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13 फिल्मों के प्रदर्शन के साथ समाप्त हुआ विज्ञान फिल्मोत्सव

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रविवार को दिए जाएंगे बीवर अवार्ड
लखनऊ। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कार्यरत विज्ञान प्रसार और संस्कृति मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में अलीगंज स्थित आंचलिक विज्ञान नगरी में 5वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्मोत्सव में 4 फरवरी से शुरू हुआ विज्ञान फिल्मों के प्रदर्शन का सफर शनिवार को समाप्त हुआ। रविवार 8 फरवरी को 152 प्रविष्टियों में से चयनित 64 फिल्मों के भाग्य का फैसला होगा और प्रख्यात फिल्म निर्माता डा. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की अध्यक्षता में जूरी द्वारा चुनी गई फिल्मों को बीवर अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा।

फिल्मोत्सव के मुख्य संयोजक निमिष कपूर व स्थानीय समन्वयक उमेश कुमार ने बताया कि फिल्मोत्सव में प्रदर्शन के अंतिम दिवस कुल 13 फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। विनय कुमार साहू निर्देशित फिल्म ए जर्नी थ्रू स्पेस एंड टाइम, विश्नू हरिदास की ग्लो टू सरवाइव, संदीप पांडुरंगमनी की रैपन व आमशु मेदापा की मेटानोइया का प्रदर्शन इस समारोह में खास रूप से किया गया।

फिल्मोत्सव में फैजिलुल फरीसा की फिल्म हयूमन आइलैंड ने मानसिक विकार की बीमारी आटिज्म पीडि़त बच्चे के सामने आने वाली चुनौती और सफलता की कहानी को प्रदर्शित किया। इसी प्रकार विवेक सिंह की लव स्टोरी आफ टू इलेक्ट्रान्स में दर्शाया है कि इलेक्ट्रानों के मिलने पर किस प्रकार की वैज्ञानिक घटनाएं होती हैं। वर्षा शंकर व श्रेया मोहन की हाउ डू आई शी साइंस विज्ञान व विज्ञान पहलुओं को देखने के दृष्टिकोण को उजागर करती है। तनमीत सिंह की इन द सर्च आफ रियल साइंस उन छात्रों की कहानी है, जो विज्ञान के किताबी पक्ष को यथार्थ की धरातल पर उतारने की ललक रखते है।

साफिया अलिया की फिल्म माई एक्सपेरिमेंट्स में एक छात्र के वैज्ञानिक प्रयोग को दर्शाया गया है। विज्ञान के सरल और सकारात्मक प्रयोग को इसमें प्रदर्शित किया गया है। वहीं, अपूर्वा श्री और श्रुति कुमारी की फिल्म माई किचेन साइंस में दर्शाया गया है कि विज्ञान सिर्फ लैब का विषय नहीं है। हमारे रसोईघर में भी विज्ञान की उपयोगिता है।

कीरत सिंह मोश्वा की साइंस बिहाइंड मिरेकल्स में उन तथ्यों की वैज्ञानिक प्रमाणिकता को दर्शाया गया है, जिसे एक वर्ग चमत्कार मानता है। इसी प्रकार से देवोकृष्णा एस नाथ की फिल्म यू टर्न टू दि नेचर फास्ट फूड के दुष्प्रभावों की ओर संकेत कर गुणवत्ता पूर्ण खान-पान के प्रति सचेत करती है।Photo-3

विज्ञान फिल्मोत्सव में चतुर्थ दिवस गैर प्रतियोगी वर्ग में वर्ष 1983 में निर्मित सत्येंद्र बोस निर्देशित फिल्म काया पलट का प्रदर्शन खास रूप से किया गया। निक मर्फी की फिल्म द स्टोरी आफ वन और निक शूलिंगिन व जार्डन नीलेज वाक निर्देशित फिल्म हाउ टू ग्रो ए प्लांट का प्रदर्शन भी खास रूप से हुआ।

