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मनोरंजन

भारतीय कहानियों को दुनिया के सामने लाना जरूरी : रितेश बत्रा

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रितेश बत्रा अपने निर्देशन की बहुप्रशंसित पहली फिल्म ‘द लंचबॉक्स’ के जरिए मुंबई के डब्बावालों का जायका दुनियाभर में ले गए। वह कहते हैं कि वह अपनी फिल्मों को भारत एवं इसकी संस्कृति का झरोखा बनाकर भारतीय कहानियों को दुनिया तक जाने के मिशन पर हैं।

‘द लंचबॉक्स’ को भारत एवं विदेशों में जबर्दस्त सराहना मिली। इसने रितेश को एक ब्रिटिश फिल्म का निर्देशन करने का मौका दिलाया। यह ब्रिटिश फिल्म जूलियन बार्न्‍स के उपन्यास ‘द सेन्स ऑफ ऐन एंडिंग’ पर आधारित है, जिसमे ऑस्कर विजेता अभिनेता जिम ब्रॉडबेंट हैं। रितेश ने विदेश रवाना होने से पूर्व स्थानीय भारतीय कहानियों को दुनिया के सामने लाने की जरूरत के बारे में बात की।

उन्होंने मुंबई से फोन पर आईएएनएस को बताया, “मेरे लिए उन भारतीय कहानियों को सामने लाना जरूरी है, जो दिल से सार्वभौमिक हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका को लें। जब आप वहां जाते हैं, तो आप यह महसूस नहीं करते कि आप एक विदेशी मुल्क में हैं। ऐसा हॉलीवुड फिल्मों एवं टेलीविजन धारावाहिकों में अमेरिकी विषय सामग्री का आधिक्य होने की वजह से है।”

उन्होंने कहा, “लोगों को हमारी कहानियों के जरिए लगना चाहिए कि वह पहले भारत आए हैं। मैं ऐसा ही करना चाहता हूं।”

रितेश को लगता है कि फिल्म जगत को दुनियाभर के दर्शकों को रुपहले पर्दे के जरिए भारतीय यात्रा कराने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

रितेश ने कहा, “मेरे ख्याल से हमें यह काम एक समाज के रूप में करते रहने की जरूरत है। मैं ऐसा करता रहना चाहता हूं। यह हम सभी के लिए जरूरी है।”

उन्होंने ‘द लंचबॉक्स’ (2013) के जरिए ऐसा किया, जिसमें इरफान खान एवं निमरत कौर मुख्य भूमिका में हैं।

इसे दुनियाभर में सराहना मिली। यह कान्स, ज्यूरिख , लंदन और टोरंटो में कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में तारीफें बंटोर चुकी है।

इसने ब्रिटिश एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन आर्ट्स(बाफ्टा) पुरस्कार समारोह में ‘फिल्म नॉट इन इंग्लिश लैंग्वेज’ श्रेणी में नामांकित होकर भारत का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। हालांकि, यह पुरस्कार जीतने के क्रम में पोलैंड की फिल्म ‘इदा’ से हार गई।

रितेश कहते हैं कि उनके लिए इस फिल्म की सफलता ‘उपहार’ के रूप में आई।

 

प्रादेशिक

13 साल बाद एक्ट्रेस को मिला इंसाफ, कोर्ट ने हत्यारे बाप को सुनाई फांसी की सजा

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मुंबई। एक्ट्रेस लैला खान और उसके पूरे परिवार के हत्यारे सौतेले पिता को मुंबई की सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में परवेज टाक को लैला, उनकी मां और चार भाई-बहन की हत्या और सबूतों को नष्ट करने का दोषी ठहराया था। यह मामला 13 वर्ष पुराना है। सौतेले प‍िता ने लैला, उसकी मां व चार भाई-बहनों की हत्या की थी, इसके बाद शवों को फार्म हाउस में गड्ढा खोदकर दफन कर दिया था।

बता दें कि बीते सप्ताह सरकारी वकील पंकज चव्हाण ने दोषी परवेज टाक के लिए मौत की सजा की मांग की थी। उनका कहना था कि इस हत्या को पूरी तरह से प्लान करके किया गया था, जिसमें एक ही परिवार के छह लोगों को बड़ी ही बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया और शवों को ठिकाने लगा दिया गया।

लैला खान हत्याकांड में मंगलवार को कोर्ट में सुनवाई हुई थी। इस दौरान आरोपी के वकील वहाब खान ने दलील पेश की, जिसमें उन्होंने कम से कम आजीवन कारावास की सजा की मांग की। वकील ने कहा कि कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है और शव उनके कहने पर बरामद किए गए थे। इतना ही नहीं बल्कि दोषी के वकील ने जेल में टाक के अच्छे व्यवहार की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसमें सुधार हुआ है और इसलिए उन्होंने इसे भी सजा को कम करने का आधार बताया है। हालांकि कोर्ट ने उनकी एक न सुनी और परवेज टाक को फांसी की सजा सुना दी।

बता दें कि परवेज टाक, लैला का सौतेला पिता है। परवेज ने लैला की मां संग तीसरी शादी की थे। साल 2011 में फरवरी में लैला खान, उनकी मां और चार भाई-बहनों की महाराष्ट्र के नासिक जिले के इगतपुरी स्थित उनके बंगले में हत्या कर दी गई थी। रिपोर्ट्स की मानें तो कहा गया कि संपत्तियों पर बहस के बाद परवेज ने इस घटना को अंजाम दिया था।

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