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आध्यात्म

श्रीकृष्ण के तीन अभिन्न स्वरूप हैं

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प्रवचन- 49

गोपालांगणकर्दमे विहरसे विप्राध्‍वरे लज्‍ जसे

ब्रूषे गोसुतहुंकृतैः स्‍तुतिपदैर्मौनं विधत्‍से सताम् ।

दास्‍यं गोकुलकामिनीषु कुरुषे स्‍वाम्‍यं न दत्‍त्‍तात्‍मसु

जाने कृष्‍ण त्‍वदीय पादयुगलं प्रेमैकलभ्‍यं परम् ।।

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम् ।

देवकी परमानन्‍दं कृष्‍णं वन्‍दे जगद् गुरुम् ।।

नमः कमलनाभाय नमः कमलमालिने।

नमः कमलपादाय नमस्‍तं कमलेक्षण।।

यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्र्च प्रहिणोति तस्‍मै।

तँ ह देवमात्‍मबुद्धिप्रकाशं मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये।।

अनन्‍तसौन्‍दर्य माधुर्य सौशील्य सौकुमार्य सुधासिन्‍धु बलबन्‍धु तत्त्वजिज्ञासु जीवात्‍माओ! नियमानुसार थोड़ी देर भगवन्‍नाम संकीर्तन कर लीजिये, पश्चात विषय प्रारम्भ होगा।

।। भजो गिरिधर गोविन्‍द गोपाला।।

।। आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द की जय।।

अब आप लोग सावधान हो जायें। ‘मैं’ कौन? ‘मेरा’ कौन? इन दोनों प्रश्‍नों के समाधान में अब तक आप लोगों को बताया गया कि कोई एक परात्पर तत्व है जिसके अनन्त नाम, अनन्त रूप, अनन्त गुण, अनन्‍त लीलायें, अनन्त शक्तियाँ, अनन्त धाम हैं। जिसे श्रीकृष्ण ऐसा कहा जाता है, उन श्रीकृष्‍ण के तीन अभिन्न स्वरूप हैं

वदन्ति तत्तत्त्‍वविदस्तत्त्‍वं यज्‍ ज्ञानद्वयम् ।

ब्रह्मेति परमात्‍मेति भगवानिति शब्‍द्यते।।

(भाग. 1-2-11)

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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