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किंग्स इलेवन पंजाब के लिए बुरी खबर, प्रीति जिंटा उदास हैं
किंग्स इलेवन पंजाब के लिए एक बुरी खबर। पंजाब की सह मालकिन प्रीति जिंटा बुरी तरह से निराश हैं। पूरी टीम सोच में पड़ी है कि अब क्या करें। किंग्स इलेवन पंजाब का रिजल्ट अभी तक बहुत बढ़िया है।
वजह हम बता रहे हैं पर आप अधिक बेसब्र न हों। पहले कल के मैच के बारे में जाने लें। तब हम आप को किंग्स इलेवन पंजाब का दुख बताते हैं।
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में आईपीएल 2018 के लिए दिल्ली डेयरडेविल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के बीच मैच हुआ। यह इंडियन प्रीमियर लीग 11वां संस्करण का 22वां मैच था। आईपीएल में अब तक दिल्ली ने कुल छह मैच खेले हैं और उसे एक में जीत मिली है, वहीं पंजाब ने छह में से पांच मैचों में जीत हासिल की है।
For a reason… #LivePunjabiPlayPunjabi #KXIPvSRH pic.twitter.com/CSP8w0ELCm
— Kings XI Punjab (@lionsdenkxip) April 19, 2018
किंग्स इलेवन पंजाब के मारक बल्लेबाज क्रिस गेल इस मैच में नहीं खेले। वजह पंजाब के विस्फोटक ओपनर क्रिस गेल पूरी तरह फिट नहीं थे। अगर वह जल्द फिट नहीं हुए तो आईपीएल के कई मैचों से बाहर हो जाएंगे।
किंग्स इलेवन पंजाब के बल्लेबाज क्रिस गेल ने अपने बल्ले से सुनामी मचा रखा है। दूसरी टीमें जब गेल बल्लेबाजी करते हैं तो ईश्वर से दुआ मांगते हैं कि यह सुनामी जल्द आउट हो जाएं। क्रिस गेल का बल्ला इस समय जमकर रन उगल रहा है। गेल ने पिछले तीन मैचों में 63, नाबाद 104 और नाबाद 90 रन बनाए हैं। गेल के इस विस्फोटक प्रदर्शन की बदौलत पंजाब लगातार पिछले तीन मैचों में जीत दर्ज करने में सफल रहा है। क्रिस गेल तीन मैचों में 229 रन बना चुके हैं।
पर क्रिस गेल के टीम से बाहर रहने की वजह से दूसरी टीमों ने राहत की सांस ली। अब सवाल यह है कि उनकी कमी कौन पूरा करेगा। दिल्ली डेयरडेविल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के मैच में जिस खिलाड़ी ने क्रिस गेल की जगह ली उसका नाम था एरॉन फिंच। जिसने इस मैच में सिर्फ 2 रन बनाए हैं। अब इसके बाद प्रीति जिंटा को क्रिस गेल की याद और सता रही है।
दिल्ली डेयरडेविल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के मैच में पंजाब ने यह मैच जीत लिया था।
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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