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ऑफ़बीट

हिंदी में भी जल्द उपलब्ध होगा गूगल असिस्टेंट

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सैन फ्रैंसिस्को। मोबाइल व स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं के लिए एक खुशखबरी है कि जल्द ही वे हिंदी में भी गूगल असिस्टेंट एप का इस्तेमाल कर पाएंगे। दरअसल, गूगल ने इस साल के अंत तक हिंदी समेत 30 से ज्यादा भाषाओं में गूगल असिस्टेंट उपलब्ध कराने की बात कही है। सर्च इंजन गूगल का डिजिटल असिस्टेंट अब हिंदी, दानिश, डच इंडोनेशियाई, नार्वेजियन, स्वीडिश और थाई भाषाओं में भी एंड्रायड स्मार्टफोन व एप्पल आईफोन पर उपलब्ध होगा।

गूगल के वाइस प्रेसिडेंट (प्रोडक्ट) निक फॉक्स ने शुक्रवार को एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा, “असिस्टेंट आठ भाषाओं में पहले से ही उपलब्ध है और इस साल के अंत तक यह 30 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध होगा। इससे दुनियाभर में 95 फीसदी एंड्रायड तक इसकी पहुंच बन जाएगी।”

उन्होंने कहा, “हम इस साल बाद में असिस्टेंट को बहुभाषी भी बनाने जा रहे हैं, जिससे एक से अधिक भाषा बोलने वाले असिस्टेंट पर बात कर पाएंगे।” उन्होंने आगे कहा, “इसस नए फीचर से असिस्टेंट आपको अनेक भाषाओं में समझ पाएगा। अगर आप दफ्तर में जर्मन बोलना पसंद करते हैं और घर में फ्रेंच तो असिस्टेंट आपके साथ सही तरीके से काम कर पाएगा।”

बहुभाषाओं में पहले यह अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन में उपलब्ध होगा। बाद में अन्य भाषाओं को भी शामिल किया जाएगा। इस समय गूगल असिस्टेंट एंड्रायड फोन पर अंग्रेजी, फ्रांसिसी, जर्मन, इतालवी, जापानी, कोरियाई, स्पेनिश और ब्राजील व पुर्तगाली भाषाओं में उपलब्ध है।

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उत्तर प्रदेश

अब एडवांस एमआरआई से ही स्लीप एपनिया का चलेगा पता

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लखनऊ 15 जून: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार नवाचार और शोध पर जोर दे रहे हैं ताकि आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर प्रदेशवासियों को इसका लाभ दिया जा सके। इसी क्रम में सीबीएमआर शोधकर्ता और एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने एमआरआई तकनीक के जरिये स्लीप एपनिया (नींद के दौरान होने वाली समस्याएं) के एडवांस स्टेज का पता लगाने के लिए एक शोध किया, जो सफल रहा। इससे शोध से अब एडवांस एमआरआई से स्लीप एपनिया के एडवांस स्टेज का पता लगाया जा सकेगा। इसके जरिये मरीज का सही दिशा और सटीक इलाज हो सकेगा।

शोध में सिर की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया

सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर) के शोधकर्ता डॉ. अहमद रजा खान ने एसजीपीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर जिया हाशिम और रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रोफेसर जफर नियाज के सहयोग से किए गए अध्ययन में एमआरआई तकनीक के जरिए ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) के मस्तिष्क की सूक्ष्म संरचना पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया है। इस तकनीक से कुछ माइक्रोन से लेकर 20-30 माइक्रोन तक के ऊतक परिवर्तनों की जांच की जा सकती है, जो पारंपरिक एमआरआई माप से 100 से 1000 गुना अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। डॉ. अहमद ने बताया कि डिफ्यूजन एमआरआई ऊतकों में पानी के अणुओं के प्रसार को मापता है, जिससे ऊतक सूक्ष्म संरचना के बारे में जानकारी मिलती है। डिफ्यूजन एमआरआई में प्रगति, जैसे कि डिफ्यूजन कर्टोसिस इमेजिंग (डीकेआई), जटिल ऊतक वातावरण में गैर-गौसियन जल प्रसार व्यवहार की जांच करती है। बायोफिजिकल मॉडलिंग का उपयोग करते हुए, डीकेआई पैरामीटर एक्सोनल जल अंश जैसे श्वेत-पैरामीटर प्रदान कर सकते हैं। एक्सोन न्यूरॉन्स के ट्रंक हैं। इसलिए, ऐसी जानकारी (एक्सोनल जल अंश), मस्तिष्क में सेलुलर स्तर की न्यूरोनल संरचना को दर्शाती है।

चिकित्सीय रणनीति के विकास में होगा बड़ा योगदान

एसजीपीजीआई के प्रोफेसर ने बताया कि एमआरआई से ऐसी सेलुलर जानकारी (एक्सोनल जल अंश) की जांच करके, शोधकर्ता न्यूरोनल संरचना की अखंडता और रोग प्रबंधन के विभिन्न समय पर ओएसए से जुड़े संभावित परिवर्तनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अध्ययन के निष्कर्ष ओएसए वाले व्यक्तियों में देखी गई संज्ञानात्मक हानि और अन्य न्यूरोलॉजिकल परिणामों के अंतर्निहित न्यूरोबायोलॉजिकल तंत्र पर प्रकाश डालते हैं। इन तंत्रों को समझना ओएसए से संबंधित जटिलताओं के प्रबंधन के लिए बेहतर नैदानिक ​​और चिकित्सीय रणनीतियों के विकास में योगदान दे सकता है।

यह स्लीप एपनिया

स्लीप एपनिया एक व्यापक स्थिति है, जो सोते समय व्यक्ति की सांस को बाधित करती है। इसके कारण व्यक्ति केवल सांस लेने के लिए जागता है, जिससे उसकी नींद बाधित होती है और उसे आराम महसूस नहीं होता। समय के साथ, स्लीप एपनिया गंभीर या यहां तक ​​कि घातक जटिलताओं को जन्म दे सकता है, इसलिए शीघ्र निदान और उपचार महत्वपूर्ण है।

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