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अब वाजुभाई रूदाभाई वाला हैं कर्नाटक के नाटक के रैफरी

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गुजरात में राजनीतिक स्तिथि फंसती नजर आ रही है। चुनाव नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है पर बहुमत से दूर है। वहीं कांग्रेस दूसरे नंबर पर है, तीसरे नंबर पर जेडीएस है। कांग्रेस और जेडीएस मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। अब देखना यह है कि प्रदेश के राज्‍यपाल वाजुभाई रूदाभाई वाला सबसे बड़ी पार्टी यानि बीजेपी को आमंत्रित करते हैं या कांग्रेस और जेडीएस की बात सुनते हैं। हालांकि राज्‍यपाल कह चुके हैं कि जब तक पूरे नतीजे नहीं आ जाते वह किसी से नहीं मिलेंगे।

इस‍ लिहाज से कर्नाटक का नाटक का क्‍या रुख लेगा इसमें वाजुभाई की भूमिका अहम है। कौन हैं वाजुभाई रूदाभाई वाला, आइए जानते हैं उनके बारे में :

  1.  जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे वाजुभाई वित्तमंत्री थे। बतौर मुख्यमंत्री मोदी के 13 साल के कार्यकाल में वाजुभाई 9 साल तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहे । साल 2005-2006 के बीच वजुभाई राज्य में बीजेपी प्रमुख भी रहे हैं।
  2.  वाजुभाई के नाम एक रिकॉर्ड ये भी है कि वो एक अकेले ऐसे वित्तमंत्री रहे जिन्होंने 18 बार राज्य का बजट पेश किया है।
  3. वाजुभाई 2001 में मोदी के पहले विधानसभा चुनाव के लिए अपनी राजकोट की सीट छोड़ चुके हैं।
  4. वाजुभाई को मजाकिया और दिलचस्‍प भाषणों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा उन्हें लोगों की भीड़ जुटाने में माहिर समझा जाता है।
  5. वाजुभाई की छवि एक सामाजिक व्यक्ति की है जो दोस्तों-रिश्तेदारों और दूसरे सामाजिक समारोहों में शामिल होने से गुरेज नहीं करते।
  6. वह कई बार अपने बयानों की वजह से विवादों में भी रह चुके हैं, मसलन मैसूर में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने लड़कियों को फ़ैशन से दूर रहने की सलाह दी थी और कहा था कि कॉलेज फैशन करके आने की जगह नहीं है।
  7. 2017 में गुजरात के नए मुख्‍यमंत्री के तौर पर उनका नाम भी चर्चा में रहा था। बताया जाता है कि उनसे फोन कर कहा गया था कि वह 18 दिसम्बर से पहले कर्नाटक राज्‍यपाल के तौर पर अपनी तमाम जरूरी फाइलों का निपटारा कर लें क्योंकि उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। बाद में उन्हें समझाया गया कि उन्हें गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाने पर विचार हो रहा है।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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