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आध्यात्म

प्रेम मन्दिर में भव्यता के साथ संपन्न हुआ श्रीकृष्ण जन्मोत्सव

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वृन्दावन (उप्र)। आज से लगभग पाँच हज़ार वर्ष पूर्व भगवान् श्रीकृष्ण का आविर्भाव हुआ था और वे 125 वर्ष तक हमारे इस मृत्युलोक में रहे। संसार में लोग श्रीकृष्ण प्राकट्य दिवस को जन्माष्टमी कहते हैं। ब्रह्मा के एक दिन में स्वयं भगवान् आते हैं और मनुष्य की भाँति सभी लीलायें करते हैं, परन्तु वो सभी लीलायें दिव्य होती हैं, उन्हें मायिक मन, बुद्धि द्वारा कदापि नही समझा जा सकता। बस इतना ही जान लेना आवश्यक है कि जीवों पर उनकी अहैतुकी कृपा के परिणामस्वरूप ही वे अवतार लेते हैं, जिससे उन लीलाओं के चिंतन द्वारा जीव अपने अन्तःकरण को शुद्ध कर भगवान् का दिव्य प्रेम प्राप्त कर, सदा को उनके साथ उनके दिव्य लोक में उनका सहवास प्राप्त कर सके। जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा जन्माष्टमी महोत्सव बड़े ही भक्ति-भाव के साथ अत्यन्त भव्य रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष भी यह महोत्सव जगद्गुरु कृपालु परिषत् के सभी केन्द्रों में विशेष उत्साह के साथ मनाया गया। श्रीधाम वृन्दावन में स्थित ‘प्रेम मन्दिर‘ में यह दिव्योत्सव अत्यन्त भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ।

पांच सितम्बर को जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षा सुश्री डा. विशाखा त्रिपाठी , सुश्री डा. श्यामा त्रिपाठी एवं सुश्री डा. कृष्णा त्रिपाठी के पावन सान्निध्य में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व बड़े ही भक्तिभाव के साथ मनाया गया। परिषत् की अध्यक्षाओं ने सभी सत्संगियों के साथ भगवन्नाम संकीर्तन करते हुये प्रेम मन्दिर की परिक्रमा की। तत्पश्चात् सभी ने जागरण पद के द्वारा श्रीकृष्ण को संकेत किया कि ‘हे नन्दलाल! जागिये, भोर हो चुकी है और अपने भक्तों को दर्शन दीजिये।

जन्माष्टमी के अवसर पर प्रातःकाल से रात्रि 12 बजे तक अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन के रस में भक्तजन डूबे रहे और अपने आराध्य के प्रकट होने की प्रतीक्षा करते रहे। इस अवसर पर मंदिर के भीतर एवं बाहर, सभी स्थानों पर विशेष साज-सज्जा की गई। मंदिर के गर्भ गृह, विशाल प्रांगण, सभी उद्यानों एवं फव्वारे को आधुनिक साज-सज्जा एवं रोशनी से सजाया गया। मंदिर में श्रीकृष्ण लीला की अनेकानेक झाँकियों ने दर्शनार्थियो का मन मोह लिया।

यशोदानन्दन को जन्मोत्सव की बधाई देने के लिये लाखों की संख्या में दर्शनार्थी प्रेम मंदिर में पधारे और श्रीराधाकृष्ण के दर्शन कर मंत्रमुग्ध से हो गये। श्रीसीताराम जी की मनमोहक छवि ने भी दर्शनार्थि यों को भावविभोर रात्रि 12 बजे अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक सर्वेश्वर, सर्वशक्तिमान भगवान् श्रीकृष्ण का प्राकट्य हुआ एवं वेद मंत्रों की प्रतिध्वनि के उनके बाल-स्वरूप का अभिषेक सम्पन्न हुआ। दिव्य वातावरण में हुये अभिषेक के पश्चात् ठाकुरजी को पालने में बिठाया गया और उनकी स्तुति हुई, तत्पश्चात् उन्हें छप्पन भोग समर्पित किये गये और विशाल आरती हुई। भक्तों ने पालने में झूलते हुये ठाकुर जी के दर्शन प्राप्त किये एवं अन्त में प्रसाद वितरण का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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