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आध्यात्म

महज 41 दिनों में सवा 5 करोड़ शिवलिंग तैयार

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ललितपुर (उप्र)। पुरुषोत्तम मास (मलेमास) और सावन में देवों के देव महादेव की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है। इसलिए धार्मिक लिहाज से शिव आराधना के लिए ये दो महीने बेहद खास माने जाते हैं। शिव की पूजा के लिए यहां सवा पांच करोड़ शिवलिंग महज 41 दिनों में तैयार किए गए हैं। पार्थिव शिवलिंग निर्माण अन्य पूजा-अर्चना से इसलिए विशिष्ट माना जाता है कि इसमें आम श्रद्धालु बिना किसी पंडित या पुरोहित के स्वयं एक शिल्पकार के तौर पर मिट्टी के शिवलिंग और शेषनाग बनाते हुए उन पर बिल्वपत्र, धतूरा, जल इत्यादि चढ़ाते हैं और इनका विसर्जन करके मोक्ष के हकदार बनते हैं।

ललितपुर में सवा पांच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण का बुंदेलखंड में अब तक का सबसे भव्य आयोजन है। गीली मिट्टी से इतनी बड़ी संख्या में शिवलिंगों का निर्माण करने वाले श्रद्धालुओं को काफी सराहना मिल रही है।

सिद्धपीठ चंडी माता धाम के पीठाधीश्वराचार्य चंद्रेश्वर गिरि महाराज बताते हैं कि शिव की आराधना न सिर्फ मानवों ने, बल्कि देवों और दैत्यों ने भी थी। भगवान राम ने जहां रामेश्वरम में स्वयं शिवलिंग बनाकर रावण वध का मार्ग प्रशस्त किया, वहीं धर्म शास्त्रों में रावण की एक पहचान तो सबसे बड़े शिवभक्त के रूप में है, जिसने शिव से वरदान स्वरूप सोने की लंका तक हासिल कर ली।

उन्होंने बताया कि अन्य देवों की स्तुति के लिए जहां विशेष प्राविधान है, वहीं शिव मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। जिसका कोई नहीं, उसका भी शिव सहारा हैं और वह देव, असुर, गण, पिचाश सभी के आराध्य हैं। धर्म शास्त्रों में शिव बारात के वर्णन के दौरान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण दिया गया है।

चंद्रेश्वर गिरि कहते हैं कि शिव सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवान हैं। इसलिए उनकी कृपा हासिल करने को सिद्धपीठ चंडी माता धाम में पुरुषोत्तम मास के दौरान सवा पांच करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण के इतने विशाल लक्ष्य को श्रद्धालुओं ने महज 41 दिनों में प्रतिदिन कुछ घंटों का योगदान देकर महारुद्राभिषेक के साथ पूरा कर लिया, जो अपने आप में रिकार्ड है।

उन्होंने बताया कि 1 अगस्त से सावन मास की शुरुआत के दौरान भी लोग अपने घरों-मंदिरों में पार्थिव शिवलिंग पूजा करेंगे। धर्म शास्त्रों में शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाना कल्याणकारी, गन्ने का रस से अभिषेक धन-सम्पति हासिल करने वाला और शहर से शिव अभिषेक रोगनाशक करने वाला बताया गया है। इसलिए भक्त अपनी-अपनी मनोकामना के मुताबिक शिव आराधना करते हैं।

आध्यात्म

आज होगी मां दुर्गा के अष्टम रूवरूप महागौरी की पूजा-अर्चना, इन बातों का रखें ख्याल, मिलेगी विशेष कृपा

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नवरात्र पर्व के आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है। महागौरी गौर वर्ण की है और इनके आभूषण और वस्त्र स्वेत रंग के हैं। इनकी उम्र आठ साल की मानी गई है। इनकी चार भुजाएं है और वृषभ पर सवार होने के कारण इन्हें वृषारूढा भी कहा जाता है। सफेद वस्त्र धारण करने के कारण इन्हें स्वेतांबरा भी कहा गया है।

मां महागौरी देवी पार्वती का एक रूप हैं। पार्वती ने भगवान शिव की कठोर तपस्या करने के बाद उन्हें पति के रूप में पाया था। कथा है कि एक बार देवी पार्वती भगवान शिव से रूष्ट हो गईं। इसके बाद वह तपस्या पर बैठ गईं। जब भगवान शिव उन्हें खोजते हुए पहुंचे तो वह चकित रह गए। पार्वती का रंग, वस्त्र और आभूषण देखकर उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं। महागौरी करुणामयी, स्नेहमयी, शांत तथा मृदुल स्वभाव की हैं। मां गौरी की आराधना सर्व मंगल मंग्लये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ये त्रयंबके गौरि नारायणि नमोस्तुते..। इसी मंत्र से की जाती है। कहा जाता है कि एक बार भूखा शेर उन्हें निवाला बनाने के लिए व्याकुल हो गया पर उनके तेज के कारण वह असहाय हो गया। इसके बाद देवी पार्वती ने उसे अपनी सवारी बना लिया था। मां के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना करने से धन, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

अष्टमी के दिन करें कन्या पूजन

नवरात्र पर्व पर दुर्गाष्टमी के दिन कन्याओं की पूजा की जाती है। जिसे कंचक भी कहा जाता है। इस पूजन में नौ साल की कन्याओं की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि महागौरी की उम्र भी आठ साल की थी। कन्या पूजन से भक्त के पास कभी भी कोई दुख नहीं आता है और मां अपने भक्त पर प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं।

महागौरी की पूजा का महत्व

आदि शक्ति देवी दुर्गा के आठवें स्वरूप की पूजा करने से सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। महागौरी की आराधना से दांपत्य जीवन, व्यापार, धन और सुख समृद्धि बढ़ती है। जो भी देवी भक्त महागौरी की सच्चे मन से आराधना व पूजन अर्चन करता है उसकी सभी मुरादें पूरी करती हैं। पूजा के दौरान देवी को अर्पित किया गया नारियल ब्राम्हण को देना चाहिए।

कन्या पूजन विधि

नवरात्रि की अष्टमी के दिन कन्याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें।

इसके बाद कन्याओं का पूरे परिवार के साथ चावल और फूल के साथ स्वागत करें।

नवदुर्गा के सभी नामों के जयकारे लगाएं। फिर कन्याओं को आरामदायक और साफ जगह पर बैठा दें।

सभी कन्याओं के पैर धोकर अच्छे से साफ करें। फिर सभी का कुमकुम का टिका लगाएं।

इन सभी कन्याओं को मां भगवती का स्वरुप समझकर उन्हें भोजन कराएं।

अंत में उन्हें दक्षिणा और कुछ उपहार देकर ही घर से विदा करें।

कन्या पूजन में इन बातों का रखें खास ख्याल

ध्यान रखें की कन्या पूजन में 9 कन्याओं के साथ 1 बालक को जरूर बैठाएं। बालक को भैरव का रूप माना जाता है।

कन्याओं के तुरंत बाद लाकर उनके हाथ पैर जरुर धुलवाए और उनका आशीर्वाद लें।

कुमकुम का तिलक लगाने के बाद सभी कन्याओं को कलावा भी जरुर बांधे।

 

 

 

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