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आध्यात्म

तिरूपति बालाजी की गुप्त रसोई में बनते हैं रोजाना तीन लाख लड्डू, जानिए क्यों खास है यह रसोई

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आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर दर्शनीय है। हर साल लाखों लोग तिरुमाला की पहाडिय़ों पर उनके दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर तिरुमलै पर्वत पर स्थित है, जहां भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं।

तिरुपति शहर इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ है। इसकी सात चोटियां भगवान आदिशेष के सात सिरों को दर्शाती हैं। बाला जी का मंदिर सातवीं चोटी वेंकटाद्री पर है। तिरुपति के इतने प्रचलित होने के पीछे कई कथाएं और मान्यताएं हैं।

 

वेंकट पहाड़ी के स्वामी होने के कारण ही भगवान विष्णु को वेंकटेश्वर भी कहा जाता है। यह मंदिर भारत के सर्वाधिक संपन्न मंदिरों में से एक है। प्रचलित मान्यता के अनुसार मनौती पूरी होने के बाद यहां आने वाले भक्तजन भगवान को अपने बाल अर्पित करते हैं। यह मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट  नमूना है।

 

ऐसा कहा जाता है कि मंदिर की मूर्ति से समुद्र की लहरों की ध्वनि सुनाई देती है। इसी कारण उसमें नमी रहती है। यहां प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले लड्डू विश्व प्रसिद्ध हैं, जिन्हें बनाने के लिए वहां के कारीगर आज भी तीन सौ साल पुराना पारंपरिक तरीका यूज़ करते हैं। इसे मंदिर के गुप्त रसोईघर में तैयार किया जाता है, जिसे ‘पोटू कहा जाता है। यहां रोज़ाना लगभग 3 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं।

तिरुपति जाने के लिए सितंबर से फरवरी के बीच का समय अच्छा है। इस दौरान यहां कई झांकियां निकलती हैं और मौसम भी सुहावना रहता है।

 

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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