नेशनल
व्यापमं घोटाला : सीबीआई जांच की सिफारिश नहीं करेंगे शिवराज
भोपाल | मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह साफ कर दिया है कि वह व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की सिफारिश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा है कि व्यापमं मामले की जांच उच्च न्यायालय के पर्यवेक्षण तथा विशेष जांच दल की निगरानी में विशेष कार्य बल (एसटीएफ) कर रहा है और अगर उच्च न्यायालय चाहे तो वह किसी भी एजेंसी से इसकी जांच करा सकता है। व्यापमं मामले में सरकार पर लग रहे आरोपों और आरोपियों की हो रही संदिग्ध मौतों के बाद पहली बार मुख्यमंत्री को सामने आकर सफाई देना पड़ी है।
शिवराज ने रविवार को अपने आवास पर संवाददाता सम्मेलन में कहा कि व्यापमं में चल रही गड़बड़ियां सामने आने पर उन्होंने व्यवस्था से दुरुस्त करने के लिए एसटीएफ को जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस मामले में जिस पैमाने पर कार्रवाई हुई है, वैसी देश में और किसी मामले में नहीं हुई। उन्होंने कहा कि यह मामला बाद में उच्च न्यायालय पहुंचा और एसआईटी का गठन किया गया। फिलहाल विशेष जांच दल (एसआईटी) की निगरानी में एसटीएफ इसकी जांच कर रही है। सरकार का इस जांच से कुछ लेना देना नहीं हैं। कांग्रेस के कुछ मित्र सीबीआई जांच की मांग को लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय गए, जहां से उन्हें जवाब मिला कि जांच ठीक चल रही है।
शिवराज से जब संवाददाता ने सवाल किया कि वह इस मामले की जिम्मेदारी सीबीआई को क्यों नहीं सौपतें? उनका जवाब था, “उनकी सरकार उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय से ऊपर नहीं है। उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय ने अगर सीबीआई जांच से इंकार किया है तो हम कैसे कहें कि यह फैसला ठीक नहीं, और जांच हम करवाएंगे। उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जिस एजेंसी से चाहे उससे जांच करा सकता हैं, हमें कोई आपत्ति नहीं है।” मुख्यमंत्री ने शनिवार को झाबुआ के मेघनगर में व्यापमं घोटाले पर कवरेज करने दिल्ली से आए आजतक न्यूज चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने की भी घोषणा की।
अक्षय की तबीयत उस समय बिगड़ी गई थी, जब वह व्यापमं घोटाले की संदिग्ध आरोपी नम्रता के परिजनों का साक्षात्कार ले रहे थे। नम्रता का शव संदिग्ध हालत में मिला था। अक्षय को मेघनगर के सरकारी व निजी अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें गुजरात के दाहोद स्थित अस्पताल स्थांतरित कर दिया गया। अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह और उनकी सरकार दुख की इस घड़ी में अक्षय के परिजनों के साथ है। अक्षय का गुजरात के दाहोद जिला अस्पताल में पोस्टमार्टम हुआ। उसकी वीडियोग्राफी भी कराई गई। मौत की वजह का पता अंतिम रिपोर्ट आने पर ही चलेगा।
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सुनीता केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट का नोटिस, अदालत की सुनवाई वाली प्रक्रिया का वीडियो बनाकर किया था सार्वजनिक
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट ने नोटिस भेजा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने ये नोटिस वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियमों का उल्लंघन करने पर भेजा है।
सुनीता केजरीवाल और 5 अन्य लोगों के खिलाफ जनहित याचिका दायर करके आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने कोर्ट की सुनवाई वाली प्रक्रिया का वीडियो बनाकर सार्वजनिक किया, जो अपराध है। कोर्ट ने सुनीता केजरीवाल को जो नोटिस भेजा है, उसमें अदालती कार्यवाही का वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाने का निर्देश दिया गया है। अगर वे ऐसा नहीं करती तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वीडियो गत 28 मार्च को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी के दौरान रिकॉर्ड किया गया था।
याचिका अधिवक्ता वैभव सिंह द्वारा दायर की गई, जिन्होंने कई सोशल मीडिया हैंडल का नाम भी लिया। सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि केजरीवाल द्वारा 28 मार्च को राउज एवेन्यू कोर्ट को संबोधित करने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) और अन्य विपक्षी दलों से जुड़े कई सोशल मीडिया हैंडल ने कोर्ट की कार्यवाही की वीडियो/ऑडियो रिकॉर्डिंग बनाई और उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किया।
28 मार्च को केजरीवाल को दिल्ली शराब नीति मामले के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कोर्ट में पेश किया गया था। केजरीवाल ने व्यक्तिगत रूप से कोर्ट को संबोधित किया और कहा कि ईडी भाजपा के लिए जबरन वसूली का रैकेट चला रहा है। सिंह के अनुसार सुनवाई खत्म होने के तुरंत बाद कई सोशल मीडिया हैंडल ने कोर्ट की कार्यवाही की ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग को पोस्ट, रीपोस्ट, फॉरवर्ड, शेयर, रीशेयर करना शुरू कर दिया।
सुनीता केजरीवाल ने अक्षय नाम के एक एक्स (ट्विटर) अकाउंट द्वारा अपलोड की गई ऑडियो रिकॉर्डिंग को रीपोस्ट किया। सिंह ने तर्क दिया कि कोर्ट के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय नियम 2021 के तहत अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग प्रतिबंधित है और इन वीडियो को वायरल करना न्यायपालिका और न्यायाधीशों की छवि को खराब करने का एक प्रयास है।
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