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वीरभद्र के गढ़ ‘शिमला ग्रामीण’ में भाजपा की जोरदार चुनौती

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नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)| हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। देश की दो सबसे बड़ी प्रार्टियां- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस एक-दूजे को टक्कर देने के लिए तैयार हैं। एक तरफ कांग्रेस देश में अपने सिमटते अस्तित्व को बचाने के लिए पहाड़ों पर दोबारा कब्जा जमाने की जुगत में है, तो वहीं भाजपा प्रधानमंत्री के सहारे सत्ता वापसी के लिए जोर आजमाइश कर रही है।

कांग्रेस ने जहां एक बार फिर अपने बुजुर्ग नेता वीरभद्र सिंह को ‘मुख्यमंत्री चेहरा’ के रूप में चुनावी अखाड़े में उतारा है, वहीं भाजपा ने किसी चेहरे को आगे किए बगैर किला फतह करने का ख्वाब संजोया है। जीत अगर कांग्रेस की हुई, तो वीरभद्र सातवीं बार राज्य की सत्ता संभालेंगे। भाजपा के कार्यकर्ता यह मानकर चल रहे हैं कि पार्टी को बहुमत मिला तो फिर प्रेम कुमार धूमल ही मुख्यमंत्री बनेंगे।

दरअसल, धूमल का दामन भ्रष्टाचार के कारण ‘धूमिल’ है, इसलिए भाजपा को उनका चेहरा आगे करने में तनिक संकोच है, लेकिन पार्टी के अंदर गुटबाजी खत्म कर धूमल का विकल्प तलाश लेना इतना आसान भी नहीं है।

हिमाचल में ‘पहाड़ों की रानी’ कही जाने वाले शिमला में वर्ष 2008 को हुए परिसीमन के बाद शिमला (ग्रामीण) विधानसभा सीट उभरकर सामने आई। वर्ष 2012 में यहां पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज व वरिष्ठ नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भाजपा उम्मीदवार को शिकस्त दी थी।

शिमला (ग्रामीण) विधानसभा सीट 68 सदस्यीय विधानसभा की सीट संख्या 64 है और यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 2012 में 68,326 थी। जाति विशेष बहुल क्षेत्र होने के कारण परिसीमन से पहले यहां भाजपा का कब्जा था, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार वीरभद्र सिंह ने जाति समीकरणों को उलटकर यहां कांग्रेस को जीत दिलाई थी।

हिमाचल प्रदेश में चुनाव की तारीखों के एलान के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला (ग्रामीण) विधानसभा सीट को छोड़कर सोलन जिले की अर्की सीट से लड़ने का फैसला किया है, लेकिन शिमला (ग्रामीण) सीट के प्रति अपना लगाव दिखाते हुए उन्होंने अपने बेटे विक्रमादित्य सिह को यहां से चुनाव मैदान में उतारा है।

विक्रमादित्य शिमला (ग्रामीण) क्षेत्र से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कर रहे हैं। सिंह हिमाचल युवा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी हैं। वहीं दूसरी तरफ पिछले विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी भाजपा ने इस सीट से हिमाचल की मशहूर शख्सियत प्रोफेसर प्रमोद शर्मा पर दांव खेला है। शर्मा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रबंधन संस्थान में कार्यरत हैं।

प्रमोद शर्मा को एक समय वीरभद्र सिंह का करीबी बताया जाता था। शर्मा नई दिल्ली में भारतीय युवा कांग्रेस के प्रवक्ता भी रह चुके हैं और 2003, 2007 और 2012 में ठियोग व कुमारसैन-सुन्नी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। प्रमोद की गांव-गांव में पहचान होने के कारण उन्हें जमीन से जुड़ा हुआ नेता बताया जाता है।

प्रमोद शर्मा 2012 में तृणमूल कांग्रेस के हिमाचल प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

हिमाचल पर कब्जे की इस जंग में दो विरोधी पार्टियों के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और आम आदमी पार्टी (आप) भी कुछ कर दिखाने के लिए जद्दोजहद करती नजर रही हैं। माकपा ने 68 विधानसभा सीटों में से 14 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि आप ने उम्मीदवारों की घोषणा अभी नहीं की है।

पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में चार सीटों में से तीन- कांगड़ा, हमीरपुर और मंडी में अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि इन चारों सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था।

उल्लेखनीय है कि अन्ना के कांग्रेस विरोधी आंदोलन के बाद वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में करीब 74 फीसदी मतदान हुआ था। इस चुनाव में 36 सीटें कांग्रेस को हाथ लगी थीं और वह सूबे में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। सत्ता गंवाकर दूसरे नंबर पर रही भाजपा को 26 सीटें और निर्दलियों को 6 सीटें मिली थीं।

हिमाचल प्रदेश में मतदान 9 नवंबर को और मतगणना 18 नवंबर को होगी।

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राहुल गांधी ने फिर उठाए ईवीएम पर सवाल, कहा- ये एक ब्लैक बाॅक्स है, किसी को इसकी जांच की इजाजत नहीं

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष ने ईवीएम का मुद्दा जमकर उठाया था। हालांकि चुनावी नतीजे आने के बाद ये मुद्दा गायब सा हो गया था। अब एक बार फिर राहुल गाँधी ने ईवीएम का मुद्दा उठाया है। राहुल गांधी ने बिजनेसमैन एलन मस्क की पोस्ट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि भारत में ईवीएम एक ब्लैक बाॅक्स है और किसी को इसकी जांच की इजाजत नहीं है। हमारी चुनावी प्रकिया में पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। जब संस्थाओं में जवाबदेही की कमी होती है तो लोकतंत्र एक दिखावा बन जाता है।

राहुल गांधी ने अपनी पोस्ट में हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव से जुड़ी एक घटना का जिक्र किया है। राहुल ने इससे जुड़ी खबर को शेयर किया है। इस मामले में ईवीएम को लेकर सवाल उठाए गए हैं। मुंबई पुलिस ने शिवसेना शिंदे गुट के सांसद रविंद्र वायकर के साले मंगेश पांडिलकर के खिलाफ केस दर्ज किया है। मंगेश पांडिलकर पर यह आरोप है कि उसने मुंबई के गोरेगांव चुनाव केंद्र के अंदर पाबंदी के बावजूद मोबाइल का इस्तेमाल किया था।

मुंबई पुलिस ने पांडिलकर को मोबाइल देने के आरोप में चुनाव आयोग के एक कर्मचारी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है। दरअसल, इस मामले में मुंबई की नॉर्थ पश्चिम सीट से चुनाव लड़नेवाले कई उम्मीदवारों की तरफ से भी शिकायतें मिली थीं। जिसके बाद मामला दर्ज किया गया। बता दें कि शिवसेना शिंदे के उम्मीदवार रविंद्र वायकर दोबारा काउंटिंग होने के बाद केवल 48 वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहे थे। इस पर काफी विवाद भी हुआ था।

 

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