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अगले सीजन के छठे महीने में चीनी को तरसेंगे भारतीय !

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अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भारत में इस साल चीनी का अंतिम स्टॉक इतना रहेगा कि उससे अगले सीजन में पांच महीने की घरेलू खपत की पूर्ति हो पाएगी।

साल 2018-19 में चीनी का उत्पादन 338 लाख टन की उम्मीद

इसी हफ्ते आई यूएसडीए की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इस साल चीनी का अंतिम स्टॉक 115 लाख टन रह सकता है जोकि देश में पांच महीने की कुल खपत के बराबर है। यूएसडी के अनुसार, चीनी उत्पादन सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में भारत में चीनी उत्पादन 46 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 324 लाख टन रहेगा जबकि अगले साल 2018-19 में 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ चीनी का उत्पादन 338 लाख टन होगा। इसमें 5.6 लाख टन खांडसारी का उत्पादन भी शामिल है।

चीनी उत्पादन में इजाफा होने की एक मुख्य वजह रिकवरी रेट में लगातार बढ़ोतरी है। गन्ने की पैदावार में जहां औसतन 10 फीसदी का इजाफा हुआ है वहीं रिकवरी रेट 11 से बढ़कर 11.32 हो गई है जिसके कारण उत्पादन में जोरदार बढ़ोतरी हुई है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 230 रुपए से बढ़ाकर 255 रुपए करने से किसानों की दिलचस्पी गन्ने की खेती में बढ़ी। यूएसडीए के मुताबिक, चीनी का उत्पादन 2016-17 में 222 लाख टन रहा है। हालांकि भारतीय चीनी मिलों का संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार बीते साल चीनी का उत्पादन 203 लाख टन था। अगले साल 52 लाख हेक्टेयर रकबे में गन्ने का उत्पादन 41.50 करोड़ टन हो सकता है क्योंकि इस साल फिर मानसून की बरसात सामान्य रहने की उम्मीद की जा रही है।

कीमतों में गिरावट से मांग जबरदस्त रहने की संभावना

यूएसडीए के अनुसार, इस साल भारत में चीनी की खपत 265 लाख टन रह सकती है जबकि अगले साल चार फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 275 लाख टन होने का अनुमान है। कीमतों में गिरावट से खाद्य प्रशंस्करण उद्योग, रेस्तरांओं व मिठाई की दुकानों व घरेलू मांग जबरदस्त रह सकती है।

अमेरिकी एजेंसी के आकलन के अनुसार पिछले छह महीने में भारत में चीनी के दाम में 21 फीसदी की गिरावट आई है और पिछले साल से सात फीसदी भाव मंदा है जबकि बीते सितंबर से फरवरी तक त्योहारी मांग तेज रहने से अक्टूबर 2017 में चीनी का भाव 40,300 रुपए प्रति टन हो गया था जोकि 27 महीने का उच्चतम स्तर था।

भारत में चीनी आयात होने की संभावना अब नहीं

भारत में चीनी पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगने के बाद आयात होने की संभावना अब नहीं रह गई है। बीते सीजन में भारत ने घरेलू खपत के मुकाबले आपूर्ति कम होने की भरपाई करते हुए 5.5 लाख टन कच्ची चीनी का आयात किया था।

सरकार ने चीनी मिलों को अनिवार्य कोटे के तहत 20 लाख टन का निर्यात करने को कहा है। मगर, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी का भाव भारत की तुलना में कम होने के कारण निर्यात की संभावना कम है। उधर, चीनी उद्योग का कहना है कि कम से कम 50 लाख टन देश से बाहर जाने पर ही घरेलू बाजार में चीनी का भाव सुधरेगा। चीनी उद्योग लगातार इसके लिए सरकार से आर्थिक मदद व प्रोत्साहन की उम्मीद कर रहा है। अगर भारत चीनी निर्यात करता है तो म्यांमार, सूडान, सोमालिया, संयुक्त अरब अमीरात, केन्या, सऊदी अरब भारत के लिए संभावित बाजार हो सकता है।

यूएसडीए के मुताबिक, इस साल चीनी का अंतिम स्टॉक 115 लाख टन रह सकता है जोकि देश में पांच महीने की कुल खपत के तुल्य है। साथ ही, अगले साल अंतिम स्टॉक 118 लाख टन रह सकता है। अंतिम स्टॉक तीन महीने की खपत से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

बंबई शुगर मर्चेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अशोक जैन ने कहा कि फिलहाल घरेलू बाजार में चीनी के दाम में तेजी की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है। उन्होंने कहा कि सरकारी उपायों से सुधार की उम्मीद की जा रही है मगर बाजार में तेजी तभी आएगी जब चीनी का निर्यात होगा और आपूर्ति आधिक्य की समस्या दूर होगी।

इनपुट आईएएनएस

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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