Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

प्रादेशिक

सिद्धार्थ नारायण को कहा जाता है RTI का राम जेठमलानी, ढूंढे 93 साल पुराने महल के दस्तावेज

Published

on

Loading

लखनऊ। वर्ष 1928 में जब ओयल रियासत जनपद खीरी के तत्कालीन राजा युवराज दत्त सिंह ने अपने महल को किराये पर चढ़ाया था तब वह यह कभी भी नहीं सोच सकते थे कि लगभग एक शतक बाद उनका यह महल आरटीआई की एक मिसाल बन जायेगा। वर्ष 1928 में राजा ने अपने महल को उस समय के डिप्टी कलेक्टर को 30 वर्षों के लिये किराये पर दिया था। हिन्दुस्तान के आजाद हो जाने के बाद ये किरायेदारी पुनः 30 वर्षों के लिये बढ़ा दी गयी थी। राजा युवराज की मृत्यु वर्ष 1984 में हो गयी। ओयल परिवार ने अपने पुश्तैनी महल के अभिलेखों की छानबीन शुरू की। कई वर्षों तक उपरोक्त अभिलेख को ढूढ़ने का सिलसिला चलता रहा। अन्ततः पूरे प्रकरण को अपने कब्जे में लेते हुए राजा युवराज दत्त सिंह के पोते कुँवर प्रद्युम्न नारायण दत्त सिंह ने स्टार आरटीआई एक्टीविस्ट सिद्धार्थ नारायण को अपनी पुस्तैनी सम्पत्ति की समस्या समझायी।

दो साल की समय सीमा तय की गयी एवं लक्ष्य तय किया गया कि उपरोक्त सम्पत्ति के मूल अभिलेख को खोज लिया जायेगा। इस क्रम में चार आरटीआई याचिकायें जिलाधिकारी कार्यालय मण्डलायुक्त कार्यालय वित्त विभाग एवं राजस्व परिषद को पार्टी बनाते हुए सूचना मांगी गयी। सारी आरटीआई धारा .6 ;3द्ध के अन्तर्गत जिलाधिकारी कार्यालय जनपद लखीमपुर खीरी को स्थानान्तरित कर दी गयी। सारी याचिकायें दिनांक 28 अगस्त 2019 को दायर की गयी थी और 27 मार्च 2020 को लिखित सूचना प्राप्त हुई कि राजा युवराज दत्त सिंह के द्वारा सम्पादित मूल अभिलेख उनके पोते कुंवर प्रद्युम्न नारायण दत्त सिंह को आरटीआई के तहत प्राप्त हुए। साथ ही यह भी साबित हुआ कि उपरोक्त सम्पत्ति का खाता सं0.5 एवं खसरा सं0.359 है। यह मूल खसरा संख्या है।

इस सूचना को पाते हुए ओयल रियासत के बड़े राजा विष्णु नारायण दत्त सिंह ने मीडिया से मुखातिब होते हुए अत्यन्त प्रसन्नता जाहिर की एवं तहेदिल से जिलाधिकारी खीरी शैलेन्द्र कुमार सिंह एवं एसआरओ कैप्टन एसपी दूबे का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर युवरानी आराधना सिंह ने महिला सशक्तीकरण एवं मिशन शक्ति प्रोग्राम में अपना योगदान देने की बात कही। ओयल रियासत के कुँवर हरिनारायण सिंह जी ने पूरे प्रकरण पर पूरे जिलाधिकारी कार्यालय जनपद खीरी का धन्यवाद व्यक्त किया।

