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साल 2016 में सर्वाधिक शिकार, लेकिन बाघों की संख्या में इजाफा

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साल 2016 में सर्वाधिक शिकार, लेकिन बाघों की संख्या में इजाफा

नई दिल्ली | दुनिया भर में वन्यजीवों के शिकार को लेकर पर्यावरणविद् गंभीर चिंता जता चुके हैं, लेकिन इस पर अभी तक पूरी तरह नकेल नहीं कसी जा सकी है। पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव जगजाहिर होने के बाद भी धड़ल्ले से जंगली जानवरों का शिकार जारी है।

वन्यजीव संरक्षण कानून के उल्लंघन के मामले में भारत की स्थिति भी कमोवेश अन्य देशों की तरह ही है।

पिछले दशकों के किसी भी साल की तुलना में देश में साल 2016 में सर्वाधिक संख्या में बाघों व चीतों का शिकार किया गया। जहां सैकड़ों की तादाद में पैंगोलिन का शिकार किया गया, वहीं हजारों की तादाद में समुद्री जीवों को मौत के घाट उतारा गया। लेकिन अच्छी खबर यह है कि इन सबके बावजूद देश में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है।

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यू डब्ल्यू एफ) के साथ वन्यजीवों के व्यापार पर नजर रखने वाली संस्था ट्रैफिक के प्रमुख शेखर नीरज ने आईएएनएस से कहा, “भले ही बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से यह साल पैंगोलिन सहित कई जानवरों के लिए बेहद बुरा रहा।”

सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली सूचना में इस बात का खुलासा हुआ है कि वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के पास शिकारियों की गिरफ्तारी, उन्हें मारे जाने, शिकार के लिए उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों या शिकारियों की संख्या से संबंधित कोई खबर नहीं है।

विभिन्न स्वतंत्र स्रोतों से हालांकि आईएएनएस ने कई आंकड़े जुटाए। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि साल 2016 में कम से कम 129 बाघ व 419 चीतों की मौत हुई, जबकि साल 2015 में 91 बाघों तथा 397 चीतों की मौत हुई। 10 वर्षो के रिकॉर्ड के मुताबिक, इनमें से कम से कम 50 बाघ तथा 127 चीतों को शिकारियों ने मार डाला।

डब्ल्यूपीएसआई कार्यक्रम के प्रबंधक टीटो जोसेफ ने आईएएनएस से कहा, “यह संख्या पूरी तरह सही नहीं है। यह आंकड़ा केवल खबरों में आने या पकड़े जाने पर सामने आया है। वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होगी।”

20 से अधिक हाथी, 18 गैंडे, कई भालू (स्लॉथ, एशियाटिक ब्राउन तथा ब्लैक), दो बर्फीले चीते तथा कई सी-ककंबर या तो शिकारियों द्वारा शिकार करते वक्त पकड़ लिए गए या उनके अवशेष जैसे खाल व नाखूनों को नवंबर 2016 तक जब्त किया गया।

जोसेफ ने कहा, “मध्य प्रदेश व राजस्थान में 50 चीते तथा कम से कम आठ हाथी केवल सड़क या रेल हादसों के दौरान मारे गए।” उन्होंने कहा कि भारी संख्या में जानवरों की मौत केवल शिकार करने से ही नहीं हुई, बल्कि सही प्रबंधन योजनाओं के अभाव में भी हुई है।

इसके अलावा, साल के पहले तीन महीनों के दौरान प्राकृतिक आपदा तथा मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण कम से कम 1,800 लुप्तप्राय जलीय व समुद्री जानवरों की मौत हो गई।

इस साल की शुरुआत तमिलनाडु में मन्नार की खाड़ी में 74 छोटे पर वाले पायलट व्हेल्स, मुंबई में एक बैड्रिस व्हेल, ओडिशा में सैकड़ों ओलिव रिडले कछुओं तथा गंगा व समुद्र में पाए जाने वाले कई डॉल्फिनों के शव समुद्र किनारे पाए जाने के साथ शुरू हुई। इसके अलावा, असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में बाढ़ के कारण 20 गैंडों सहित 250 जानवरों की मौत हो गई।

