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सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज़्यादा जान गंवाने वाले 18 से 35 वर्ष के लोग – रिपोर्ट

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भारत में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती जा रही है। आए दिन एक से एक भयावह सड़क दुर्घटनाओं के समाचार मिलते हैं।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2018 में विभिन्न प्रकार की कुल 4 लाख 67 हजार से भी अधिक सड़क दुर्घटनाओं के कारण डेढ़ लाख से भी अधिक लोगों की मौत हुई है। अभी वर्ष 2019 की रिपोर्ट नहीं आई है, और नए कानून बनने के बाद इन दुर्घटनाओं पर कुछ कमी की उम्मीद की जा रही है , किंतु पिछले  कई वर्षों के दौरान सड़क  दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी की   प्रवृत्ति को देखते हुए यही आशंका होती है कि वर्ष 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में इससे भी अधिक लोगों की मृत्यु हुई होगी ।
वर्ष 2018 के रिपोर्ट के अनुसार और जैसा कि देखने में  भी आताहै कि इन दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण  तेज गति से वाहन को चलाना है। सड़क पर गलत दिशा में वाहन चलाने के कारण सड़क दुर्घटनाओं का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण रहा है । 29 प्रतिशत सड़क दुर्घटना में तो चालक द्वारा हेलमेट न पहनने के कारण मौत होती हैं।
इन सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मृत्यु युवा वर्ग की ही हो रही है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की सबसे अधिक संख्या में वो युवा हैं, जो कि 18 से 35 वर्ष के उम्र के बीच में होते हैं।
वर्ष 2018 में इस उम्र के 72,500 से अधिक युवा विभिन्न सरकार की सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए। दूसरे नंबर पर 35वर्ष से लेकर के 45 वर्ष  के बीच के उम्र वाले व्यक्तियों की मौत होती है । वर्ष 2018 के अंतर्गत इस उम्र के लोगों की मरने वालों की संख्या 32,500 हजार से भी अधिक रही। इसी प्रकार से सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में दो पहिया वाहन चलाने वाले व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक होती है। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में दूसरी बड़ी संख्या कार एवं टैक्सी सवारों की होती है। किंतु सड़क पर पैदल चलने वाले लोगों की दुर्घटनाओं के कारण मौत की संख्या भी कोई कम नहीं है ।
 उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि सड़क दुर्घटनाएँ वर्तमान समाज के लिए एक बहुत ही भयानक त्रासदी बन गयी हैं। इसे आधुनिक सभ्यता की एक नकारात्मक उपलब्धि कहा जाए अथवा अव्यवस्था की देन कहें,  किंतु यह समाज का एक ऐसा दुःखद पक्ष बन गया है, जो कि बहुत ही अधिक संख्या में घटित हो रहा है। हर शहर के समाचार पत्र  के स्थानीय पेज पर उसी शहर आदि में ही घटी विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं सम्बन्धी इतने अधिक समाचार प्रकाशित हुए रहते हैं कि प्रातः काल ऐसे समाचारों को देख सुन लेने पर किसी भी संवेदनशील व्यक्ति कामनः स्थिति काफी दुःखी हो जाता है। वैसे तो समाज में विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाएं घटित हो रही है, किन्तु वर्तमान में सड़क दुर्घटनाएँ सबसे अधिक हो रही है।
सड़क दुर्घटनाओं के कारणों में प्रत्यक्ष तौर पर कोई प्रशासनिक व्यक्ति या विभाग शामिल नहीं दिखता है। इस कारण से इसमें किसी के खिलाफ कोई प्रशासनिक अक्षमता सम्बन्धी मामला भी नहीं बनता है। भयानक दुर्घटना के होने के बावजूद इसके पीछे किसी प्रकार की कोई प्रत्यक्ष तौर पर ज़िम्मेदारी भी नही सुनिश्चित हो पाती है। दुर्घटनाओं को लेकर के राजनीतिक स्तर पर भी किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं होती है। हां दुर्घटनाओं के बारे में समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों में बड़े बड़े शीर्षक में समाचार आ जाते हैं। कई बार उस पर शोक व्यक्त कर लेने की रस्म अदायगी भी अवश्य कर दी जाती है।  फिर सब कुछ सामान्य मान लिया जाता है।
