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स्थिति बिगड़ने पर कोई तंत्र-मंत्र काम नहीं आता : जेटली
पटना। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता गिरिराज सिंह द्वारा एक साल पुराना एक वीडियो जारी कर इसे ‘ताजा’ बताने के ‘झूठ’ का समर्थन करते हुए केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यहां शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए कहा कि जब स्थिति बिगड़ती है तो कोई तंत्र-मंत्र काम नहीं आते। तंत्र-मंत्र से चुनाव नहीं जीते जाते।
वीडियो में एक तांत्रिक को नीतीश को गले लगाते और चूमते दिखाया गया है। यह वीडियो वर्ष 2014 का है, जब मुख्यमंत्री पद पर जीतनराम मांझी थे, नीतीश नहीं। गिरिराज सिंह ने इस पुराने वीडियो को ताजा बताते हुए शनिवार को ट्वीट किया, “लालू का शैतान उतरवाने नीतीश पहुंचे तांत्रिक के पास। नीतीश के बाबा बोले, ‘लालू मुर्दाबाद’।” गिरिराज के इस ‘गेम’ से खुश जेटली ने पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया, “भाजपा अपने बूते बिहार में बहुमत तक पहुंचेगी और राजग के साथ बड़ी बहुमत हासिल करेगी।”
भाजपा के नेता क्या साधु-संतों, तांत्रिक-ज्योषियों के पास नहीं जाते? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि सहयोगियों के खिलाफ षड्यंत्र के लिए भाजपा के नेता कहीं नहीं जाते। उनका आशय मांझी के खिलाफ षड्यंत्र से था। इससे स्पष्ट है कि जेटली ‘मोदी विरोधियों को पाकिस्तान का रास्ता दिखाने’ की धमकी देने वाले गिरिराज सिंह के नए ‘गेम’ से पूरी तरह वाकिफ हैं।
भाजपा नेताओं में महागठबंधन का खौफ कितना है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री से लेकर जो भी केंद्रीय मंत्री बिहार पहुंचते हैं, वे सीधे नीतीश-लालू की दोस्ती पर ही प्रहार करते हैं। महागठबंधन की एकता से चिंतित जेटली ने कहा, “नीतीश जिसके खिलाफ 20 वर्षो तक बोलते रहे, जिन्हें सजा दिलवाई, आज अवसरवादी राजनीति के तहत उसी के साथ हो गए।”
नीतीश के विकास मॉडल को पुराना मॉडल बताते हुए उन्होंने कहा कि पहले पांच वर्षो के लिए प्रारंभिक विकास मॉडल सही था, लेकिन जब जद (यू) की नीयत बदली, तो विकास के अगले स्तर का नीतीश सरकार मॉडल पेश नहीं कर सकी। उन्होंने कहा कि भाजपा नई सोच, नई राजनीति के साथ बिहार में विकास देगी। जेटली ने कहा कि नीतीश की न तो राजनीति स्थिर है और न ही विचारधारा।
केंद्रीय मंत्री जनरल वी़ के. सिंह के ‘कुत्ते’ वाले विवादित बयान पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर उन्होंने कहा, “वह सफाई दे चुके हैं और अपना स्टैंड भी साफ कर चुके हैं। माफी भी मांग चुके हैं। अब यह मुद्दा खत्म हो चुका है।” दाल की महंगाई के मामले पर जेटली ने कहा, “दाल की पैदावार कम हुई है। फिर भी जहां से संभव हो पा रहा है, वहां से दाल मंगवाई जा रही है।” उन्होंने आगे कहा कि कई राज्यों ने जमाखोरी के खिलाफ छापेमारी की और पिछले तीन दिनों में 50 हजार टन दाल बरामद हुई है। अगर बिहार सरकार भी अपने यहां छापेमारी करवाती तो यहां भी दाल की कीमत कम हो सकती थी।
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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