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इराक में जारी रहेगी लापता भारतीयों की तलाश : सुषमा

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नई दिल्ली| केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि इराक में लापता भारतीयों को लेकर उसने उम्मीद नहीं छोड़ी है और अब तक उनकी हत्या की पुष्टि नहीं हुई है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि एक बंधक हरजीत बस्सी अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकलने में कामयाब रहा और उसने यह दावा किया है कि अन्य बंधकों को जंगल में ले जाकर गोली मार दी गई है। उन्होंने कहा, “बस्सी ने कहा कि उसे और अन्य लोगों को जंगल ले जाकर गोली मार दी गई। सिर्फ मैं बच पाया।”

सुषमा ने कहा, “बस्सी की बातों में विरोधाभास है। तार्किक रूप से देखें तो उसकी बातें स्वीकार्य नहीं हैं। हमें छह ऐसे सूत्र मिले हैं, जिनका कहना है कि भारतीयों की हत्या नहीं हुई है।” गौरतलब है कि इस्लामिक स्टेट ने करीब 40 भारतीय नागरिकों को अगवा कर लिया है, जो अब तक लापता हैं। वे मोसुल में तुर्की की एक निर्माण कंपनी में काम करते थे।

पंजाब के गुरदासपुर से ताल्लुक रखने वाले बस्सी ने बताया था कि बंधकों में वह भी शामिल था। अन्य भारतीय बंधकों को गोली मार दी गई थी, जबकि सिर्फ वह बच निकलने में कामयाब रहा। अधिकारियों ने हालांकि, उसके बयान को विरोधाभाषी बताया है। सुषमा ने कहा, “उसकी कहानी सुनकर तलाश बंद करने का विकल्प मौजूद है, जबकि उसके विरोधाभाषी बयान के कारण दूसरा विकल्प यह है कि हम इसे नहीं स्वीकारेंगे और तलाश जारी रखेंगे। तर्क यह कहता है कि हम उसके बयान को स्वीकार नहीं करेंगे और तलाश जारी रखेंगे।”TOPSHOTS-IRAQ-UNREST-ARMY-EXECUTION

मंत्री ने कहा कि बस्सी फिलहाल भारत सरकार के सुरक्षा घेरे में है। उन्होंने कहा, “हमें न सिर्फ मौखिक, बल्कि लिखित संदेश भी मिले हैं, जिसमें उनके जिंदा होने की बात कही गई है।” सुषमा ने हालांकि, लिखित संदेश का खुलासा नहीं किया। उन्होंने हालांकि यह लिखित संदेश अपने सहयोगियों- वित्त मंत्री अरुण जेटली और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल को दिखाने की बात कही।

सुषमा ने कहा कि इराक में अरबी भाषा के अच्छे जानकार अधिकारियों को नियुक्त किया गया है।  उन्होंने कहा, “उम्मीद की खातिर हमें तलाश जारी रखनी है। हमने उन सभी देशों, नागरिकों और संस्थाओं से संपर्क कर रखा है, जिससे हम संपर्क बना सकते हैं।” सुषमा ने बताया कि रेड क्रिसेंट नाम की संस्था सरकार की मदद कर रही है और किसी व्यक्ति के नाम का खुलासा सुरक्षा कारणों से नहीं किया जा सकता।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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