आध्यात्म
Bhai dooj Special : बहन-भाई के प्रेम का त्योहार भाई-दूज, जानिए टीके का शुभ मुहूर्त
पंच पर्व महोत्सव दिवाली का पांचवां पर्व भाई-दूज है जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। यह भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है तथा देश भर में बड़े सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाया जाता है। इस साल भाई दूज शनिवार को है। खास बात यहा है कि इस बार टीका कराने के लिए भाई-बहन को इंतजार नहीं करना पड़ेगा। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया पूरे दिन है और कभी भी टीका किया जा सकता है।
प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भैयादूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाई को अपने घर आमंत्रित कर अथवा सायं उनके घर जाकर उन्हें तिलक करती हैं और भोजन कराती हैं। इस दिन को यम द्वितीया भी कहते हैं, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है।
यूं तो भैया दूज का टीका अभिजीत मुहूर्त में करना श्रेष्ठ होता है। वैसे, शनिवार को पूरे दिन द्वितीया है। अभिजीत मुहूर्त का समय पूर्वाह्न 11.32 से 12.35 तक है। दूसरा मुहूर्त अपराह्न 01.19 से 3.36 तक है।
इस दिन यमुना में स्नान करना, माथे पर बहन के हाथों से तिलक लगवाने तथा बहन के हाथ से बना भोजन खाने की मान्यता है। बहनें अपने भाई की लम्बी आयु के लिए यम की पूजा करती हैं और व्रत भी रखती हैं। राखी की तरह इस दिन भी भाई अपनी बहन को अनेक उपहार देते हैं। मान्यता है कि अपने भाई को राखी बांधने के लिए बहनें उनके घर जाती हैं परंतु भैया दूज पर भाई अपनी बहन के घर जाता है।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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