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सबकी किस्मत सलमान नहीं होती!
अब इसे शोहरत और दौलत का मेल कहें या मुकद्दर का खेल। सच तो यह है कि सबकी किस्मत सलमान नहीं होती। वैसे भी बॉलीवुड में नई फिल्म शुक्रवार को रिलीज होती है। आठ मई को सलमान की रियल लाइफ फिल्म सुपहहिट हुई। तकनीकी आधार पर प्रभावशाली लोग मुकदमों को सालों साल निचली अदालतों में लटकाए रहते हैं। निचली अदालत से सजा हो भी गई तो उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर, किसी न किसी तरह जमानत पर बाहर आते रहे हैं। ऐसा रसूखदार और अमीर की ही किस्मत में होता है, जो कानून के जानकारों के जरिए कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं। सलमान ने भी ऐसा ही किया तो क्या बुरा किया?
कितने ही आपराधिक मामले हैं, जिनमें ऐन वक्त पर कोई न कोई ऐसी कड़ी जोड़ दी जाती है जिससे पूरा प्रकरण ही यू टर्न लेता नजर आने लगता है। निश्चित रूप से देश में लाखों मामलों में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए जाते हैं। बारीक से बारीक चूक का बचाव पक्ष हथियार बनाकर इस्तेमाल करता है और फायदा उठा लेता है। कानूनी, तकनीकी खामियों की बैसाखी के दम पर वकील पुलिस की कहानी की धज्जियां उड़ा देते हैं और उनका मुवक्किल बेदाग ही नहीं बाइज्जत भी बरी हो जाता है। पहले सलमान पर धारा 304ए के तहत मामला दर्ज हुआ। जिसमें अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है। बाद में मुख्य गवाह रवीन्द्र पाटील -जो सलमान का बॉडीगार्ड भी था- की गवाही पर मामले में धारा 304 (2) जोड़ी गई, जिसमें अधिकतम 10 साल कारावास का प्रावधान है। अगर आरोप बदलते हैं तो गवाह को फिर से बुलाना होगा। रवीन्द्र 2007 में ही दुनिया को अलविदा कह चुका है, इसलिए यह मौका नहीं मिल सकता।
यहां यह ध्यान रखने लायक है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 33 के अनुसार गवाह की मृत्यु होने पर उसका पहले का दिया बयान ही ग्राह्य होता है। लेकिन इसमें एक पेंच और था। दूसरा गवाह कमाल खान क्यों नहीं पेश किया गया? मान लिया कि वह ब्रिटिश नागरिक है। लेकिन उसे लाने के क्या प्रयास किए गए? राहत के लिए विचारणीय बातें यही बनीं और 13 साल बाद मामले में नया मोड़ आ गया। कुछ नई कहानी भी सामने लाई गई। मसलन गाड़ी सलमान का ड्राइवर अशोक चला रहा था। दुर्घटना के चलते जिधर सलमान बैठे थे, दरवाजा जाम हो गया इसलिए सलमान को ड्राइवर वाले दरवाजे से उतरना पड़ा। कुल मिलाकर यह साफ है कि पुलिस जांच और कानूनी दांवपेंचों के बीच अभियोजन पक्ष के तर्क प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए और हाथ कुछ नहीं आया।
अब उच्च न्यायालय में दोनों पक्षों की दलीलों के बाद सलमान का भविष्य नए सिरे से लिखा जाएगा, तबतक तो यही कहा जाएगा ‘सबकी किस्मत सलमान नहीं होती’। सलमान की हकीकत का एक पहलू यह भी कि उसे सुपर स्टार बनाने में उन फुटपाथ पर सोने वालों का ही हाथ है, जिन्हें उनके वफादारों ने कुत्ता तक कहा। माना कि इस दुर्घटना के बाद से सलमान चैरिटी करते हैं, बहुत दयालु हो गए हैं, अनगिनत दिल के मरीजों का इलाज कराया। बड़े मददगार हैं, बहुत रहम दिल हैं। हाड़ मांस के बने जीते-जागते सलमान को लोग खुदा से भी ज्यादा प्यार करते हैं। दूसरा पहलू भी है। इस बड़े दिलवाले की हकीकत नूर उल्ला शेख के परिवार से पूछिए, जिसने 28 सितंबर, 2002 को सलमान की गाड़ी से दबते ही दम तोड़ दिया। बाकी बचे चार मुन्नू खान, मो. कलीम, इकबाल पठान, और अब्दुल्ला शेख से पूछिए जो ऐसे कुचले गए कि जिन्दगी भर के लिए अपाहिज हो गए। ये और इनके परिजन सलमान से मदद के लिए आज भी टीवी चैनलों पर मिन्नतें करते देखे जाते हैं।
यही नहीं, इनका बड़ा दिल देखिए कि अब भी उसके लिए मामूली सजा या माफी की बात करते हैं। कैसा लगता होगा इन्हें जब सलमान के बड़े दिल वाले होने की बात सुनते होंगे? सबसे अहम गवाह रवीन्द्र पाटील का सच भी बड़ा अजीब है। घटना के बाद वह पहले तो मुंबई से गायब हो गया (पता नहीं किसने किया या कराया), फिर मानसिक रोगी हुआ, भीख तक मांगने लगा और आखिर में एक सरकारी अस्पताल में मौत हो गई। इसकी जांच क्यों नहीं हुई?
नेशनल
जानिए कौन हैं वो चार लोग, जिन्हें पीएम मोदी ने नामांकन के लिए अपना प्रस्तावक चुना
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी के काल भैरव मंदिर में दर्शन करने के बाद अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पीएम मोदी ने वाराणसी से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल किया है। पीएम मोदी के नामांकन में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह समेत 20 केंद्रीय मंत्री मौजूद रहे। इसके अलावा 12 राज्यों के सीएम भी शामिल हुए। पीएम मोदी के नामांकन के दौरान उनके साथ चार प्रस्तावक भी कलेक्ट्रेट में मौजूद रहे।
इनमें एक पुजारी, दो ओबीसी और एक दलित समुदाय के व्यक्ति का नाम है। दरअसल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावक मौजूद रहे। इनमें पहला नाम आचार्य गणेश्वर शास्त्री का है, जो कि पुजारी हैं। इसके बाद बैजनाथ पटेल पीएम मोदी के नामांकन के दौरान प्रस्तावक बने, जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। वहीं लालचंद कुशवाहा भी पीएम के नामांकन में प्रस्तावक के तौर पर शामिल हुए। ये भी ओबीसी समाज से आते हैं। पीएम मोदी के प्रस्तावकों में आखिरी नाम संजय सोनकर का भी है, जो कि दलित समुदाय से हैं।
चुनाव में प्रस्तावक की भूमिका अहम होती है। ये ही वे लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव रखते हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, प्रस्तावक वे स्थानीय लोग होते हैं, जो किसी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से प्रस्तावित करते हैं। आमतौर पर नामांकन के लिए किसी महत्वपूर्ण दल के वीआईपी कैंडिडेट के लिए पांच और आम उम्मीदवार के लिए दस प्रस्तावकों की जरूरत होती है।
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