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आध्यात्म

Magh Purnima 2021: माघ पूर्णिमा के दिन स्नान और दान करने है विशेष महत्व

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माघ पूर्णिमा का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। इस तिथि के स्वामी स्वयं चंद्रदेव हैं। इस तिथि को चंद्रमा संपूर्ण होता है। पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा समसप्तक है। माघ पूर्णिमा के दिन नौ ग्रहों की कृपा को आसानी से पाया जा सकता है। माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान, दान और पूजा का विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

प्रयागराज में कल्पवास का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन यानि माघी पूर्णिमा पर कल्पवास का समापन होता है। पंचांग के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की तिथि 26 फरवरी से आरंभ हो रही है, पूर्णिमा की तिथि का समापन 27 फरवरी को होगा

पौराणिक मान्यता के अनुसार माघ पूर्णिमा पर प्रात: काल स्नान करने से रोगों का नाश होता है। दान करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली तमाम बाधाएं दूर होती हैं।

बुध ग्रह के कारण त्वचा और बुद्धि की समस्या हो जाती है। बुध ग्रह की शुभता के लिए आंवले और हरी सब्जियों का दान करना चाहिए। बृहस्पति के कारण सेहत संबंधी समस्याएं होती हैं। गुरु ग्रह की शुभता के कारण केला, मक्का और चने की दान का दान करना चाहिए। शुक्र ग्रह के कारण मधुमेह और आंखों की समस्या होती है। शुक्र ग्रह की शुभता के लिए घी, मक्खन और सफेद तिल आदि का दान करना चाहिए। शनि के कारण लंबी बीमारियां हो जाती हैं। इस ग्रह की शुभता के लिए काले तिल और सरसों के तेल का दान करना चाहिए।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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