कुँवर प्रद्युम्न नारायण सिंह ने उपरोक्त सम्पत्ति का रख.रखाव एवं उसको अदब से रखने की एवं स्वच्छता अभियान के अधीन सदेव हरा.भरा एवं स्वच्छ रखने की प्रार्थना की। सिद्धार्थ नारायण का सबने दिल से शुक्रिया अदा किया। सिद्धार्थ ने बताया कि ओयल एक ऐसी रियासत है जो भविष्य एवं वर्तमान में विश्वास रखती है एवं वह इस बात से बहुत प्रभावित हुए कि 75 वर्ष की उम्र में बड़े राजा साहब विष्णु दत्त सिंह ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम एवं वाट्अप का रोजाना उपयोग करते है और इस बात पर सिद्धार्थ नारायण ने अत्यन्त गर्व महसूस किया कि उनके द्वारा दिये गये दो वर्ष के समय सीमा के अन्तर्गत ओयल राजघराने की सम्पत्ति के 93 साल पुराने अंग्रेजों के जमाने के मूल अभिलेख उन्होंने 10 महीने में खोज डाले। यह भारत का प्रथम ऐसा आरटीआई का केस है जिसमें 10 महीने की समय.सीमा एवं 10ध् .रूपये के शुल्क में एक अरब की सम्पत्ति का स्वामित्व सिद्ध हुआ है। सूचना अधिकार क्षेत्र में अतूल्य योगदान के लिए सिद्धार्थ नारायण को उप्र के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका हैं। उनके कुछ प्रमुख केसों में आगरा के चर्च पर हमला, शक्तिमान घोड़ा केस, शारदा मर्डर केस, माही की गुमशुदगी एवं अन्य शामिल है। उनका मुख्य उद्देश्य गरीब मजलूम एवं बेसहाराओं को इन्साफ दिलाना हैं। सिद्धार्थ को कई सूचना आयुक्त एवं जज आरटीआई का राम जेठमलानी भी कहते हैं।

 

नेशनल

जो राम को लाए है, वो ‘राम’ के भरोसे है

Published

on

Loading

कमल भार्गव

एक बरसों पुराना मशहूर भजन है ‘तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करें ..’। इन दिनों चल रहे चुनावी माहौल में इस भजन को कई मायनों में सटीक माना जा सकता है। पहला भारतीय जनता पार्टी द्वारा बीती जनवरी में अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति स्थापित कर एक मास्टर स्ट्रोक खेलना तो दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश खास तौर पर मेरठ में भगवान राम का किरदार रुपहले पर्दे पर निभाने वाले अरुण गोविल को मरेठ-हापुड़ लोक सभा सीट पर अपना उम्मीदवार बना कर माहौल को राममय करने की कवायद की है।

देखा गया है कि बीजेपी खास तौर पर मोदी-शाह के फैसले ज्यादातर चौंकाने वाले होते रहे है। एक बार फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मेरठ-हापुड़ लोक सभा सीट पर हैट्रीक लगाने वाले मौजूदा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल का टिकट काट कर रुपहले पर्दे के ‘राम’ अक्का अरुण चन्द्रप्रकाश गोविल को अपना प्रत्याशी घोषित कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। काफी हद तक को महानगर कि जनता को यह समझ नहीं आ रहा कि पार्टी का ये फैसला सही है या गलत है। हर किसी के अपने-अपने तर्क है। शहर की जनता का मानना है कि जो मिजाज और लोगों को एक स्थानीय नेता समझ सकता है वो एक बाहरी समझ से परे हो सकता है। देखा जाए तो ये तर्क इस लिए भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि सन 1952 से लेकर अब तक के लगभग सोलह लोक सभा चुनावों में से दस बार बाहरी प्रत्याशी ने इस सीट का नेतृत्व किया है। इसमें वर्ष 1951, 1957, 1962 व 1971 के चुनाव में शाह नवाज खान सांसद के तौर पर शामिल है। इसी प्रकार छठी, सातवीं व आठवीं लोक सभा में एक बार फिर से कांग्रेस कि कद्दावर नेत्री महोसिना किदवई को प्रत्याशी बना गया था और उन्होंने बाहरी प्रत्याशी के तौर पर तीनों बार चुनाव में जीते हासिल की थी। वहीं सन 1999 में भी कांग्रेस ने अवतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारा था ओर वो इस सीट से सांसद चुने गए थे।