विडंबना यह है कि यह सब कुछ उस साल हुआ, जब भारत ने ‘थर्ड मिनिस्ट्रियल कांफ्रेंस ऑन टाइगर कंजर्वेशन’ की मेजबानी की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में विडाल प्रजाति के जानवरों के संरक्षण का संकल्प लिया।

अच्छी बात यह है कि भारत में अब 2,226 बाघ हैं, जो एशिया में कुल बाघों की संख्या का 70 फीसदी है। तत्कालीन पर्यावरण एवं वन्य मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सम्मेलन में कहा था कि देश में बाघों की संख्या 2,500 तक हो सकती है।

इस बीच, 17वां कांफ्रेंस ऑफ द पार्टिज टू द कन्वेंशन ऑन ट्रेड इन इनडैंजर्ड स्पीशिज ऑफ वाइल्ड फाउना एंड फ्लोरा (सीओपी17 सीआईटीईएस) सितंबर में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित हुआ, जिसमें बाघों की ब्रीडिंग करने पर रोक लगाई गई तथा पैंगोलिन को संरक्षण के लिए सीआईटीईएस अपेंडिक्स 1 में रखा गया और माना गया कि यह प्रजाति अब लुप्त होने के कगार पर है।

अक्टूबर में जारी डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लानेट रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 तक दुनिया अपने 68 फीसदी वन्य जीवों को खो सकती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 41 फीसदी स्तनपायी, 46 फीसदी सरीसृप तथा मीठे पानी में रहने वाली 70 फीसदी मछलियों के अस्तित्व को खतरा है। स्तनपायियों के 385 में से चार प्रजातियां पहले ही लुप्त हो चुकी हैं।

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पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में बोले अमित शाह, पीओके भारत का है और हम इसे लेकर रहेंगे

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श्रीरामपुर। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के हुगली के श्रीरामपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए विपक्ष पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और ममता बनर्जी, आपको डरना है तो डरते रहिए, ये पीओके भारत का है और हम उसे लेकर रहेंगे।

अमित शाह ने कहा कि ममता बनर्जी, कांग्रेस-सिंडिकेट कहती है कि धारा 370 को मत हटाओ। मैंने संसद में पूछा कि क्यों न हटाएं तो उन्होंने कहा कि खून की नदियां बह जाएंगी। 5 साल हो गए खून कि नदियां छोड़ो किसी की कंकड़ चलाने की हिम्मत नहीं है। जब INDI गठबंधन का शासन था तो हमारे कश्मीर में हड़तालें होती थीं। आज पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में हड़ताल होती है। पहले कश्मीर में आजादी के नारे लगते थे, अब पाक अधिकृत कश्मीर में नारेबाजी होती है। राहुल गांधी, आपको डरना है तो डरते रहिए, ममता बनर्जी आपको डरना है तो डरते रहिए लेकिन मैं आज श्रीरामपुर की धरती से कहता हूं कि ये पाक अधिकृत कश्मीर भारत का है और हम उसे लेकर रहेंगे।

अमित शाह ने कहा आने वाले चुनाव में आप सभी वोट डालने वाले हैं। इस चुनाव में एक ओर परिवारवादी पार्टियां हैं जिसमें ममता बनर्जी अपने भतीजे को, शरद पवार अपनी बेटी को, उद्धव ठाकरे अपने बेटे को, स्टालिन अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और सोनिया गांधी, राहुल बाबा को पीएम बनाना चाहती हैं। वहीं दूसरी ओर गरीब चाय वाले के घर में जन्में इस देश के महान नेता नरेन्द्र मोदी जी हैं।

नरेन्द्र मोदी जी ने बंगाल के विकास के लिए ढेर सारे कार्य किए हैं। मैं ममता दीदी से पूछना चाहता हूं कि 10 साल तक आपके लोग सोनिया-मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहे, लेकिन सोनिया-मनमोहन सिंह की सरकार ने बंगाल के विकास के लिए क्या किया। उनकी सरकार ने 10 साल में बंगाल के विकास के लिए मात्र 2 लाख करोड़ रुपये दिए। जबकि मोदी जी ने 10 साल में 9 लाख, 25 हजार करोड़ रुपये देने का काम किया।

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