Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

मप्र : हालात से हारता किसान, 15 से ज्यादा ने गंवाई जान

Published

on

Loading

भोपाल | मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार भले ही खेती को फायदे का धंधा बनाने का राग आलापती हो, किसानों की हरसंभव मदद के वादे करती हो मगर किसानों को इन वादों पर विश्वास नहीं है, तभी तो फसल की बर्बादी के आगे हार मान चुके किसान मौत को गले लगाए जा रहे हैं। बीते एक पखवाड़े में 15 से ज्यादा किसान दुनिया छोड़ गए हैं इनमें से कुछ ने खुद हार मानी है तो कुछ को सदमे ने निगल लिया है। राज्य के 51 जिलों में 21 जिले ऐसे हैं, जहां बारिश औसत से काफी कम हुई है, इनमें से पांच जिलों की 32 तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है| मगर 16 जिले अब भी ऐसे हैं जो सूखे की जद में हैं और उन्हें सरकार की ओर से विशेष राहत की जरूरत है। किसान एक तरफ कर्ज से दबा है तो दूसरी ओर फसल की बर्बादी ने उसे मुसीबत से घेर दिया है।

राज्य में इस वर्ष हुई कम वर्षा और इल्ली के प्रकोप ने सोयाबीन सहित उड़द, तिल आदि की फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। आलम यह है कि खेतों में हरियाली तो नजर आती है, मगर पैदावार न के बराबर हुई है। इससे किसान हताश है और उस पर निराशा हावी है। हाल यह है कि कई इलाकों में किसानों ने खड़ी फसल को काटना तक उचित नहीं समझा, क्योंकि उसे लगा कि फसल काटना घाटे का सौदा है और खेतों में जानवर छोड़ दिए हैं।

राज्य में कर्ज के बोझ और फसल की बर्बादी ने किसान की मुसीबत और बढ़ा दी है, यही कारण है कि किसी किसान की सदमे से मौत हो रही है तो कोई मौत को गले लगा रहा है। बीते 15 दिनों में सागर, खंडवा, बैतूल, विदिशा, अलिराजपुर, देवास, रीवा, सीहोर आदि स्थानों से 15 किसानों की मौत की खबरें आई है। इनमें 12 ने आत्महत्या की है तो तीन की मौत सदमे से होने की बात कही जा रही है। किसान नेता शिवकुमार शर्मा ने  चर्चा करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री चौहान को लफ्फाज और खोखली बातें करने वाला नेता करार दिया है। उनका कहना है कि किसानों से वादे तो बहुत होते हैं, मगर उन पर अमल नहीं होता। किसानों को बीमा की राशि तक तो मिलती नहीं है, मुआवजा सिर्फ बातों तक ही रह जाता है।

शर्मा ने कहा कि बीते एक पखवाड़े में राज्य में 22 किसान मौत को गले लगा चुके हैं, यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि किसान बीते चार वर्षो से पड़ रही प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह टूट चुके हैं। मुख्यमंत्री चौहान सिर्फ उद्योगपतियों के लिए काम कर रहे हैं, विदेश जा रहे हैं, मगर उन्हें किसानों की चिंता नहीं है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव बादल सरोज ने कहा कि पूरे प्रदेश में सूखे के हालात हैं। सरकार को 10 हजार रुपये प्रति एकड़ के मान से किसान को राहत राशि देनी चाहिए, मनरेगा के तहत 200 दिन का काम दिया जाए। इसके साथ सर्वेक्षण कार्य पूरा होने पर किसान को क्षतिपूर्ति की शत-प्रतिशत राशि दी जाए। राज्य का अन्नदाता एक बार फिर निराश है और मौसम से मिली हार के बाद उसे अब सिर्फ सरकार से ही आस है। इस स्थिति में अगर सरकार ने भी उसका साथ नहीं दिया तो किसानों की मौत का आंकड़ा पिछले सालों से भी आगे निकलने से कोई नहीं रोक पाएगा।

 

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

Published

on

Loading

सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

Continue Reading

Trending