, आंद्रे रसल, हर्षित राणा, वैभव अरोड़ा, मिचेल स्टार्क और वरुण चक्रवर्ती।

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