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आध्यात्म

माया का भी भगवान से नित्य सम्बन्ध है

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kripalu ji maharaj

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अर्थात् इन श्रीकृष्‍ण भगवान् की शक्तियाँ तो अनन्‍त हैं। किन्‍तु तीन प्रमुख शक्तियाँ हैं। एक का नाम पराशक्ति, एक का नाम जीवशक्ति और एक का नाम मायाशक्ति। ये पराशक्ति भी तीन प्रकार की है। संधिनी शक्ति, संवित शक्ति, हृदिनी शक्ति और जीव भी तीन प्रकार का है। कुछ जीव शक्ति विशिष्‍ट श्रीकृष्‍ण के ऐसे अंश हैं, जो अनादिकाल से मायातीत हैं। ये भगवान् के पार्षद हैं, परिकर हैं। एक एक शब्‍द पर ध्‍यान दो। कुछ जीव ऐसे हैं, जो अनादिकाल से मायातीत नहीं हैं लेकिन एक दिन भगवत्‍प्राप्ति करके मायातीत हो गये। वे सदा के लिये मायातीत हो गये। ये दूसरे प्रकार के जीव हैं और तीसरे प्रकार के वे जीव हैं, जो सदा से मायाधीन थे और अभी भी मायाधीन हैं। जैसे हम लोग। तीन प्रकार का स्‍वरूप माया का भी है-

अजामेकां लोहितशुक्‍लकृष्‍णम्।

(श्‍वेता 4-5)

माया लोहितशुक्‍लकृष्‍णा।

(शाण्डिल्‍योपनिषद् 3-1)

एक सात्विक गुण वाली माया, एक रजोगुण वाली माया, एक तमोगुण वाली माया और हम लोग अनादिकाल से प्रतिक्षण जिस वस्‍तु की प्राप्ति हेतु प्रयत्‍नशील हैं जिसे मैंने डिटेल में बताया है- दिव्‍यानन्‍द, अनन्‍त आनन्‍द अनन्‍तकाल के लिये आनन्‍द। वो आनन्‍द अनन्‍त प्रयन्‍त के पश्‍चात भी नहीं मिला। इसका कारण, ‘मैं’ कौन? का समाधान नहीं हुआ। तो ‘मैं’ के अतिरिक्‍त दो तत्‍व बचे- एक श्रीकृष्‍ण और एक माया। इनको भी ब्रह्म कहा गया। माया जड़ है और फिर भी ब्रह्म कहा गया-

एतज्‍ज्ञेयं नित्‍यमेवात्‍मसंस्‍थं नातः परं वेदितव्‍यं हि किंचित् ।

भोक्‍ता भोग्‍यं प्रेरि तारं च मत्‍वा सर्वं प्रोजेक्ट त्रिविधं ब्रह्ममेतत् ।।

(श्‍वेता. 1-12, नारदपरिव्राजकोपनिषद् 9-11)

ये तीनों  ब्रह्म का स्‍वरूप है। शुद्ध ब्रह्म। तो पराशक्तियुक्‍त श्रीकृष्‍ण हैं, भगवान् श्रीकृष्‍ण और मायाधीन जीव ये श्रीकृष्‍ण के बाद वाला, तटस्‍थ शक्ति अर्थात् ये भी चेतन है और अनादि भी है। इसलिये इसको भी ब्रह्म कह दिया गया, क्‍योंकि भगवान् का अंश है। देखो एक पेड़ होता है उस पेड़ में डालें होती हैं, पत्‍ते होते हैं, फूल होते हैं, फल होते हैं जैसे आम होता है। तो हम हर एक को आम कह देते हैं। ये क्‍या है? फल है। अरे फल तो देख रहे हैं अन्‍धे हैं क्‍या? अरे है क्‍या ये? आम है आम। अरे ये किसका पेड़ है? आम आम। ये किसका पत्‍ता ले आये तुम? आम आम। हम सब को आम बोल देते हैं न।

हाँ। ऐसे ही बोल दिया तीनों ब्रह्म हैं। क्‍योंकि शक्ति और शक्तिमान् ये भिन्‍न भी माने जाते हैं अभिन्‍न भी माने जाते हैं। इनका भेदाभेद सम्‍बन्‍ध है, तो इसीलिये माया का भी भगवान् से नित्‍य सम्‍बन्‍ध है। वो भले ही जड़ है। तो भगवान् के बाद हमारा नम्‍बर है क्‍योंकि हम चेतन हैं, हमारी इन्द्रियाँ हैं, मन है, बुद्धि है। हमारे बाद माया शक्ति का नम्‍बर है। क्‍योंकि वो अनादि तो है, नित्‍य तो है, लेकिन जड़ है। इसलिये उसको भी ब्रह्म कह दिया गया। ये तीनों शक्तियाँ भगवान् के भीतर रहती हैं। ध्‍यान दो। पराशक्ति भी, जीवशक्ति भी, मायाशक्ति भी। लेकिन पराशक्ति का प्रभाव जीव पर नहीं पड़ता, माया पर नहीं पड़ता, रहती हैं सब श्रीकृष्‍ण में। अरे श्रीकृष्‍ण का जो अभिन्‍न रूप है ब्रह्म, उसमें शक्तियाँ नहीं प्रकट होती देखो। तो जीव में, माया में पराशक्ति का न प्रकट होना आश्‍चर्यजनक नहीं है-

आत्‍मनि चैवं विचित्राश्‍च हि।

(ब्र.सू. 2-1-28)

 

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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