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आध्यात्म

पितृपक्ष 28 सितंबर से, 12 अक्टूबर को विसर्जन

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लखनऊ। पूर्वजों को प्रसन्न करने का पर्व पितृत्व 28 सितंबर से शुरू हो रहा है। 12 अक्टूबर को पितृ विसर्जन होगा। इस दौरान पखवारे भर तक लोग तर्पण कर पूर्वजों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और पितृऋण से मुक्ति की कामना करेंगे।

इस बार 6 अक्टूबर को नवमी होगी, जिसमें दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध होगा। पं. केके पाण्डेय व पं. कृष्ण दत्त अवस्थी ने बताया कि पूर्वजों की तृप्ति के लिए किए जाने वाले कार्य को श्राद्ध कहते हैं। विशेष बात यह है कि जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि श्राद्ध होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि देव ऋषि और पितृ यह तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। इनमें श्राद्ध बहुत जरूरी है। जिस व्यक्ति के पास जैसा सामथ्र्य है, उसे वैसा ही श्राद्ध करना चाहिए। उन्हांेने बताया कि पितृ पक्ष पर इस बार प्रथम दिन पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध एक साथ किया जाएगा। पूर्वजों की कृपा पाने का पर्व पितृपक्ष भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगा। 28 सितंबर को उदय तिथि में सुबह 8:38 बजे तक पूर्णिमा रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा परेवा लग जाएगी। हालांकि प्रतिपदा तिथि की हानि रहेगी।

वर्ष 29 सितंबर को द्वितीय तिथि व 30 सितंबर को भरणी और तृतीया का श्राद्ध होगा। 1 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि व 2 अक्टूबर को पंचमी तिथि का श्राद्व होगा। 3 अक्टूबर को षष्ठी तिथि और 4 को सप्तमी और 5 को अष्टमी का श्राद्ध होगा। 6 अक्टूबर को मात्र नवमी को दिवंगत हो चुकी महिलाओं का श्राद्ध होगा। सात अक्टूबर को दशमी की तिथि, 8 अक्टूबर को एकादशी तिथि, 9 अक्टूबर को द्वादशी, 10 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि 11 को अक्टूबर चतुदर्शी है तथा 12 अक्टूबर को पितृ विसर्जन होगा।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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