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चीन ने भारतीय सोयाबीन से आयात शुल्क तीन फीसदी से घटाकर शून्य किया
चीन ने अमेरिका से चल रहे व्यापारिक युद्ध के बीच सोयाबीन पर भारत सहित चार अन्य देशों से आयात शुल्क हटा दिया है। चीन सरकार ने कहा कि भारत, दक्षिण कोरिया, बांग्लादेश, लाओस और श्रीलंका से सोयाबीन पर आयात शुल्क वर्तमान के तीन फीसदी से घटाकर शून्य कर दिया है।
इसने यह भी कहा कि इन देशों से रासायनिकों, कृषि उत्पादों, मेडिकल उत्पादों, कपड़ों, स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर आयात शुल्क भी घटा दिया गया है। इससे पहले अप्रैल में भारत ने चीन को सोयाबीन तथा अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात करने का प्रस्ताव दिया था जो चीन के अमेरिका से व्यापारिक विवाद के चलते ठंडे बस्ते में पड़ा था।
अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर अरबों डॉलर का आयात शुल्क लगाया है, जबकि छह जुलाई से लग रही कर की पहली किश्त से पहले चीन ने इसका जवाब उदारपूर्ण तरीके से देने का वादा किया है।
चीन दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जिससे अमेरिका से चीन में लगभग दो-तिहाई कृषि निर्यात होता है। अमेरिका ने चीन पर अमेरिकी कंपनियों को उनकी तकनीक चीनी कंपनियों को देने का दवाब डालने का आरोप लगाया, जिसे चीन ने नकार दिया है।
इसी बीच भारत फार्मास्युटिकल्स और अन्य क्षेत्रों में चीनी बाजार में पहुंच बनाने पर नजर जमा रहा है।
अप्रैल में बीजिंग में आयोजित पांचवें भारत-चीन रणनीतिक आर्थिक वार्ता में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि बीजिंग और नई दिल्ली संरक्षणवादी शोर के कारण स्थिर हैं तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण सहारा साबित हो सकते हैं।
कुमार ने कहा, “हमने गौर किया है कि आप (चीन) दो अरब डॉलर से ज्यादा के टनों के कई कृषि उत्पादों का आयात करते हैं।”
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का उल्लेख करते हुए कुमार ने कहा, “और मैं गौर कर रहा था कि इओवा और ओहियो तथा अन्य स्थानों के किसानों पर कुछ आयात शुल्क हैं। अगर हम उचित गुणवत्ता प्रदान करें तो भारत सोयाबीन तथा चीनी में उनका स्थान ले सकते हैं।”
भारत के अलावा जो अन्य चार देश हैं, वे तुलनात्मक रूप से सोयाबीन के छोटे उत्पादक हैं। इनमें से किसी ने भी वर्ष 2017 में चीन को कोई तिलहन निर्यात नहीं किया। अमेरिका के कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 के विपणन वर्ष में भारत ने 1.1 करोड़ टन फलियों का उत्पादन किया लेकिन इसमें से केवल 2,69,000 टन का ही निर्यात किया गया। हालांकि देश ने वैश्विक रूप से 20 लाख टन से कुछ अधिक सोया खाद्य का निर्यात किया। भारत ने वर्ष 2016-17 के दौरान 70 लाख टन सफेद सरसों का भी उत्पादन किया लेकिन इस फसल का कोई निर्यात नहीं किया गया। (इनपुट आईएएनएस)
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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