ऐसे में एक बार फिर मौजूदा रुलिंग पार्टी ने टीवी धारावाहिक रामायण के राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण का चुनाव हो चुका है। अब सभी की निगाह दूसरे चरण पर है। भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही अपनी चुनावी अगाज पिछले कई चुनावों में करती आ रही है। इस बार पीए मोदी ने नारा दिया है ‘अब की बार चार सौ पार’। कहा जा सकता है कि भाजपा इस क्षेत्र में कोई चांस लेना नहीं चाहती है और खास तौर पर पहले और दूसरे चरण में अपनी पार्टी के लिए बढ़त बनने की पूरी कोशिश कर रही है। काफी हद तक माना जा रहा है कि मजबूत दावेदारी और प्रत्याशियों के मान मनोवल के लिए मेरठ अकेले में प्रधानमंत्री मोदी एक बार तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मात्र लगभग दो से तीन सप्ताह के अंतराल में तीन जन सभा तो एक सम्मेलन को समबोधित कर चुके है।

एक नजर राजनीतिक समीकरण पर डाले तो मेरठ समेत वेस्ट यूपी में किसान और गन्ना एक बड़ा मुद्दा रहा है, ऐसे में इस क्षेत्र को जाट लैंड के तौर पर भी माना जाता है। बाकी हर चुनाव में मतदान से पहले धर्म और जाति के नाम पर ध्रुवीकरण होना एक आम धारना है। 2024 के रण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक राहत तो सत्ताधारी पार्टी के लिए कम से कम है और वो है आखिर में राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन होना। माना जा सकता है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा जाना और जंयत चौधरी का साथ कही ना कही किसान और जाटों को एक जुट करने में मददगार साबित होगी। पर एकाएक ठाकुरों का एकाएक बीजेपी से नाराजगी जताना और दूरी बनाना भी एक चिंता का विषय बना हुआ है।

लेकिन अब सवाल है दलित – मुस्लिम – हिन्दू वोट बैंक का। इस बार के चुनाव में बीजेपी और आरएलडी एक साथ है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन चुनावी मैदान में है, तो वही मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी अकेले ही मोर्चा सँभाले हुए है। इसे रणनीति कहा जाए जा फिर सोची समझी चाल कि मेरठ – हापुड सीट पर किसी भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी को नहीं उतारा है। देखा जाए तो शायद ये ऐसा पहले मौका होगा। अब तक ये देखा गया है कि आखिर में चुनाव मेरठ और आसपास के शहरों में हिन्दू – मुसलिम के नाम ही होता रहा है। ऐसे में वोट धर्म – जात बिरादरी के नाम पर बिखरता नजर आ रहा है। माना जा सकता है कि मुस्लिम काफी हद तक समाजवादी पार्टी के तरफ जा सकता है तो दलित बहुजन समाजवादी पार्टी के अलावा अन्य दलों में बट सकता है। भगवा पार्टी को उम्मीद है कि उसके पक्ष में हर वर्ग जाति और समाज का वोटर है। ऐसे में ‘राम’ की एंट्री को बीजेपी अपना तुरप का इक्का मान रही है। पार्टी से जुड़े लोगों की माने तो ‘राम जी’ के आने से ना सिर्फ मेरठ में फर्क पड़ेगा बल्कि सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राम लहर देखी जा सकेगी।

‘राम’ के सक्रिय राजनीति में आने से अब पीएम मोदी और सीएम से लेकर पार्टी का हर छोटा और बड़ा कार्यकर्ता इसे अपनी प्रतिष्ठा मान रहा है। देखा जाए तो हर स्तर पर राम यानी अरुण गोविल के लिए जन सभा और समर्पक, रोड शो की जा रही है। लेकिन ऐसे में स्थानीय की जगह बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतरना और ‘राम’ बाण का चलाना कितना सफल रहेगा ये तो वक्त ही बताएगा।

Continue Reading

Trending