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आध्यात्म

भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर जहां होती है रावण की पूजा, बड़ा गहरा है रहस्य

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नई दिल्ली। दुनिया में ऐसे कई शिव मंदिर हैं जो काफी फेमस हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पहले भोलनाथ नाथ की नहीं बल्कि लंकापति रावण की पूजा होती है।

इस मंदिर का नाम कमलनाथ महादेव है। ये मंदिर उदयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर झाड़ोल तहसील में आवारगढ़ की पहाड़ियों पर मंदिर स्थित है।

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक इस मंदिर की स्थापन खुद रावण ने की थी। मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है, जहां रावण ने अपना सिर काटकर भगवान शिव को अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था।

तब रावण की इस भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण की नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित किया था। इस स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है, क्योंकि माना जाता है कि शिवजी से पहले अगर रावण की पूजा नहीं की जाए तो सारी पूजा व्यर्थ हो जाती है।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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