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पहले जहर देकर, फिर सांप से हुई मारने की कोशिश, इसरो वैज्ञानिक का खुलासा

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नई दिल्ली। इसरो के शीर्ष वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने फेसबुक पोस्ट के जरिये जो खुलासा किया है जो काफी चौकाने वाला है। तपन मिश्रा के मुताबिक़ उन्हें तीन साल में कई बार जान से मारने की कोशिश हो चुकी है लेकिन भगवान की दुआ से वो अबतक जिंदा हैं। उन्होंने कहा कि बाहरी लोग नहीं चाहते कि इसरो और इसके वैज्ञानिक आगे बढ़ें और कम लागत में टिकाऊ सिस्टम बनाएं। मिश्र ने डॉ. विक्रम साराभाई की रहस्यमयी मौत का हवाला देते हुए केंद्र सरकार से जांच की मांग की है।

तपन मिश्रा ने आरोप लगाया कि उन्हें 23 मई, 2017 को यहां इसरो मुख्यालय में पदोन्नति साक्षात्कार के दौरान घातक आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड जहर दिया गया था। उन्होंने कहा, ”दोपहर के भोजन के बाद ‘स्नैक्स’ में संभवत: डोसे की चटनी के साथ मिलाकर जहर दिया गया था।” उन्होंने दावा किया कि उन्हें सांप से भी मारने की कोशिश की गई थी।

तपन मिश्रा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ”इसरो में हमें कभी-कभी बड़े वैज्ञानिकों के संदिग्ध मौत की खबर मिलती रही है। साल 1971 में प्रोफेसर विक्रम साराभाई की मौत संदिग्ध हालात में हुई थी। उसके बाद 1999 में VSSC के निदेशक डॉक्टर एस श्रीनिवासन की मौत पर भी सवाल उठे थे। इतना ही नहीं 1994 में श्री नांबीनारायण का केस भी सबके सामने आया था। लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन मैं इस रहस्य का हिस्सा बनूंगा।”

मिश्रा की फेसबुक पोस्ट के मुताबिक, 23 मई 2017 को तपन मिश्रा को जानलेवा आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड दिया गया था। यह उन्हें उनके प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान इसरो हेडक्वार्टर बेंगलुरु में चटनी और डोसाई में मिलाकर दिया गया था। इसे उन्होंने लंच के कुछ देर बाद हुए नाश्ते में खाया था। इंटरव्यू के बाद वो बड़ी मुश्किल से बेंगलुरु से अहमदाबाद पहुंच पाए थे। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि बाद में उन्हें सांस लेने में कठिनाई, त्वचा का असामान्य रूप से फट जाना, चमड़ी निकला और फंगल संक्रमण सहित कई गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ा।अपने फेसबुक पोस्ट में मिश्रा ने यह भी दावा किया कि उन्हें सांप से मारने की भी कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि उनके क्वार्टर में जहरीले सांप छोड़े गए। उन्होंने एम्स के डॉक्टर से इलाज का मेडिकल रिपोर्ट भी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर साझा किया है। उन्होंने सरकार से इस मामले की जांच की अपील की है।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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