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नमामि गंगे : प्रथम तिमाही में 1 रुपया भी खर्च नहीं

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लखनऊ| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामी गंगे’ की रफ्तार का आलम यह है कि सरकार वर्तमान वित्त वर्ष 2015-16 की प्रथम तिमाही में इस पर एक भी रुपये खर्च नहीं कर पाई है। यह खुलासा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई एक जानकारी से हुआ है।

राजधानी लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल (सीएमएस) की राजाजीपुरम शाखा की कक्षा नौ की छात्रा ऐश्वर्य पाराशर ने इस संबंध में आरटीआई दायर कर जानकारी मांगी थी।

केंद्र सरकार ने इस बाल आरटीआई कार्यकर्ता को बताया है कि वित्त वर्ष 2015-16 की प्रथम तिमाही में गंगा साफ-सफाई पर एक रुपया भी नहीं खर्च किया गया है।

ऐश्वर्य ने कहा, “समाचार पत्रों में गंगा की सफाई और संरक्षण से जुड़ी प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना ‘नमामी गंगे’ को केंद्र सरकार द्वारा 20 हजार करोड़ रुपये का बजट आवंटित किए जाने के संबंध में खबर पढ़ने के बाद मैंने 26 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई दायर की थी।”

तीन बिन्दुओं की इस आरटीआई के माध्यम से ऐश्वर्य ने वित्त वर्ष 2014-15 और 2015-16 में गंगा नदी की साफ-सफाई पर खर्च किए गए धन और इस संबंध में आयोजित बैठकों की जानकारी मांगी।

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के केंद्रीय सूचना अधिकारी और अवर सचिव बी़ क़े राय ने चार जून को ऐश्वर्य का आरटीआई आवेदन जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव को भेज दिया था।

जल संसाधन नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के उप सचिव एल़ बी़ तुओलते ने इस संबंध में ऐश्वर्य को 22 जून को पत्र के माध्यम से सूचना भेजी।

ऐश्वर्य को दी गई सूचना के अनुसार, वित्त वर्ष 2014-15 में भारत सरकार ने गंगा नदी की साफ -सफाई से संबंधित ‘नमामी गंगे’ योजना पर कुल 324 करोड़ 88 लाख रुपये खर्च किए थे। इसमें से 90 करोड़ रुपये गैर सहायतित परियोजनाओं पर और 324 करोड़ 88 लाख रुपये सहायतित परियोजनाओं पर खर्चे गए।

तुओलते ने ऐश्वर्य को यह भी बताया है कि सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में गंगा साफ-सफाई पर एक पैसा भी नहीं खर्चा है।

ऐश्वर्य को दी गई सूचना के अनुसार, वित्त वर्ष 2014-15 में गंगा साफ -सफाई पर दो बैठकें दिनांक 27 अक्टूबर, 2014 और 26 मार्च, 2015 को हुइर्ं थीं, जबकि वित्त वर्ष 2015-16 में गंगा साफ -सफाई पर अब तक कोई बैठक नहीं हुई है।

गौरतलब है कि पिछले साल जुलाई में अपने पहले बजट में नरेंद्र मोदी ने नमामि गंगे योजना को 6300 करोड़ से अधिक का बजट आवंटित करने की बात कही थी। गंगा नदी की सफाई और संरक्षण के लिए पिछले तीन दशकों में खर्च किए गए धन में चार गुना बढ़ोतरी करते हुए अगले पांच सालों के लिए 20,000 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी गई थी।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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