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मुख्य समाचार

आईएमएफ का कर्ज नहीं चुका पाया ग्रीस

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वाशिंगटन| यूरोपीय देश ग्रीस अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का कर्ज नहीं चुका पाया, जिसकी मियाद भारतीय समयानुसार मंगलवार देर रात समाप्त हो गई। आईएमएफ ने इसकी पुष्टि कर दी है कि ग्रीस पर अब भी 1.5 अरब यूरो (1.7 डॉलर) का कर्ज बकाया है। ग्रीस को स्थानीय समयानुसार मंगलवार शाम छह बजे तक आईएमएफ का कर्ज चुकाना था, जिसमें वह नाकाम रहा।

इस बीच, ग्रीस ने कर्ज चुकाने के लिए आईएमएफ से अतिरिक्त समय की मांग की है। ग्रीस के उप प्रधानमंत्री यानिस ड्रैगासाकिस ने मंगलवार शाम कहा कि उनका देश इस संबंध में यूरोपीय समूह के देशों के साथ बुधवार को प्रस्तावित वार्ता में एक नया प्रस्ताव पेश करेगा। इससे पहले इस संबंध में यूरोपीय समूह के देशों की आपात टेलीकांफ्रेंसिंग मंगलवार शाम हुई थी, जो बेनतीजा रही।

उधर, आईएमएफ के संचार निदेशक गेरी राइस ने ग्रीस को बकायादार (डिफॉल्टर) घोषित करते हुए एक बयान में कहा, “आईएमएफ को ग्रीस से करीब 1.5 अरब डॉलर बकाया नहीं मिला है। हमने अपने कार्यकारी बोर्ड को इस बारे में बता दिया है और कहा कि बकाये का भुगतान किए बगैर ग्रीस को और अधिक वित्तीय मदद नहीं दी जा सकती।”

उन्होंने कहा, “मैं इसकी भी पुष्टि करता हूं कि ग्रीस की ओर से कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध किया गया है। इस संबंध में ग्रीस का अनुरोध निर्धारित समय में आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड के समक्ष पेश किया जाएगा।”

इससे पहले ग्रीस के वित्त मंत्री यानिस वारोफाकिस ने कहा था कि उनका देश कर्ज नहीं चुकाएगा। हालांकि प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने ‘बेल आउट पैकेज’ की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया था, ताकि उनका देश तकनीकी रूप से ‘डिफॉल्टर’ घोषित होने से बच जाए। लेकिन यूरोपीय संघ के देशों ने सिप्रास के इस अनुरोध को खारिज कर दिया था।

ग्रीस की इस साल फरवरी में यूरोपीय संघ, यूरोप के केंद्रीय बैंक व आईएमएफ के साथ बातचीत हुई थी, जिसमें ‘बेलआउट पैकेज’ की अवधि चार माह के लिए बढ़ाने पर सहमति हुई थी और जिसकी अवधि मंगलवार यानी 30 जून को समाप्त हो गई।

इस बीच, ग्रीस के बैंकों में बंदी सोमवार से ही जारी है। आईएमएफ के नए प्रस्ताव पर पांच जुलाई को जनमत संग्रह होना है, जिसे ग्रीस की वामपंथी सरकार पहले ही कर्ज के बहाने उस पर थोपी जाने वाली ‘शर्मनाक शर्त’ करार दे चुकी है। सरकार ने लोगों से इसके खिलाफ मतदान करने की अपील है।

वहीं, पश्चिमी देशों और ग्रीस की विपक्षी पार्टियों ने चेताया है कि यदि जनमत-संग्रह में आईएमएफ के प्रस्तावों के खिलाफ वोट डाला जाता है तो ग्रीस की यूरोपीय संघ की सदस्यता पर संकट आ सकता है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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