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उत्तराखण्डः राजभवन बना सत्ता का केन्द्र बिन्दु
देहरादून। वैसे तो उत्तराखण्ड के राजभवन का खुफिया विभाग दो दिन से सक्रिय था, लेकिन कल सुबह से सक्रियता काफी बढ़ गई थी। दोपहर होते-होते पूरी ब्यूरोक्रेसी और राजनेताओं का रुख राजभवन की तरफ घूम गया। शाम होते होते तो राजभवन पूरी तरह से सत्ता का प्रतिबिंब बन चुका था। फिलहाल हरीश रावत मुख्यमंत्री हैं, लेकिन सत्ता का केंद्र राजभवन बना हुआ है। शाम को राज्यपाल डॉ. कृष्णकांत पाल ने मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव न्याय को बुलाकर राजनीतिक हालात पर अपडेट लिया। इसके बाद हर पल पर राजभवन की नजर रही। अचानक पूरा तंत्र सक्रिय हो गया और सारा सिस्टम राज्यपाल की तरफ मुखातिब हो गया। उत्तराखंड विधानसभा में शुक्रवार को बजट प्रस्ताव के दौरान हुए घटनाक्रम ने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया है। देर रात कांग्रेस के 9 असंतुष्ट विधायकों के साथ भाजपा के विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की।
वहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। इसके बाद सभी कांग्रेस के बागियों समेत सभी 35 विधायक जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचे और वहां चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली चले गए। वहां इन सबकी भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात करेंगे। उत्तराखंड विधानसभा में हुए हंगामे के बाद उत्तराखंड सरकार पर संकट के बादल छा गए हैं। सरकार द्वारा लाया गया बजट प्रस्ताव सदन में गिर जाने से सरकार पर अल्पमत का खतरा आ गया है। वहीं सीएम हरीश रावत ने कहा कि सरकार पर कोई खतरा नहीं है और सरकार सदन में बहुमत साबित करेगी। वहीं घटनाक्रम में कृषि मंत्री हरक सिंह रावत ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का दावा किया है। कांग्रेस के 9 विधायकों ने सरकार का विरोध करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया है। वहीं बजट सत्र के दौरान विधानसभा में दो मंत्रियों के बीच मारपीट भी हो गई।
उत्तराखंड विधानसभा में शुक्रवार को बजट सत्र के दौरान मंत्री हरक सिंह रावत समेत कांग्रेस के नौ विधायकों ने बगावती तेवर अख्तियार कर लिये जिसके चलते सरकार का बजट प्रस्ताव गिर गया। प्रस्ताव के समर्थन में 32 मत मिले जबकि विधानसभा में बहुमत के लिए 36 विधायकों का समर्थन होना आवश्यक है। प्रस्ताव गिरने के बाद भाजपा के 27 विधायकों के साथ कांग्रेस के नौ असंतुष्ट राज्यपाल से मिलने गये। पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि रावत राज का अंत हो गया। सरकार सदन में विश्वास खो चुकी है। उन्होंने भाजपा विधायकों के साथ राज्यपाल से मिलकर हरीश रावत सरकार को बर्खास्त करने की मांग की। भाजपा का हाईकमान घटनाक्रम पर पल-पल नजर बनाए हुए है। केंद्रीय मंत्री महेश चंद्र शर्मा स्पेशल चार्टर्ड प्लेन से देहरादून पहुंच गए हैं।
दलीय स्थिति के हिसाब से कांग्रेस के अभी तक 36 विधायक हैं। कांग्रेस को पीडीएफ के छह विधायकों का समर्थन भी हासिल है। ऐसे में कांग्रेस के पक्ष में 42 का आंकड़ा था। इसमें से नौ विधायकों के चले जाने पर कांग्रेस के पक्ष में 33 विधायक रह गये हैं। इसी बीच मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बागी कांग्रेसी विधायकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई करने की भी चेतावनी दी। दल बदल से बचने के लिए दो तिहाई विधायक होने चाहिए। इस हिसाब से बहुगुणा और हरक को करीब 24 विधायकों का समर्थन जुटाना था। ऐसे में इन दो नेताओं का अन्य सात विधायकों के साथ दल बदल कानून की जद में आना भी करीब-करीब तय है।
हरक का भाजपा और बसपा से भी पुराना नाता
ऐसा हुआ तो यह दोनों चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। हरक सिंह पहले भी इस तरह की हरकत कर चुके हैं। हरक का भाजपा और बसपा से भी पुराना नाता रहा है, लेकिन विजय बहुगुणा शुद्ध रूप से कांग्रेसी ही रहे। हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र विजय बहुगुणा की बहन रीता बहुगुणा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पहचान वाली नेता भी हैं। कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद बहुगुणा के लिए प्रदेश में अपनी कांग्रेस की छवि को तोड़ने में खासी मशक्कत भी करनी होगी। यही हाल हरक का भी है।
बीजेपी पर केजरीवाल का हमला
इस बीच दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड सरकार के संकट को लेकर बीजेपी पर हमला बोल दिया है। केजरीवाल ने शनिवार सुबह ट्वीट कर बीजेपी को सबसे भ्रष्ट, देशद्रोही और सत्ता की भूखी पार्टी करार दिया है। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के बाद अब बीजेपी उत्तराखंड में भी खुले तौर पर हॉर्स ट्रेडिंग कर रही है।
नेशनल
जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।
इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।
चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।
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