 वर्तमान स्थिति यह है कि विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं में रोज बहुत बड़ी संख्या में सड़क पर पैदल या वाहन से जाते ऐसे लोगों की मृत्यु होती है,जो कि अपने घर से ले करके समाज, देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होते हैं ।  ऐसे लोगों पर  उनके अपने घर का बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। उनके मृत्यु हो जाने के साथ ही घर परिवार पर एकाएक भयानक आपत्ति आ जाती है। पलक झपकते ही परिवार का पूरा ताना बाना टूट जाता है। इस प्रकार की दुर्घटनाएँ परिवार के स्वरूप को छिन्न भिन्न करके रख देती हैं। किसी के पति की मृत्यु होती है, तो कही पर बच्चे अनाथ हो जाते हैं। इसी प्रकार, कही किसी का इकलौता बेटा दुर्घटना का शिकार हो जाता है। दुर्घटना के कारण इससे प्रभावित पति, पत्नी एवं बच्चों को एक बहुत ही संघर्षमय जीवन जीना पड़ता है। इसी प्रकार इससे प्रभावित माता पिता का जीवन बहुत ही  दुःखद एवं निराशाजनक हो जाता है। पर इस प्रकार की त्रासदियों की संख्या के प्रकार एवं स्वरूप का कही कोई अन्त नही होता है। कई कई बार तो एक ही परिवार के कई सदस्य सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। किंतु इन सबका नकारात्मक प्रभाव समाज पर भी पड़ता है।
 जिस घर परिवार में में इस प्रकार की दुःखद घटनाएँ होती है, उसपरिवार में इसके समाधान की कोई तात्कालिक व्यवस्था नही होती है।इस प्रकार की स्थिति से निपटने के लिए किसी प्रकार की कोई पूर्व तैयारीनही होती है। दुःखद स्थिति यह है कि कई बार ऐसी दुर्घटनाओं में समाजके वही वर्ग सबसे अधिक शिकार होते हैं जो कि पहले से ही एक बहुत हीसंघर्षमय जीवन जी रहे होते हैं।
   सड़क दुर्घटनाओं के अधिकतर मामले में किसी प्रकार कीमुआवजा देने की कोई व्यवस्था नही होती  है। यदि कभी किसी प्रकारकी कोई मुआवजा की घोषणा होती भी है, तो फिर उसे पाने के लिए जोमसक्कत करनी पडती है, उसकी एक अलग दुःखद कहानी है। भारतीयप्रशासनिक व्यवस्था एवं भारतीय प्रशासकों का वास्तविक कार्यप्रणालीका ऐसे समय पर विशेष तौर पर देखने को मिलती है। किंतु इस प्रकार केमुआवजा दुर्घटना से हुए नुकसान की किसी प्रकार से कोई भरपाई नहीहो पाता है।
   भारतीय समाज में किसी अन्य प्रकार के कारणों से किसी व्यक्तिकी जान जाने पर कई बार बहुत ही जबर्दस्त हंगामा एवं विरोध  एवं राजनीति भी  होती है। किंतु सड़क दुर्घटनाओं के होने पर राजनीतिकदलों द्वारा भी किसी प्रकार की कोई खास प्रतिक्रिया नही  होती  है,जिससे कि व्यवस्था को सुधारने एवं इसे कम करने के लिए प्रशासन परकिसी प्रकार का कोई दबाव बने। किंचित अवसरों पर इस पर दुःख व्यक्तकर लिया जाना एक रस्म अदायगी मात्र है।
            जैसा कि रिपोर्ट से प्रतीत होता है कि  विभिन्न प्रकार के वाहनों की तेज गति  सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है सड़क पर चलतेसमय जल्दबाजी करना एक बहुत ही सामान्य मानसिकता बन जाती है।इसके लिए व्यक्ति सारे नियम तोड़ने के प्रयास में रहता है। अनजानसड़कों पर सामान्य से अधिक रफ्तार से वाहन चलाने एवं अन्य सभीप्रकार की सावधानिया तोड़ करके वाहन चलाना बहुत ही सामान्य बातहो गयी है। भारतीय समाज में अत्यधिक रफ्तार वाली वाहनों को तोसड़क पर लगातार उतार दिया जाता है, किंतु  उसके चलाने के लिए अन्यसभी मानक एवं आवश्यकताएं उपलब्ध न हो और उस सम्बन्धी संस्कृति एवं एहतियात का विकास नही हुआ  होता है। भारतीय समाज में सड़कपर अतिक्रमण करके  कई प्रकार  के क्रिया कलाप करने की भी लोगों मेंआदत है।  इसके कारण भी सड़क पर काफी दुर्घटनाएँ होती हैं
