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हम साबित कर सकते हैं अपना बहुमतः पूर्व सीएम

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अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन, पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी, राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला

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नई दिल्ली। अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू होते ही सियासत शुरू हो गई है। अरुणाचल के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी ने आज कहा है कि हम सदन में अपना बहुमत साबित कर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि ज्योति प्रसाद राजखोवा ने राज्यपाल बनते ही सरकार के खिलाफ साजिश रचनी शुरू कर दी थी। मुझे लगता है अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन को चुनौती देने वाली याचिका पर न्याय मिल जाएगा। लोग अरुणाचल में लगाए गए राष्ट्रपति शासन से परेशान हो रहे हैं।

वहीं, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन को लेकर मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उनके मुताबिक, मोदी सरकार ने लोकतंत्र की हत्या कर दी है। जबकि भाजपा नेता एसएन सिंह ने कहा है कि यह पहली बार नहीं है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो, कांग्रेस मुद्दों को भटकाने में माहिर है। कांग्रेस इस मसले को राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहती है। कांग्रेस विधि विभाग के सचिव केसी मित्तल ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश में इस तरह राष्ट्रपति शासन लगाना पूरी तरह से असंवैधानिक है। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय महासचिव एवं सांसद केसी त्यागी ने इस गणतंत्र दिवस को भारत के लिए काला दिवस बताया है। उनका यह तल्ख बयान अरुणाचल प्रदेश में गरमाई सियासत के विरोध में है। त्यागी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू होना देश की संघीय व्यवस्था की भावना के खिलाफ है।

विपक्ष ने लोकतंत्र की हत्या बताया

अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने को विपक्षी दलों ने लोकतंत्र और संघीय ढांचे की हत्या करार दिया है। कांग्रेस, जदयू और आप ने मंगलवार को इसको लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला। इन दलों ने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार देश की शीर्ष अदालत को अपमानित करने पर तुली है, जो अभी इस मामले की सुनवाई कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है। मामला में न्यायालय में विचाराधीन है, फिर भी सरकार ने जल्दबाजी में फैसला लिया। यह शीर्ष अदालत का सीधा-सीधा अपमान है। राष्ट्रपति शासन लगने तक अरुणाचल के सीएम रहे नबाम तुकी का कहना है कि अरुणाचल मामले में नियमों का पालन नहीं किया गया है। केंद्र सरकार का निर्णय संविधान के खिलाफ है। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। शीर्ष न्यायालय हमें न्याय देगा। उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा कि कल 40-50 एमपी संसद में विद्रोह कर दें तब क्या प्रधानमंत्री को हटा दिया जाएगा?

आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सरकार के इस फैसले की तुलना आपातकाल जैसे हालात से किया है। बकौल केजरीवाल, अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन। यह कहना ज्यादा सही है कि देश में आपातकाल जैसे हालात हो गए हैं। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि केंद्र ने संघीय ढांचे की हत्या कर दी है। हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे। अरुणाचल प्रदेश में मंगलवार को राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। अरुणाचल प्रदेश से लेकर दिल्ली तक उठे राजनीतिक उफान के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी। जाहिर तौर पर कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका है। संसद में इसे मुद्दा बनाने की कांग्रेस की रणनीति भी कुंद पड़ सकती है।

गौरतलब है कि सोमवार को कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर राष्ट्रपति से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया था। कांग्रेस का आरोप था कि राज्यपाल ज्योति प्रसाद राजखोवा केंद्र सरकार के इशारे पर राजनीतिक फैसले ले रहे हैं, जबकि भाजपा की ओर से संवैधानिक संकट का सवाल उठाया गया था। राष्ट्रपति ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मशविरा किया था। यह तय माना जा रहा था कि राज्यपाल की जिस तरह की रिपोर्ट आई है और खासतौर पर जिस तरह अंदरूनी राजनीति और खींचतान के कारण प्रदेश की कांग्रेस सरकार विधानसभा का सत्र तो दूर विधायक दल की बैठक भी नहीं बुला पा रही थी, उससे स्थिति खतरनाक हो गई थी।

कांग्रेस नेतृत्व को अपेक्षा थी कि कोर्ट में मामला ले जाने के बाद शायद राष्ट्रपति रुककर फैसला लेंगे। लेकिन सूत्रों के अनुसार प्रणब संवैधानिक विशेषज्ञों से मशविरा के बाद निश्चिंत थे और इसी कारण कैबिनेट फैसले को मंजूरी दे दी। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त वाईएस डडवाल और सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी जीएस पटनायक को अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल का सलाहकार नियुक्त किया गया।

छह महीने तक विधानसभा की बैठक न बुलाना सबसे बड़ा कारण बना। 16 दिसंबर को कांग्रेस के 21 बागी विधायक और भाजपा के 11 विधायक मिल गए थे। दो निर्दलीय विधायक भी उनके साथ आ गए। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष नबाम रेबिया के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया था। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों समेत 27 विधायकों ने इस कार्यवाही का बहिष्कार किया था। इसके बाद विपक्षी भाजपा व बागी विधायकों मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ अविश्वास मत पारित कर दिया। 60 सदस्यीय विधानसभा के कुल 33 सदस्यों ने कांग्रेस के एक अन्य बागी कलिखो पुल को नया मुख्यमंत्री चुन लिया। उस बैठक को हाईकोर्ट ने गैर कानूनी करार दिया था।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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