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केवल 4 घंटे सोने वाले मोदी कैसे बने रहते हैं इतने ऊर्जावान, जानिए उनकी फिटनेस का राज…

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24 घंटे में से 18 घंटे काम करने वाले मोदी की फिटनेस की दुनिया कायल है। जहाँ कोई भी व्यक्ति 60 की उम्र के बाद कुर्सी पकड़ने की बात करता है तो वही ऐसे में नरेंद्र मोदी हर उस व्यक्ति के लिए एक जीती-जागती मिसाल के रूप में सामने आते है. इतना व्यस्त होने पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर कभी थकान नहीं दिखाई देती और वे जहां भी जाते हैं जोशीले अंदाज में भाषण देकर लोगों को अपना दीवाना बना देते हैं।   लोगों में यही उत्सुकता रहती है कि आखिर उनमें इतनी ऊर्जा आती कहां से है? क्या है उनकी इस तरोताजगी का राज?

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हर कोई जानना चाहता है कि आखिर हमारे प्रधानमंत्री की दिनचर्या क्या रहती है।

चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दिन की शुरूआत कैसे करते हैं? वो कब जगते हैं और कितने घंटे सोते हैं? उनके दिनभर का कार्यक्रम कैसा होता है? पढ़िए आगे….

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* मोदी का सोने का समय 12 बजे तक बताया जाता है लेकिन उठने का समय सुबह 4 बजे निश्चित है.

* सुबह 30 मिनट शौच, स्नान इत्यादि.

* इसके उपरांत प्रमुख समाचारों पर रोजाना नजर डालना.

* रोजाना 30 मिनट व्यायाम.

* गत दिवस के संसार के समाचारों का चयन, और भारत के और बीजेपी के समाचारों की रिकार्डिंग सुनना.

* इसके बाद नियमित रूप से मंदिर में बैठ 10 मिनट ध्यान करना.

* पश्चात् केवल एक कप चाय (कोई अल्पाहार नहीं)

* 6:15 बजे एक शासकीय विभाग के बैठक कक्ष में प्रस्तुति.

* 7 बजे से 9 बजे तक सभी फाइलों पर एक नजर.

* व्यस्तता के बावजूद भी माता जी से दूरभाष पर बातचीत.

* 9 बजे गाजर और अन्य शाक-फल इत्यादि का अल्पाहार.

* सुबह 9:15 पर कार्यालय पहुंच कर महत्वपूर्ण बैठकों को अंजाम देना.

* शाम को चार बजे बिना दूध की नीबू वाली चाय पीते हैं.

* 6 बजे खिचडी और दूध का भोजन.

* इसके बाद 9 से 9:30 बजे तक एक विषय के जानकारके साथ चर्चा करते हुए घूमते हैं.

* 9:30 से 10:00 सामाजिक संचार माध्यम, चुने हुए पत्रों के उत्तर देते हैं.

* सभी फाइलों का काम समय पर पूरा करते हैं. और अगले दिन के रुटीन के बारे में जाने बिना सोने नहीं जाते हैं. सोने का समय 12 तक है लेकिन कई बार व्यस्तताओं के चलते रात को 1.00 भी बज जाते है.

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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