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कई अर्थ छिपे हैं सरहद पार के इस वार में

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भारतीय सेना ने जिस अदम्य साहस का परिचय देते हुए म्यांमार सीमा में करीब दो किलोमीटर अंदर जाकर आतंकियों को ढेर किया, उसकी जितनी भी सराहना की जाए वह कम है। सेना की इस कार्रवाई से न केवल उसके सैनिकों का हौसला बुलंद हुआ है बल्कि उन देशों को भी कड़ा संदेश मिल गया है जो भारत को कमजोर समझने की भूल करते हैं। इस कार्रवाई के माध्यम में सेना ने अपने 18 जांबाज शहीदों को श्रद्धांजलि दी है। सेना का यह भी कहना है कि उसे विश्वसनीय सूचना मिली थी कि ये आतंकी गुट फिर हमारी सीमा के अंदर कुछ और हमलों की साजिश रच रहे थे। ऐसे में भविष्य के खतरों को टालने और आतंकियों की कमर तोड़ने के लिए ये कार्रवाई बेहद जरूरी थी।

उग्रवादियों के खिलाफ सेना के इस ऑपरेशन ने देश के लोगों में उत्साह का संचार किया है। वैसे भी हाल के कुछ वर्षों में पाकिस्तान और चीन की हरकतों के खिलाफ सरकारों के ढुलमुल रवैये के कारण देश की छवि एक ‘सॉफ्ट कंट्री’ की बन गई थी। यह माना जाने लगा था कि भारत के खिलाफ कोई कुछ भी करता रहे, हम सिर्फ मौखिक विरोध दर्ज कराकर रह जाएंगे। ऐसे हालात में अक्सर सेना का मनोबल भी टूट जाता था। हम बस बेबस होकर अपने सैनिकों को शहीद होते देखते रह जाते थे लेकिन भारतीय सेना के इस ऑपरेशन ने पूरे विश्व को यह सख्त संदेश दिया है कि अब हम छोड़ने वाले नहीं हैं। अब हम उग्रवादियों और आतंकियों को खदेड़कर और घुसकर भी मार सकते हैं।

बेहतर होते इन हालात के लिए निश्चित तौर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति बधाई की पात्र है। केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने इसकी पुष्टि भी कर दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही सेना को म्यांमार में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी दी थी। यह इस दृष्टि से भी अभूतपूर्व है कि वर्तमान सरकार की मजबूत विदेश नीति के कारण ही म्यांमार ने इस साहसिक काम के लिए बेहद आसानी से मंजूरी दी। ये भी महत्वपूर्ण है कि म्यां मार की सीमा में घुस कर भारतीय सैनिकों ने उग्रवादियों को मारने का ऑपरेशन चलाने के लिए केवल चार दिन में योजना बनाकर इस काम को अंजाम दिया गया। यह योजना राष्ट्रीऑय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की अगुआई में बनी और उग्रवादियों के खिलाफ भारतीय सेना के पैराकमांडोज ने बेहद साहसिक तरीके से इस मिशन को सफलता का ताज पहना दिया। यह निश्चित तौर पर उन सभी देशों और आतंकवादी गुटों के लिए कड़ा संदेश है जो हमारे देश को कमजोर समझने की भूल करते हैं। बस जरूरत इस बात है कि इस जज्बे को बनाए रखा जाए और आतंकवाद रूपी नासूर का इसी मजबूत इच्छाशक्ति से सफाया करना जारी रखा जाए।

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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