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मनोरंजन

आईएफएफके : कोरियाई पैनोरमा होगा मनोरम

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कोरियाई पैनोरमा, केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, 20वें संस्करण, 'किम की-डुक की' और 'स्टॉप' इको-थ्रिलर

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तिरुवनंतपुरम| केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफके) के 20वें संस्करण में कोरियाई पैनोरमा खंड में दक्षिण कोरियाई फिल्म निमार्ताओं की छह प्रमुख फिल्में दिखाई जाएंगी। फिल्म महोत्सव 4 से 11 दिसंबर तक चलेगा। वर्षो से रोमांच का पर्याय बन चुके कोरियाई पैनोरमा खंड में इस साल फिल्म का मिजाज बदलकर कोरिया में समकालीन वास्तविकताओं को दर्शाने वाली फिल्मों को भी शामिल किया गया है। ‘किम की-डुक की’ और ‘स्टॉप’ इको-थ्रिलर है जो फुकुशिमा परमाणु आपदा से त्रस्त एक दंपति की पीड़ा को उजागर करती है। ‘क्लाउन ऑफ ए सेल्समैन’ (2015) आज के कॉरपोरेट जगत को दर्शाती है, जबकि ‘मैडोना’ (2015) एक चिकित्सा नाटक है जो एक अस्पताल में विभिन्न वर्गो में व्याप्त विसंगतियों को गहराई से दर्शाती है। ‘द अनफेयर’ (2015) कोरियाई न्यायपालिका और अदालतों का एक प्रतिबिंब है। ‘स्टॉप’ जापान के फुकुशिमा परमाण्विक रासायनिक प्रभाव के कारण उत्पन्न मंदी से प्रभावित एक ऐसे युवा दंपति की कहानी है जिसका जीवन और भाग्य मंदी के कारण बदल जाता है।

किम की-डुक एक गुरिल्ला फिल्मकार बन जाते हैं। अपनी पिछली फिल्म ‘वन ऑन वन’ (2014) की तरह ही इस फिल्म के मुख्य आकर्षण उत्तेजक तत्व हैं। वह इस परंपरागत धारणा पर जोर देते हैं कि परमाणु दुर्घटनाओं से बचने के लिए हमें बिजली का उपयोग बंद कर देना चाहिए। निदेशक शिन सु-वोन समाज की चरम विसंगतियों को दर्शाती हैं, जहां जीवन अमीर और गरीब, ताकत और लैंगिक भेदभाव के अनुसार विभाजित है। अपनी पहले की फीचर, प्लूटो (2012) की तरह ही निर्देशक एक बार फिर से मैडोना के साथ अमीरों के बीच के संघर्ष को उजागर करती हंै। इसके साथ ही एक ऐसे बेटे की कहानी बयां करती हैं जो अपने पिता की संपत्ति को पाने के लिए अपने पिता को एक मुश्किल सर्जरी कराने के लिए मजबूर करता है और एक वेश्या अपने भ्रूण को बचाने के लिए किस प्रकार प्रयास करती है।

हांग वोन चान की पहली निर्देशित फिल्म मनोवैज्ञानिक थ्रिलर और राजनीति से संबंधित व्यंग्य से भरपूर थी। ‘ऑफिस’ एक बेहद चतुराई से बनाई गई फिल्म है, जिसे 2015 के कान फिल्म महोत्सव में ‘मिडनाइट स्क्रीनिंग’ के तहत प्रदर्शित किया गया है। यह फिल्म एक ऐसे आदमी से शुरू होती है जो अपने पूरे परिवार की हत्या करने के बाद गायब हो जाता है। इस उदास फिल्म का नायक अपनी बेटी के मेडिकल बिलों का भुगतान करने के लिए एक हताश प्रयास करता है और इसके लिए वह एक ऐसी कंपनी में नौकरी करने लगता है जो बुजुर्ग महिलाओं को उनके उत्पादों को खरीदने पर मुफ्त में मनोरंजन प्रदान करती है। इस फिल्म का उज्‍जवल पक्ष लाचारी में भी उम्मीद की किरण वाला ऐसा बंधन है जो वह ग्राहक के साथ विकसित करता है। फिल्म इस दोस्ती की खुशी और अपने कर्ज के दुख को उजागर करती है।

68वें लोकार्नो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गोल्डन लेपर्ड शीर्ष सम्मान के विजेता, निर्देशक हांग-सैंग सू एक फिल्म निर्माता और एक कलाकार के बीच एक विनाशक मुठभेड़ के दो रूपों को दर्शाते हैं। एक ही अभिनेता और सेट के साथ, यह फिल्म दो घंटे में एक ही कहानी को दोहराती है और दो उपशीर्षकों : ‘भाग 1 : राइट देन, रांग नाउ’ और ‘भाग 2 : राइट नाउ, रांग देन’ के तहत दो भागों में बयां करती है। तबाही वाले एक स्थान पर, एक व्यक्ति पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया जाता है। इसमें एक एक्सप्लोसिव अदालती नाटक को दिखाया गया है, जिसमें पैतृक प्यार की वजह से एक अभियोजक और एक वकील के बीच कानूनी लड़ाई होती है।

प्रादेशिक

सीएम सुक्खू के मंत्री का विवादित बयान, कहा- कंगना को कोई बिना मेकअप देख ले तो दूसरी बार नहीं देखेगा

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नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने कंगना रनौत के चेहरे को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की है, जिसके बाद उनका काफी विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा कि कंगना रनौत अपने कार्यक्रमों में मेकअप करके आती है। मेकअप वाली टीम भी हमेशा उनके साथ रहती है। मेकअप को देख ही लोगों की भीड़ उन्हें देखने आती है। अगर सुबह के समय कोई व्यक्ति कंगना को बिना मेकअप देख लें तो दूसरी बार नहीं देखेगा।

उधर कंगना ने भी नेगी केइस बयान पर पलटवार किया है। कंगना ने कहा कि उन्होंने फिल्मों में बिना मेकअप के भी रोल निभाए हैं। आज अगर वह अच्छे कपड़े पहनकर और पाउडर-लिपस्टिक लगाकर जनता से मिलना चाहती हैं तो उसमें भी यह आपत्ति जताते हैं। कंगना ने आगे कहा कि उन्हें समझ नहीं आता कि शक्ल से उनको क्या परेशानी हो गई। क्या इनके खूबसूरत चेहरों पर वोट दिए हैं। सुक्खू जी को लगता है उनकी खूबसूरत शक्ल पर वोट मिले हैं।

कंगना ने आगे कहा कि राजनीति में एक भाव है और यह भाव किसी में भी आ सकता है। किसी का चेहरा कैसा है या आपकी उम्र और लिंग क्या है यह देश इस सबसे बाहर निकलकर काफी आगे जाना चाहता है। ये देश की बहनों को काली-पीली और उनकी शक्ल को लेकर बातें करते हैं। उन्हें मेरी शक्ल से क्या लेना-देना। मेरी शक्ल चाहे जैसी भी हो जब तक मैं बुजुर्गों भाइयों, माता-बहनों और बच्चों की सेवा में तत्पर हूं तो मेरी शक्ल से तुम्हें क्या लेना-देना। आपको बता दें कि कंगना अलग-अलग इलाकों में जाकर वहां की वेशभूषा पहन रही हैं।

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