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साहित्यकारों की ‘लेफ्ट-राइट’
तथाकथित सेक्युलरिस्ट वामपंथी जमात के साहित्यकारों और दक्षिणपंथी कहे जाने वाले साहित्यकारों के बीच साहित्य सम्मान लौटाने को लेकर खिंची तलवार ने एकबार फिर धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वामपंथी एवं कांग्रेसी कल्चर से प्रेरित साहित्यकारों ने दादरी कांड, कलबुर्गी हत्याकांड, सुधींद्र कुलकर्णी स्याही कांड को देश में बढ़ती असहिष्णुता, लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता पर खतरा बताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा और अपने साहित्य सम्मान वापस लौटा दिए, जबकि देखने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र को छोड़कर उक्त सभी कांड जिन राज्यों में हुए वहां राजग या भाजपा की सरकार नहीं है। वैसे भी यह कानून-व्यवस्था से जुड़े मुद्दे हैं, जिसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार होती हैं।
दूसरी तरफ साहित्यकारों के दक्षिणपंथी धड़े का कहना है कि यह साहित्यकार तब कहां थे जब जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का बेरहमी से कत्ल करके उन्हें घाटी छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा था? इनकी निगाह में तब धर्मनिरपेक्षता खतरे में क्यों नहीं पड़ी थी जब मुजफ्फरनगर, भागलपुर सहित तमाम भयानक दंगे देश में हुए और तब कांग्रेस का शासन था? इन साहित्यकारों का यह भी कहना है कि जब देश में आपातकाल लगाया गया था तब क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जारी थी?
सवाल यह उठता है कि इन तथाकथित सेक्युलरिस्टों की जमात को तब सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ता नजर क्यों नहीं आ रहा था जब कश्मीर घाटी में पाकिस्तान और आइएस के झंडे लहराए जाते हैं एवं भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं? तब इनकी धर्मनिरपेक्षता कहां चली जाती है? जब उप्र में एक दरोगा मनोज मिश्रा की हत्या मांस माफियाओं द्वारा कर दी जाती है तब भी क्या इस जमात ने इस्तीफा देने की जहमत उठाई थी?
सच तो यह है कि जिन साहित्यकारों ने अपने सम्मान वापस लौटाए हैं उनमें से अधिकतर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी या विचारधारा के प्रति समर्पित हैं। एक साहित्यकार तो ऐसी हैं जिन्होंने एक नवजात राजनीतिक दल के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। अब ऐसे लोगों से न तो मोदी सरकार की बढ़ती लोकप्रियता देखी नहीं जा रही है और न ही इनको मोदी सरकार से उपकृत होने की उम्मीद है, इसीलिए वे लोग बहाना खोजकर लगातार सरकार को बदनाम करने का प्रयास करते रहते हैं।
उक्त सभी कांडों की निंदा करते हुए इस धर्मनिरपेक्ष जमात से पूछना चाहता हूं कि देश के किसी भी हिस्से में हुए किसी शर्मनाक घटनाक्रम के लिए मोदी सरकार कैसे दोषी हो गई? भारत में कुछ ऐसे तत्व हैं जो देश को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते। ऐसे लोग भारत के दुश्मन देशों की फंडिग व शह पर एक लोकप्रिय सरकार को बदनाम करना चाहते है। ऐसे लोग भारत को लगातार मजबूत होते नहीं देखना चाहते। ये लोग चाहते हैं कि भारत कभी भी स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में सर उठाकर न चल सके, ऐसे लोगों से समाज को सावधान रहने की जरूरत है, लेकिन चाहे जितना जोर लगा लो सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी।
नेशनल
कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा- आप गलती मानते हैं, बोले- सवाल ही उठता, मेरे पास बेगुनाही के सारे सबूत
नई दिल्ली। महिला पहलवानों से यौन शोषण मामले में भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह मंगलवार को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें उनके खिलाफ तय किए आरोप पढ़कर सुनाए। इसके बाद कोर्ट ने बृजभूषण से पूछा कि आप अपने ऊपर लगाए गए आरोप स्वीकार करते हैं? इस पर बृजभूषण ने कहा कि गलती की ही नहीं मानने का सवाल ही नहीं उठता। इस दौरान कुश्ती संघ के पूर्व सहायक सचिव विनोद तोमर ने भी स्वयं को बेकसूर बताया। तोमर ने कहा कि हमनें कभी भी किसी पहलवान को घर पर बुलाकर न तो डांटा है और न ही धमकाया है। सभी आरोप झूठे हैं।
मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या आरोपों के कारण उन्हें चुनावी टिकट की कीमत चुकानी पड़ी, इस पर बृजभूषण सिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मेरे बेटे को टिकट मिला है।” बता दें कि उत्तर प्रदेश से छह बार सांसद रहे बृजभूषण शरण सिंह को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। पार्टी उनकी बजाय, उनके बेटे करण भूषण सिंह को कैसरगंज सीट से टिकट दिया है, जिसका बृजभूषण तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
बृजभूषण सिंह ने सीसीटीवी रिकाॅर्ड और दस्तावेजों से जुड़े अन्य विवरण मांगने के लिए बृजभूषण सिंह ने आवेदन दायर किया है। उनके वकील ने कहा कि उनके दौरे आधिकारिक थे। मैं विदेश में उसी होटल में कभी नहीं ठहरा जहां खिलाड़ी स्टे करते थे। वहीं दिल्ली कार्यालय की घटनाओं के दौरान भी मैं दिल्ली में नहीं था। बता दें कि कोर्ट इस मामले में जल्द ही अपना फैसला सुना सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि एमपी-एमएलए मामलों में लंबी तारीखें नहीं दी जाएं। हम 10 दिन से अधिक की तारीख नहीं दे सकते।
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