वास्तव में अधिकतर सड़क दुर्घटनाओं को प्रायः संयोग मात्र मान लियाजाता है और इस कारण  से इसके प्रति किसी प्रकार की तत्काल कोईसमाधान करने की पहल भी नही हो पाती है। किंतु सड़क दुर्घटनाओं केसंदर्भ में कुछ कारण ऐसे हैं जो कि सभी सड़क दुर्घटनाओं  के लिए एकसमान तौर पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए सड़क पर समुचित ढंग सेनिर्देश न होना, जगह जगह गढ्ढे, गलत दिशा में वाहनों का चलना औरविभिन्न  प्रकार के  यातायात नियमों का उल्लंघन करना मुख्य कारण है।इसी प्रकार, यातायात सम्बन्धी विविध प्रकार की सावधानियों के प्रतिलापरवाही या अज्ञानता, वाहन चालन के संदर्भ में  अपनाई  जाने वालेआवश्यक एहतियात के बारे में जागरूकता एवं अनुभव की कमी सड़कदुर्घटनाओं के कारण बनते हैं।  किंतु बहुत दुर्घटनाएँ बहुत ही छोटी छोटीग़लतियों के कारण भी होती है। इन ग़लतियों के भयानक परिणाम केप्रति लोगों का ध्यान नही हो पाता है। इसी प्रकार से अधिकारियों के साथसाथ आम जनता का जागरूक न होना भी एक बहुत ही मुख्य कारण हैं।
दूसरी तरफ, सड़क पर वाहन चलाते समय  आवश्यक  यातायातसंबंधी नियमों   का  लोगों द्वारा उल्लंघन भी होता है  और  उसका पालनकराना पुलिस की ज़िम्मेदारी मान ली जाती है। रिपोर्ट से यह भी पताचलता है कि हेल्मेट न पहनने से सड़क दुर्घटना में मरने वालों की संख्याकाफी अधिक है, किंतु अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट पढ़ने संबंधी जागरूकता का लोगों में अभाव ही रहता है । इस प्रकार की मानसिकतासे स्पष्ट है कि वाहन चालन के प्रति लोगों में जागरूकता का  काफीअभाव है। किंतु लोगों में जागरूकता का अभाव एवं कानून के प्रति यहलापरवाही ऐसी है जो कि जान की कीमत पर होती है।
प्रतिवर्ष न जाने कितनी जाने ऐसी जा रही हैं  जिसके कारण मरनेवाले व्यक्ति पर निर्भर रहने वाले लोगों की जिंदगी बहुत ही बुरी तरह सेप्रभावित होती है। इसके बहुत ही विविध रूप है। दुर्घटनाओं का समाचारतो एक बार प्रकाशित हो जाता है। किंतु उस दुर्घटना के  पश्चात उसके दुष्परिणाम भुगत रहे लोगों की जिंदगी के बारे में शायद ही कभी किसीप्रकार की कोई जानकारी दी जाती है। वह व्यक्ति समाज में दर दर ठोकरखाने के लिए अभिषप्त हो जाता है।
 दूसरी तरफ, प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नये वाहन सड़क पर आरहे हैं। उसके लिए  सड़क से ले करके यातायात सम्बन्धी अन्य सभीआवश्यक व्यवस्थाएं  नही हो पाती है। अधिक वाहन बिक्री को  गतिशील अर्थव्यवस्था एवं विकास का एक पैमाने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।किंतु उसी के समानान्तर सड़क दुर्घटनाओं पर किसी प्रकार की कोईबृहद् चर्चा नही होती है।
सड़क पर सुरक्षित वाहन चालन के संदर्भ में किसी प्रकार की कोई प्रभावी संस्कृति विकसित नहीं हो पा रही है। सब लोग सड़क पर जल्दबाजी में चल रहे हैं । इस प्रयास में आज आनन्ददायक यात्रा करने का कोई अर्थ भी नही रह गया है।  ऐसी स्थिति में सड़क दुर्घटनाओं कोरोकने के संदर्भ में जागरूकता एवं कानून का कड़ाई के साथ पालन किया जाना आवश्यक है। इसे रोकने के लिए हर प्रकार के उपाय कोप्रभावी ढंग से अपनाने चाहिए। इस संदर्भ में हर स्तर पर शिक्षा देने और समाज में समय समय पर जागरूकता चलाए जाने की आवश्यकता है। वह जानकारी एवं जागरूकता जिसके अभाव में व्यक्ति की जान जा सकती है,  उसके प्रचार एवं प्रसार की हर संभव प्रयास किया जाना आवश्यक है।  आज नहीं तो कल इस संदर्भ में सिर्फ विचार ही नहीं आवश्यक कार्यकरना ही पड़ेगा   ।
– डॉ. अरविन्द कुमार सिंह,
बीबीए विश्वविद्यालय, लखनऊ

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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