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अन्तर्राष्ट्रीय

संयुक्त राष्ट्र : पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को विशेष सत्र

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संयुक्त राष्ट्र | पत्रकारों को संघर्षरत स्थिति में काम करते समय तटस्थता और निष्पक्षता का पालन करना चाहिए, ताकि जिस देश में वे काम कर रहें हैं वहां उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके । सरकार को पत्रकारों पर मनमाने ढंग से प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए।

सुरक्षा परिषद ने सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में काम कर रहे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बुधवार को एक सत्र का आयोजन किया। आयोजित सत्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी ने आतंकवादियों की ओर से खतरे की बदल रही प्रकृति पर बात रखी। उन्होंने कहा कि परिषद को पत्रकारों की रक्षा करने के लिए तेजी से कार्य करने और सरकारों को आतंकवादी समूहों के खिलाफ कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि परिषद को इस तरह की आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए कानून और जानकारी का इस्तेमाल करना चाहिए। परिषद को ऐसे सदस्य देशों की सहायता करनी चाहिए, जो इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ राष्ट्र की क्षमताओं को मजबूत कर सकें।

उन्होंने कहा कि सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। मुखर्जी ने कहा, “भारत का संविधान और कानून स्वतंत्र ऑनलाइन और ऑफलाइन मीडिया की अभिव्यक्ति और कामकाज की स्वतंत्रता की रक्षा करता है।” परिषद में पत्रकारों के लिए सुरक्षित परिवेश मुहैया कराने और उन पर हमले की निंदा करने के लिए सभी देशों और पक्षों का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया गया। आतंकवादियों की ओर से मीडियाकर्मियों पर पड़ रहे घातक प्रभाव की वजह से पत्रकारों को सुरक्षा देने के लिए सुरक्षा परिषद का यह सत्र बुलाया गया।

पत्रकारों की सुरक्षा की दिशा में कार्यरत न्यूयॉर्क की समिति के मुताबिक, इस साल 27 पत्रकारों की मौत हो गई है, जिसमें से एक आंध्र प्रदेश और ओडिशा के थे। सुरक्षा परिषद के दिनभर चले सत्र में ‘द वॉल स्ट्रीट’ समाचारपत्र के पत्रकार डेनियल पर्ल की विधवा मैरिन पर्ल ने भी हिस्सा लिया। डेनियल का कराची में अपहरण कर उनका सिर कलम कर दिया गया था।

अन्तर्राष्ट्रीय

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का बयान, ‘पाकिस्तान के इस सैन्य तानाशाह को कब्र से निकालकर फांसी पर लटकाना चाहिए’

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नई दिल्ली। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने नेशनल असेंबली में एक बहस के दौरान कहा कि संविधान को निरस्त करने के लिए अयूब खान के शव को कब्र से निकालकर उसको फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अयूब खान ने संविधान को रद्द करने का जो काम किया था, उसके लिए उनको कभी माफ नहीं किया जा सकता है। आसिफ ने ये कमेंट असेंबली में विपक्ष के नेता और अयूब खान के पोते उमर अयूब खान से बहस के दौरान किया। उमर ने सेना की पिछले सप्ताह की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर सवाल उठाते हुए फौज के राजनीति में हस्तक्षेप पर एतराज जताया था। इसके बाद जवाब में ख्वाजा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी।

इससे पहले उमर अयूब खान ने कहा कि संविधान के अनुसार सुरक्षा एजेंसियां राजनीति में शामिल नहीं हो सकती हैं। उन्होंने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का हवाला देते हुए कहा कि सैन्य अधिकारियों की शपथ उन्हें राजनीति में हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं देती। उन्होंने कहा ‘‘सुरक्षा संस्थानों को संविधान के अनुसार, राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए। यह संवाददाता सम्मेलन नहीं होना चाहिए था।’’ उन्होंने अनुच्छेद छह का हवाला देते हुआ कहा कि संविधान को निरस्त करना दंडनीय देशद्रोह है जिसके लिए मौत की सजा तय है। उन्होंने आग्रह किया कि सभी संस्थानों को संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए।

रक्षा मंत्री आसिफ ने कहा कि अयूब खान संविधान का उल्लंघन करने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्हें अनुच्छेद छह का सामना करने वाला भी पहला व्यक्ति होना चाहिए। रक्षा मंत्री आसिफ ने कहा, “देश में पहला मार्शल लॉ लागू करने वाले झूठे फील्ड मार्शल अयूब खान के शरीर को भी (अनुच्छेद 6 के अनुसार) खोदकर निकाला जाना चाहिए और फांसी दी जानी चाहिए।”

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