शनिवार को वैज्ञानिकों एवं विज्ञान संचारकों के साथ संवाद में पुणे फिल्म एडं टेलीविजन इंस्ट्टीयूट के इंद्रानील भट्टाचार्या ने सिनेमा में विज्ञान के दखल की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारतीय सिनेमा इतिहास 120 वर्ष पुराना है। करीब सौ वर्षों से सिनेमा और विज्ञान के बीच आदान-प्रदान हो रहा है, बावजूद इसके अभी भी विज्ञान फिल्मों के निर्माण ने गति नहीं पकड़ी है। वैज्ञानिकों के विज्ञान फिल्मों के निर्माण में सक्रियता पर विज्ञान संचारक डा. सी एम नौटियाल ने प्रकाश डाला।

वैज्ञानिक तेवर को उजागर करने के लिए विज्ञान फिल्मों में शिल्प का प्रयोग किस प्रकार से किया जा रहा है, इसे रामोजी राव अकादमी आफ फिल्म एंड टेलीविजन, हैदराबाद से आए संतोष कुमार पांडेय द्वारा निरूपित किया गया।

विज्ञान फिल्म निर्माण विषयक कार्यशाला में विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक कपिल त्रिपाठी ने विज्ञान फिल्म व कार्यक्रमों की दशा और दिशा की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विज्ञान प्रसार प्रति माह दौ सौ विज्ञान कार्यक्रमों का निर्माण कर रहा है। उसका देश के 26 टीवी चैनलों के साथ गठजोड़ है, जो इसका प्रसारण करते हैं। राज्यसभा टीवी पर साप्ताहिक विज्ञान समाचार कार्यक्रम भी शुरू किया गया है।

इन सबके बाद भी टेलीविजन पर सप्ताह में मात्र 4 से 5 घंटे ही विज्ञान कार्यक्रम का प्रसारण हो रहा है। केरल के एमबीएल मीडिया स्कूल के कार्यकारी निदेशक व फिल्म मेकर बिजु मोहन ने कार्यशाला में कैमरे से शूट करने के दौरान रखी जाने वाली सावधानियों की ओर ध्यानाकर्षण कराया। उन्होंने कहा कि संयोजन की कला को सीख कर अच्छे दृश्यों को लिया जा सकता है। एक कैमरामैन को इंतजार करने की कला सीखना चाहिए, तभी उसे अच्छे शूट मिलेंगे। अपने क्रियेशन से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करना चाहिए।

फिल्मोत्सव के मुख्य संयोजक निमिष कपूर ने बताया कि लखनऊ का फिल्मोत्सव कई मायनों में अबका सबसे सफल आयोजन रहा है। वर्ष 2011 में पहले फिल्मोत्सव में मात्र 52 फिल्मों की प्रविष्टियां आई थीं, जबकि इस बार रिकार्ड 152 फिल्में समारोह के लिए आई, जिसमें कि 64 फिल्मों का चयन प्रदर्शन के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि फिल्मोत्सव को क्षेत्रीय स्तर पर आयोजित करने पर भी विचार किया जा रहा है। विज्ञानप्रेमियों की मांग को देखते हुए आने वाले समारोह में साइंस फिक्शन के लिए अलग से वर्ग रखने पर भी गौर किया जा सकता है। लखनऊ के विभिन्न स्कूलों से एक हजार से अधिक स्कूली बच्चों ने फिल्मोत्सव की फिल्मों को देखा।

राजधानी में आज/डायरी हेतु
फिल्मोत्सव में 8 फरवरी को:-
-वैज्ञानिक के साथ संवाद प्रातः 10 से 10.20 बजे तक
-गैर प्रतियोगी वर्ग में फिल्मों का प्रदर्शन प्रातः 10.20 से 11.15 बजे तक
-समापन एवं अवार्ड समारोह पूर्वाहन 11.15 से 01.15 बजे तक

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

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वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

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