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उत्तराखण्ड में जारी है मानव-वन्य जीव संघर्ष
सुनील परमार
देहरादून। इस मंगलवार शाम को देहरादून से लगभग 40 किलोमीटर दूर देहरादून-ऋषिकेश मार्ग पर स्थित सात मोड़ के निकट एक हाथी ने एक बाइक सवार व्यक्ति को पटक-पटक कर मार डाला। लोग उसे अस्पताल ले गये लेकिन उसे मृत घोषित कर दिया। यह पहली बार नहीं है कि जब इस स्थान पर हाथी ने मनुष्य को मार डाला। यहां हाथी अक्सर यात्रियों की जान ले लेता है। हाथी यहां से गुरजने वाले यात्रियों पर हमला कर देते हैं। दरअसल, यह मानव की वन्य जीवों के क्षेत्र में दखल का परिणाम है। यह स्थान हाथियों का गलियारा है। हाथी यहां निवास करते हैं और शाम के वक्त अक्सर वन क्षेत्र से लगे सड़क मार्ग की ओर आ जाते हैं, ऐसे में जब कोई टस्कर यानी अकेला हाथी सड़क की ओर आता है तो वह वाहनों की आवाज से भड़क जाता है। ऐसे में वन्य जीव व मानवों का संघर्ष होना आम बात हो गयी है।
जंगल में मानव दखल व वनों में खाने की कमी के कारण वन्यजीव आ रहे आबादी की ओर
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि राज्य गठन से 2015 तक हाथी, गुलदार और बाघ लगभग 400 मनुष्यों की जान ले चुके हैं। पर्वतीय इलाकों की बात छोड़ें यहां तक देहरादून से सटे इलाकों में भी गुलदार बच्चों को झपटा मार कर निवाला बना लेते हैं। हाल में देहरादून के हाथीबड़कलां इलाके से आंगन में खेल रहे एक बच्ची को गुलदार उठा ले गया। उधर, वन्य जीवों की तुलना में मानव और अधिक खूंखार नजर आता है। मिली जानकारी के अनुसार पिछले 15 वर्षों में मनुष्य ने 800 गुलदार, 90 बाघ और 280 हाथियों की जान ली है। मनुष्य इनमें से अधिकांश की जान शिकार के लिए लेता है तो कुछ नरभक्षी घोषित पर मार दिये जाते हैं। वन विभाग के शिकारी लखपत सिंह ने अब तक 50 से भी अधिक नरभक्षी गुलदारों को मारने का काम किया है।
राज्य गठन के बाद 400 से भी अधिक लोगों की जान ले चुके हाथी व गुलदार
यदि वन्यजीव व मानव संघर्ष की पृष्ठभूमि में जाएं तो पता चलता है कि इसके लिए कहीं न कहीं मानव ही जिम्मेदार हैं। वनों का कटान होने से आबादी क्षेत्र बढ़ गया है। मानव की जंगलों में दखल हो गयी है। उत्तराखंड में हाथियों के आवागमन के लिए 11 कोरीडोर बने हैं, लेकिन सभी में मानव की दखल है। ऐसे में शांतचित हाथी को निश्चित तौर पर अपने जीवन में दखल लगती है तो वह हिंसक हो उठता हैै। वनों के अंधाधुंध कटाव होने से वन्य जीवों की खाद्य श्रृंखला भी टूट रही हैै। कई प्राणी विलुप्त हो रहे हैं। ऐसे में जब वन्य जीवों को जंगलों में भोजन नहीं मिलता है तो उनका रूख आबादी की ओर हो जाता है। पर्वतीय जनपदों में सूअर, गुलदार, बंदर और भालू अब ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो मौका मिलते ही पालतू पशुओं व कभी-कभी मानव को भी अपना शिकार बना रहे हैं।
इसके अलावा इस लड़ाई का एक और अहम कारण है शिकार। मनुष्य को पाषाणकाल से ही वन्य जीवों का मांस और खाल दोनों ही बहुत लुभावनी लगती है। वह जानवरों की खाल को पहन कर या अपने ड्राइंगरूम में सजा कर रखने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हो जाता है। ऐसे में वन्य जीवों के शिकार को प्रोत्साहन मिलता है और वन्य जीव शिकारियों के हाथों मारे जाते हैं। भले ही वन विभाग और प्रशासन मानव-वन्यजीवों के बीच के संघर्ष को रोकने के लाख दावे करता हो, लेकिन यह वास्तविकता है कि जब तक मनुष्य वन्य जीवों के क्षेत्र में दखल करता रहेगा, यह संघर्ष जारी रहेगा।
नेशनल
पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर में बोले अमित शाह, पीओके भारत का है और हम इसे लेकर रहेंगे
श्रीरामपुर। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के हुगली के श्रीरामपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए विपक्ष पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और ममता बनर्जी, आपको डरना है तो डरते रहिए, ये पीओके भारत का है और हम उसे लेकर रहेंगे।
अमित शाह ने कहा कि ममता बनर्जी, कांग्रेस-सिंडिकेट कहती है कि धारा 370 को मत हटाओ। मैंने संसद में पूछा कि क्यों न हटाएं तो उन्होंने कहा कि खून की नदियां बह जाएंगी। 5 साल हो गए खून कि नदियां छोड़ो किसी की कंकड़ चलाने की हिम्मत नहीं है। जब INDI गठबंधन का शासन था तो हमारे कश्मीर में हड़तालें होती थीं। आज पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में हड़ताल होती है। पहले कश्मीर में आजादी के नारे लगते थे, अब पाक अधिकृत कश्मीर में नारेबाजी होती है। राहुल गांधी, आपको डरना है तो डरते रहिए, ममता बनर्जी आपको डरना है तो डरते रहिए लेकिन मैं आज श्रीरामपुर की धरती से कहता हूं कि ये पाक अधिकृत कश्मीर भारत का है और हम उसे लेकर रहेंगे।
अमित शाह ने कहा आने वाले चुनाव में आप सभी वोट डालने वाले हैं। इस चुनाव में एक ओर परिवारवादी पार्टियां हैं जिसमें ममता बनर्जी अपने भतीजे को, शरद पवार अपनी बेटी को, उद्धव ठाकरे अपने बेटे को, स्टालिन अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और सोनिया गांधी, राहुल बाबा को पीएम बनाना चाहती हैं। वहीं दूसरी ओर गरीब चाय वाले के घर में जन्में इस देश के महान नेता नरेन्द्र मोदी जी हैं।
नरेन्द्र मोदी जी ने बंगाल के विकास के लिए ढेर सारे कार्य किए हैं। मैं ममता दीदी से पूछना चाहता हूं कि 10 साल तक आपके लोग सोनिया-मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रहे, लेकिन सोनिया-मनमोहन सिंह की सरकार ने बंगाल के विकास के लिए क्या किया। उनकी सरकार ने 10 साल में बंगाल के विकास के लिए मात्र 2 लाख करोड़ रुपये दिए। जबकि मोदी जी ने 10 साल में 9 लाख, 25 हजार करोड़ रुपये देने का काम किया।
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