Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

हिमाचल चुनाव : कांगड़ा में ‘दरकती जमीन’ बचाने में जुटी कांग्रेस व भाजपा

Published

on

Loading

नई दिल्ली, 2 नवंबर (आईएएनएस)| हिमाचल प्रदेश चुनाव 2017 दो मुख्य पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच की जबरदस्त टक्कर के लिए जाना जाएगा। एक तरफ सूबे के छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह है तो दूसरी तरफ दो बार के मुख्यमंत्री और भाजपा के शीर्ष नेताओं में शुमार जे.पी. नड़्डा को मात देकर राज्य की राजनीति पर पकड़ बना चुके प्रेम कु मार धूमल। 68 सदस्यीय विधानसभा में हर सीट पर दोनों ही पार्टियों में जंग होती आई है लेकिन इन 68 सीटों में से एक सीट ऐसी है जहां दोनों ही पार्टियों की नींव दरकती नजर आ रही है।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा सीट संख्या-16, कांगड़ा (अनारक्षित) में 2012 विधानसभा चुनाव के वक्त 68,243 मतदाता थे। इस क्षेत्र की कुल आबादी पिछले चुनाव के वक्त 1,510,075 थी। कांगड़ा को ‘राजाओं की कर्मभूमि’ के नाम से जाना जाता है। इस शहर के बारे में धारणा है कि इस शहर को महमूद गजनवी ने लूटा था और इस क्षेत्र में स्थित मशहूर ब्रजेश्वरी मंदिर को तबाह कर दिया था।

राजनीतिक रूप से ओबीसी बहुल क्षेत्र की यह परंपरा रही कि यहां जाति समीकरण हमेशा फिट बैठते हैं। साथ ही यह एकमात्र सीट है जहां एक दशक से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी जमीन तलाश करती नजर आ रही हैं। पिछले दो चुनाव 2007 में बहुजन समाज पार्टी के संजय चौधरी ने कांग्रेस से यह सीट छीनकर दोनों पार्टियों को सख्ते में डाल दिया था। 2012 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार पवन काजल ने चुनाव जीतकर भाजपा और कांग्रेस को इस सीट से और दूर कर दिया था।

कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र ओबीसी बहुल होने के कारण हर चुनाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस क्षेत्र में घिरथ जाति का खासा प्रभाव रहा है और यह इस क्षेत्र की हकीकत है कि जिस प्रत्याशी ने इनको साध कर अपनी रणनीति बनाई है चुनाव जीतने में सफल रहा है। हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र में राजपूत और ब्राह्मण मतदाता भी हैं लेकिन दोनों ही समुदाय चुनाव मैदान में गठजोड़ पर विफल रहे हैं।

बात करें विधानसभा चुनाव 2017 की तो वर्तमान निर्दलीय विधायक ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। पेशे से बिल्डर पवन काजल ने 2012 में चुनाव जीतकर अपनी लोकप्रियता साबित की थी। इसी बात का फायदा उठाकर कांग्रेस ने उन्हें टिकट देकर दोबारा से चुनाव मैदान में उतारा है। पवन के पहले भाजपा में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन पवन ने कांग्रेस के साथ जाकर अपने इरादे साफ कर दिए।

वहीं भाजपा ने संजय चौधरी को कांगड़ा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित किया है। संजय चौधरी इससे पहले जिलाध्यक्ष और पूर्व विधायक भी रह चुके हैं।

इसके साथ ही बहुजन समाज पार्टी के विजय कुमार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के रवि चंद, लोकगठबंधन पार्टी के सेवानिवृत्त कर्नल कुलदीप सिंह और निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. राजेश शर्मा मैदान में एक दूसरे को टक्कर देते दिखाई देंगे।

कांगड़ा में चुनाव इस परिपेक्ष्य से महत्वपूर्ण और दिलचस्प माना जा रहा है क्योंकि यहां की जनता ने एक बार से ज्यादा किसी विधायक या फिर मुख्य पार्टी को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही जमीन इस सीट पर दरकती जा रही है वहीं निर्दलीय उम्मीदवार भी किसी करिश्मे की ताक लगाए बैठे है। अब तय जनता को करना है कि क्या यहां का शासन दोबारा से किसी निर्दलीय को सौंपा जाए या फिर से मुख्य पार्टी की जड़े स्थापित की जाए।

हिमाचल प्रदेश में चुनाव 9 नवंबर को होंगे। वोटो की गिनती गुजरात चुनाव की मतगणना के साथ 18 दिसंबर को की जाएगी।

Continue Reading

नेशनल

जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना

Published

on

Loading

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।

इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।

चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्‍थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।

Continue Reading

Trending